Skip to main content

Posts

प्लेबैक इंडिया वाणी (5) तेरी मेरी कहानी, हिडन मिस्ट्रीज और आपकी बात

संगीत समीक्षा -  तेरी मेरी कहानी दबंग और राउडी राठौर के चालू सरीखे संगीत की अपार कामयाबी के बाद साजिद वाजिद लौटे हैं अपने चिर परिचित "दीवाना" अंदाज़ की प्रेम कहानी के साथ.  अल्बम का पहला ही गीत दिल को छू जाता है , वाजिद ने इसे खुद गाया है और प्रसून ने बहुत खूबसूरत शब्द जड़े हैं ,   ‘ मुक्तसर मुलाक़ात ’ एक दिलकश प्रेम गीत है.  राहत फ़तेह अली खान की आवाज़ का होना आजकल हर अल्बम में लाजमी है. "अल्लाह जाने" गीत मेलोडियस है और राहत की सुकून भरी आवाज़ में ढलकर और भी सुन्दर हो जाता है...प्रसून ने एक बार फिर शब्दों में गहरी कशिश भरी है.  रेट्रो अंदाज़ का "जब से मेरे दिल को उफ़" इन दिनों छोटे परदे पर जम कर प्रचारित किया जा रहा है. गीत का सबसे जबरदस्त पहलू सोनू निगम और सुनिधि की गायिकी है , जिसके कारण गीत बार बार सुनने लायक बन पड़ा है. कव्वाली अंदाज़ का "हमसे प्यार कर ले तू" भी एक दो बार सुनने के बाद होंठों पे चढ जाता है. वाजिद और श्रेया के साथ इस गाने में तडका लगाया है मिका ने. इंटर ल्यूड में अमर अकबर एंथोनी के "पर्दा है पर्दा" की झ

कहानी पॉडकास्ट: "बाप बदल" व "लड़ाई" - हरिशंकर परसाई - अर्चना चावजी

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शेफाली गुप्ता की आवाज़ में श्रीमती रीता पाण्डेय की रचना " संकठा प्रसाद लौट आये हैं " का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई के दो व्यंग्य " बाप बदल ", एवं " लड़ाई " जिन्हें स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। इन दो कहानियों का कुल प्रसारण समय 5 मिनट 29 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। मेरी जन्म-तारीख 22 अगस्त 1924 छपती है। यह भूल है। तारीख ठीक है। सन् गलत है। सही सन् 1922 है। ।  ~ हरिशंकर परसाई (1922-1995) हर शुक्रवार को "बोलती कहानियाँ" पर सुनें एक नयी कहानी "उनका सौवाँ जन्मदिन तब पड़ रहा था जब उनका लड़का मुख्यमंत्री था।" ( ह

स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल – 3

मैंने देखी पहली फिल्म भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ के दूसरे अंक में आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं, अपने सम्पादक सजीव सारथी का संस्मरण। अपने पहले अंक में ही हमने घोषित किया था कि ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के संचालक मण्डल की प्रविष्टियाँ गैरप्रतियोगी वर्ग में होंगी, अर्थात प्रतियोगिता में इन प्रविष्टियों का मूल्यांकन नहीं किया जाएगा। परन्तु जब आपकी प्रविष्टियों का सिलसिला शुरू होगा तब हमारे निर्णायक मण्डल के सदस्य उनका मूल्यांकन करेंगे। तो आइए, आज सजीव सारथी की देखी पहली फिल्म 'शोले' के संस्मरण का आनन्द लेते हैं। चा र साल का था जब दिल्ली आया। यहाँ पापा के पास एक रेडियो हुआ करता था, जर्मन मेड, जिसने मेरा परिचय फिल्म संगीत से करवाया। उन दिनों घर में टी.वी. नहीं था। वास्तव में पूरे मोहल्ले में ही कुछ गिने-चुने घरों में ही ये राजसी ठाठ उपलब्ध था और दूरदर्शन से मात्र रविवार को प्रसारित होने वाली फिल्मों और बुधवार शाम को टेलीकास्ट होने वाले चित्रगीत को देखने के लिए इन घरों में पूरे मोहल्ले के बच्च