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सिने-पहेली # 22 (जीतिये 5000 रुपये के इनाम)

सिने-पहेली # 22 (28 मई, 2012)  नमस्कार दोस्तों, 'सिने पहेली' की २२-वीं कड़ी लेकर मैं, सुजॉय चटर्जी, हाज़िर हूँ। जीवन में बहुत अधिक व्यस्तता की वजह से पिछले दिनों मैं आप सब से दूर रहा, 'एक गीत सौ कहानियाँ' स्तंभ भी प्रस्तुत नहीं कर पाया, जिसका मुझे बहुत अफ़सोस है। आशा करता हूँ कि जून के महीने से फिर सक्रीय हो जाऊँगा। मैं कृष्णमोहन मिश्र जी का आभारी हूँ कि समय-समय पर उनके सहयोग की वजह से 'सिने पहेली' में कभी रुकावट नहीं आई। पिछले सप्ताह 'सिने पहेली' में हमारे साथ दो नए प्रतियोगी जुड़े हैं - एक हैं न्यू जर्सी, यू.एस.ए से आनन्द अकेला और दूसरे हैं हैदराबाद से सागर चन्द नाहर । आप दोनों का बहुत बहुत स्वागत है और आपको यह सुझाव देना चाहूंगा कि अगर महाविजेता बनने का आप सपना देखते हैं तो बिना कोई एपिसोड मिस किए इस प्रतियोगिता में भाग लेते रहिए, आप ज़रूर बन सकते हैं महाविजेता। दोस्तों, आज 'सिने पहेली' में मैं आपके लिए एक नई चुनौती लेकर आया हूँ। पाँच सवालों का सिलसिला तो बहुत हो गया, क्यों न आज की कड़ी में कुछ अलग हट के किया जाए। वर्ग पहेली के ब

दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर : ९२वें जन्मदिवस पर स्मरण

स्वरगोष्ठी – ७२ में आज - ‘रघुपति राघव राजाराम...’  वह संगीत, जिससे महात्मा गाँधी ने भी प्रेरणा ग्रहण की थी  भारतीय संगीत को जनसामान्य में प्रतिष्ठित स्थान दिलाने में जिन शिखर-पुरुषों का आज हम स्मरण करते हैं , उनमें एक नाम पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर का है। मात्र ३४ वर्ष की आयु में ही उन्होने भारतीय संगीत के कोश को समृद्ध कर इस नश्वर जगत से विदा ले लिया था। कल २८ मई को इस महान संगीतज्ञ ९२ वीं जयन्ती है। इस अवसर पर ‘ रेडियो प्लेबैक इण्डिया ’ की ओर से श्रद्धेय पलुस्कर जी की स्मृतियों को सादर नमन है।   ‘स्व रगोष्ठी’ के एक नये अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज हम एक ऐसे संगीतज्ञ के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आपसे चर्चा करेंगे, जिन्होने अपने छोटे से जीवन-काल में भारतीय संगीत को असाधारण रूप से समृद्ध किया। आज हम चर्चा कर रहे हैं, पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर, जिनका जन्म २८ मई, १९२१ को नासिक, महाराष्ट्र में, भारतीय संगीत के उद्धारक पण्डित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर की बारहवीं सन्तान के रूप में

