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प्लेबैक इंडिया वाणी (4) गैंग्स ऑफ वासेपुर, एक कप चाय और आपकी बात

संगीत समीक्षा - गैंग्स ऑफ वासेपुर दोस्तों कभी कभी कोई ऐसी एल्बम आती है जिस पर चर्चा करना बेहद सुखद लगता है. गैंग्स ऑफ वासेपुर जैसा शीर्षक हो और अनुराग कश्यप का नाम उससे जुड़ा हो तो एक इमेज बनती है बेहद गंभीर किस्म के फिल्म की , जहाँ संगीत की गुंजाईश न के बराबर हो. मगर कांस फिल्म समारोह में अधिकारिक रूप से प्रदर्शित इस अनूठी फिल्म में लगभग १५ गीत हैं. संगीत है स्नेहा कंवालकर का , जो खुद पहचान है "वोमनिया" की , जैसा कि अल्बम का एक गीत भी है. संगीतकारों की पुरुष प्रधान दुनिया में एक अलग ही पहचान लेकर आयीं हैं स्नेहा. अल्बम की एक और बड़ी खासियत ये है कि इसके सभी गीत किसी स्थापित बॉलीवुड गायक/गायिकाओं ने नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश , बिहार और वेस्ट बंगाल के स्थानीय गायकों ने गाये हैं. ठेठ देसी अंदाज़ के इस अल्बम में एक मात्र स्टार हैं भोजपुरी गायक मनोज तिवारी , जिनकी आवाज़ से सजे "जिया हो" गीत से अल्बम की शुरुआत होती है. कोई ताम झाम नहीं सिर्फ और सिर्फ भोजपुरिया रंग में रंग ये गीत अल्बम की सटीक शुरुआत कर देता है. जिसके बाद आता है एक मस्त अंदाज़ का , हल्का फुल्का द

कहानी पॉडकास्ट - संकठा प्रसाद लौट आये हैं - रीता पाण्डेय

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अर्चना चावजी की आवाज़ में प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई की कथा " सुशीला " का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं श्रीमती रीता पाण्डेय की रचना " संकठा प्रसाद लौट आये हैं ", जिसको स्वर दिया है शेफाली गुप्ता ने। संकठा प्रसाद लौट आये हैं का टेक्स्ट श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय के प्रसिद्ध ब्लॉग मानसिक हलचल पर अतिथि पोस्ट के रूप में उपलब्ध है। इस कहानी का कुल प्रसारण समय 4 मिनट 24 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। जब तक कसा न जाये, तब तक कोई सक्रिय नहीं होता, न व्यक्ति न तन्त्र। ~ श्रीमती रीता पाण्डेय श्रीमती रीता पाण्डेय गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही से हैं। वे सपरिवार शिवकुटी (उ.प्र.) में रहती

स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल – 2

भूली बिसरी यादें पिछले सप्ताह से हमने एक नया साप्ताहिक स्तम्भ- ‘स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल’ आरम्भ किया है। इस श्रृंखला की दूसरी कड़ी में आज हम आपके लिए लाए हैं- ‘भूली बिसरी यादें’ शीर्षक के अन्तर्गत मूक और सवाक फिल्मों के दौर की कुछ यादें। इसके साथ-साथ आज के अंक में हम आपको 1932 में बनी फिल्म ‘मायामछिन्द्र’ का एक दुर्लभ गीत भी सुनवाएँगे। ‘भू ली बिसरी यादें’ के पहले अंक में आप सभी सिनेमा-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। पिछले अंक में ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ के अन्तर्गत हमने आपको अपने साथी सुजॉय चटर्जी का संस्मरण प्रस्तुत किया था और आपसे भारत में निर्मित पहले मूक-कथा-चलचित्र ‘राजा हरिश्चन्द्र’ के प्रदर्शन की संक्षिप्त चर्चा भी की थी। 3 मई, 1913 को मुम्बई में प्रदर्शित इस मूक फिल्म से पहले भारत में फिल्म-निर्माण के तथा भारतीय जनमानस को इस नई विधा से परिचित कराने के जो भी प्रयास किए गए थे, आज हम आपसे इसी विषय पर थोड़ी चर्चा करेंगे। ‘राजा हरिश्चन्द्र’ से पहले फिल्म 'राजा हरिश्चन्द्र' का विज्ञापन   टाइम्स ऑफ इण्डिया, मुम्बई (तब बम्बई) के 7 जुलाई

मानसून की आहटें और कवि मन की छटपटाहटें

शब्दों की चाक पर - एपिसोड 03 शब्दों की चाक पर निरंतर सज रही हैं कवितायेँ...इस बार हमने थीम दिया था अपने कवियों को "मानसून की आहटें", इससे पहले कि आप ग्रीष्म ऋतु में मानसून की आहटों पर कान धरे हमारे कवियों के मनो भाव सुनें आईये एक बार फिर समझ लें इस कार्यक्रम की रूप रेखा - 1. कार्यक्रम की क्रिएटिव हेड रश्मि प्रभा के संचालन में शब्दों का एक दिलचस्प खेल खेला जायेगा. इसमें कवियों को कोई एक थीम शब्द या चित्र दिया जायेगा जिस पर उन्हें कविता रचनी होगी...ये सिलसिला सोमवार सुबह से शुरू होगा और गुरूवार शाम तक चलेगा, जो भी कवि इसमें हिस्सा लेना चाहें वो रश्मि जी से संपर्क कर उनके फेसबुक ग्रुप में जुड सकते हैं, रश्मि जी का प्रोफाईल  यहाँ  है. 2. सोमवार से गुरूवार तक आई कविताओं को संकलित कर हमारे पोडकास्ट टीम के हेड पिट्सबर्ग से अनुराग शर्मा जी अपने साथी पोडकास्टरों के साथ इन कविताओं में अपनी आवाज़ भरेंगें. और अपने दिलचस्प अंदाज़ में इसे पेश करेगें. 3. हर मंगलवार सुबह ९ से १० के बीच हम इसे अपलोड करेंगें आपके इस प्रिय जाल स्थल पर. अब शुरू होता है कार्यक्रम का दूसरा चरण.

