Skip to main content

Posts

बिम्ब एक प्रतिबिम्ब अनेक

शब्दों की चाक पर - एपिसोड 05 शब्दों की चाक पर हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि  हम पिछले हफ्ते की कविताओं को आत्मसात करें, आईये जान लें इस दिलचस्प खेल के नियम -  1. कार्यक्रम की क्रिएटिव हेड रश्मि प्रभा के संचालन में शब्दों का एक दिलचस्प खेल खेला जायेगा. इसमें कवियों को कोई एक थीम शब्द या चित्र दिया जायेगा जिस पर उन्हें कविता रचनी होगी...ये सिलसिला सोमवार सुबह से शुरू होगा और गुरूवार शाम तक चलेगा, जो भी कवि इसमें हिस्सा लेना चाहें वो रश्मि जी से संपर्क कर उनके फेसबुक ग्रुप में जुड सकते हैं, रश्मि जी का प्रोफाईल  यहाँ  है. 2. सोमवार से गुरूवार तक आई कविताओं को संकलित कर हमारे पोडकास्ट टीम के हेड पिट्सबर्ग से अनुराग शर्मा जी अपने साथी पोडक

आपके नाम भी हो सकता है 5000 रुपये का इनाम, आज से ही भाग लीजिए 'सिने-पहेली' में

सिने-पहेली # 27 (2 जुलाई, 2012)  'सिने पहेली' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, हमारे कुछ प्रतियोगियों ने हमें यह सूचित किया है कि 'सिने पहेली' में सोमवार से शुक्रवार तक का समय होने की वजह से उन्हें जवाब भेजने में परेशानी हो रही है क्योंकि इनमें कोई छुट्टी का दिन शामिल नहीं है, इसलिए हमें 'सिने पहेली' का दिन इस तरह से निर्धारित करना चाहिए ताकि शनिवार और रविवार जवाब भेजने वाले दिनों में शामिल हो जाए। तो दोस्तों, इसके जवाब में हम फ़िलहाल यही कहना चाहेंगे कि ऐसा कर पाना अभी मुमकिन नहीं है क्योंकि 'सिने पहेली' पोस्ट करने के लिए हमें भी छुट्टी के दिन की ज़रूरत पड़ती है। हाँ, हम इतना ज़रूर कर सकते हैं कि शुक्रवार की जगह अब आप शनिवार शाम 5 बजे तक अपना जवाब भेज सकते हैं। इस तरह से अब आपको शनिवार का पूरा दिन मिल गया जवाबों को ढूंढ कर हमें भेजने के लिए। चलिए शुरू करते हैं आज की पहेली आज की पहेली: गान पहचान  दोस्तों, आज बहुत दिनों बाद हम रुख़ कर रहे हैं ऑडियो की तरफ़। हमने ख़ास आपके लिए तैयार किया है एक फ़िल्मी मेडली। सुनिए

७५वें वर्ष में प्रवेश पर अभिनन्दन, पं . चौरसिया जी

स्वरगोष्ठी – ७७ में आज बाँस की बाँसुरी और पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया आ ज ‘स्वरगोष्ठी’ का यह ७७ वाँ अंक है और आज की इस बैठक में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने सभी संगीत-प्रेमी पाठकों/श्रोताओं का हार्दिक स्वागत करते हुए बाँसुरी के अनन्य साधक पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया का ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से, अपनी ओर से और आप सब संगीत-प्रेमियों की ओर से अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, आज जुलाई की पहली तारीख है। आज ही के दिन १९३८ में इस महान संगीतज्ञ का जन्म हुआ था। एक साधारण सी दिखने वाली बाँस की बाँसुरी लेकर पूरे विश्व में भारतीय संगीत की विजय-पताका फहराने वाले पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया का आज ७५वाँ जन्म-दिवस अर्थात अमृत महोत्सव मनाने का दिवस है। आज ही वे अपने जीवन के सुरीले ७४ वर्ष पूर्ण कर ७५वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। आइए, ‘स्वरगोष्ठी’ में आज हम सब उन्हीं की कुछ रचनाओं से उनका अभिनन्दन करते हैं। बाँस से बनी बाँसुरी सम्भवतः सबसे प्राचीन स्वर-वाद्य है। महाभारत काल से पहले भी बाँसुरी का उल्लेख मिलता है। विष्णु के कृष्णावतार को तो ‘मुरलीधर’, ‘बंशीधर’, ‘वेणु के बजइया’ आदि नामों से सम्बोधित किया गय