सिने पहेली # 25 कुछ आसानियाँ कुछ दुश्वारियाँ

सिने-पहेली # 25 (18 जून, 2012)  नमस्कार! 'सिने पहेली' के सफ़र को तय करते हुए हम सब आज आ पहुँचे हैं इस प्रतियोगिता के रूपक जयन्ती एपिसोड पर। जी हाँ, आज है 'सिने पहेली' की २५-वीं कड़ी, और इस सफ़र के इस मुकाम तक पहुँचने में हमारे हमसफ़र बने रहने के लिए मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी प्रतियोगियों को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ और आपसे आशा रखता हूँ कि आगे भी इसी तरह का साथ बना रहेगा। 'सिने पहेली' को और भी ज़्यादा मज़ेदार बनाने के लिए अगर आपके पास कोई सुझाव है तो 'सिने पहेली' के ईमेल आइडी cine.paheli@yahoo.com पर अवश्य लिखें।  और अब पिछले सप्ताह 'सिने पहेली' परिवार से जुड़ने वाले नए साथियों का स्वागत करना चाहेंगे। आप हैं लखनऊ के चन्द्रकान्त दीक्षित, सिद्धार्थ नगर, यू.पी के ओमकार सिंह, और बीकानेर, राजस्थान के विजय कुमार व्यास । आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है इस प्रतियोगिता में। आपसे निवेदन है कि हर सप्ताह इस प्रतियोगिता में हिस्सा लें और महाविजेता बन कर 5000 रुपये का नकद इनाम अपने नाम कर लें। महाविजेता बनने के लिए क्या नियम हैं, आइए उस बारे में आपको ब

हारमोनियम बनाया अंग्रेजों ने, पर बजाया भैया गणपत राव ने

स्वरगोष्ठी – ७५ में आज ठुमरी गायन और हारमोनियम वादन के एक अप्रतिम साधक : भैया गणपत राव  हारमोनियम एक ऐसा सुषिर वाद्य है जिसका प्रयोग आज देश में प्रचलित हर संगीत शैलियों में किया जा रहा है, किन्तु एक समय ऐसा भी था जब शास्त्रीय संगीत के मंचों पर यह वाद्य प्रतिबन्धित रहा। उन्नीसवीं शताब्दी के ऐसे ही सांगीतिक परिवेश में एक संगीत-पुरुष अवतरित हुआ जिसने हारमोनियम वाद्य को इतनी ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया कि आज इसे विदेशी वाद्य मानने में अविश्वास होता है। हारमोनियम वादन और ठुमरी गायन में सिद्ध इस संगीत-पुरुष का नाम है- भैया गणपत राव। भैया गणपत राव  ‘स्व रगोष्ठी’ के एक नए अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सभी संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज के अंक में हम आपसे एक ऐसे संगीत-साधक की चर्चा करेंगे, जिसके कृतित्व को जानबूझ कर उपेक्षित किया गया। ग्वालियर राज-परिवार से जुड़े भैया गणपत राव एक ऐसे ही साधक थे जिन्होने हारमोनियम वादन और ठुमरी-दादरा गायन को उन ऊँचाइयों पर पहुँचाया जिसे स्पर्श करना हर संगीतकार का स्वप्न होता है। उन्नीसवीं शताब्दी के लगभग मध्य-काल में तत्कालीन ग

प्लेबैक वाणी (3) -शंघाई, टोला और आपकी बात

संगीत समीक्षा - शंघाई खोंसला का घोंसला हो या ओए लकी लकी ओए हो, दिबाकर की फिल्मों में संगीत हटकर अवश्य होता है. उनका अधिक रुझान लोक संगीत और कम लोकप्रिय देसिया गीतों को प्रमुख धारा में लाने का होता है. इस मामले में ओए लकी का संगीत शानदार था,  “ तू राजा की राजदुलारी ’  और  “ जुगनी ”  संगीत प्रेमियों के जेहन में हमेशा ताज़े रहेंगें जाहिर है उनकी नयी फिल्म शंघाई से भी श्रोताओं को उम्मीद अवश्य रहेगी. अल्बम की शुरुआत ही बेहद विवादस्पद मगर दिलचस्प गीत से होती है जिसे खुद दिबाकर ने लिखा है.  “ भारत माता की जय ”  एक सटायर है जिसमें भारत के आज के सन्दर्भों पर तीखी टिपण्णी की गयी है. सोने की चिड़िया कब और कैसे डेंगू मलेरिया में तब्दील हो गयी ये एक सवाल है जिसका जवाब कहीं न कहीं फिल्म की कहानी में छुपा हो सकता है, विशाल शेखर का संगीत और पार्श्व संयोजन काफी लाउड है जो टपोरी किस्म के डांस को सप्पोर्ट करती है. विशाल ददलानी ने मायिक के पीछे जम कर अपनी कुंठा निकाली है. अल्बम का दूसरा गीत एक आइटम नंबर है मगर जरा हटके. यहाँ इशारों इशारों में एक बार फिर व्यंगात्मक टिप्पणियाँ की गयी है, जिसे समझ कर