"सत्य" कड़वा, संगीत मधुर - सिंड्रेला

आपने देखा उनके जीवन का सत्य, हम सुनायेंगें उनके ह्रदय का संगीत दोस्तों, आपने इन्हें देखा, आमिर खान के लोकप्रिय टी वी शो "सत्यमेव जयते" में. शो का वो एपिसोड सिन्ड्रेला प्रकाश के व्यक्तिगत जीवन पर अधिक केंद्रित था, पर कहीं न कहीं एक झलक हमें सुनाई दी, उनकी ऊर्जा से भरी, और उम्मीद को रोशनी से संवरी आवाज़ की. तो हमने सोचा कि क्यों न उनके इस पक्ष से हम अपने श्रोताओं को परिचित करवायें. एक संक्षिप बातचीत के जरिये हम जानेगें सिन्ड्रेला के गायन और संगीत के बारे में, साथ ही सुनेंगें उनके गाये हुए कुछ गीत भी.... देखिये सिंड्रेला का एपिसोड सत्यमेव जयते पर सजीव - सिन्ड्रेला, आपका बहुत बहुत स्वागत है रेडियो प्लेबैक इंडिया पर... सिंड्रेला - शुक्रिया सजीव सजीव - बात शुरुआत से करते हैं, संगीत से जुड़ाव कैसे हुआ ? सिंड्रेला - संगीत परमेश्वर का दिया हुआ तोहफा है. मैं बचपन से ही गाती हूँ, मम्मी ने मुझे वोकल और वोइलिन की शिक्षा दिलवाई. इसके बाद मैंने गिटार भी सीखा, मेरा पूरा परिवार संगीत से जुड़ा हुआ है. पापा और मम्मी दोनों गाते थे. भाई पियानो में रूचि रखता है. संगीत से भी ज्याद

गिरिजेश राव की कहानी "गुम्मी"

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने युवा लेखक अभिषेक ओझा की कहानी " "अच्छा बुरा" " का पॉडकास्ट एकता अग्रवाल की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं गिरिजेश राव की कहानी " गुम्मी ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "गुम्मी" का कुल प्रसारण समय 4 मिनट 14 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट एक आलसी का चिठ्ठा पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। "पास बैठो कि मेरी बकबक में नायाब बातें होती हैं। तफसील पूछोगे तो कह दूँगा,मुझे कुछ नहीं पता " ~ गिरिजेश राव हर हफ्ते रेडियो प्लेबैक पर सुनें एक नयी कहानी "वे दोनों बहुत नाराज़ हुए कि रात को ही बताना था। असल में वे सुखदा में घबराहट की कमी देख कु

"ब्लोग्गर्स चोईस" के पहले सत्र का समापन मेरी पसंद के गीतों के साथ -रश्मि प्रभा

गीतों से शुरू होता है जीवन - कभी माँ की लोरी से, कभी गुड़िया की कहानी से. एड़ी उचकाकर जब मैं खुद गाती थी तो सारी दुनिया अपनी लगती थी ... उसी एड़ी की मासूमियत से शुरू करती हूँ अपनी पसंद - नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए .. . मैं बहुत डरती थी, डरती भी हूँ (किसी को बताइयेगा मत, भूत सुन लेगा - हाहाहा ) . जब अपने पापा के स्कूल के एक गेट से दूसरे गेट तक अकेली पड़ जाती थी तो भूत को भ्रमित करने के लिए और खुद को हिम्मत देने के लिए गाती थी - मैं हूँ भारत की नार लड़ने मरने को तैयार ... एक ख़ास उम्र और वैसे ख्वाब .... गीत तो कई थे , पर यह गीत एक समर्पित सा एहसास देता है .... बच्चों के बीच मेरे पैरों में एक अदभुत शक्ति आ जाती, और मैं कहानियों की पिटारी बन जाती .... अपना वह पिटारा आज भी मेरी पसंद में है, जिसे अब मैं अपने सूद को दूंगी यानि ग्रैंड चिल्ड्रेन को .... मेरे बच्चे मेरी ज़िन्दगी और मैं उनकी वह दोस्त माँ , जो उनके चेहरे से मुश्किलों की झलकियाँ मिटा दे ..... यह गीत हमारी पसं

सिने-पहेली # 21 (जीतिये 5000 रुपये के इनाम)

सिने-पहेली # 21 (21 मई, 2012) न मस्कार, दोस्तों। आज है 'सिने पहेली' की 21वीं कड़ी, यानी आज इस प्रतियोगिता के तीसरे सेगमेण्ट की पहली कड़ी है और इसे हम सबके प्रिय सुजॉय चटर्जी की व्यस्तता के कारण मैं कृष्णमोहन मिश्र, प्रस्तुत करते हुए आप सभी का स्वागत कर रहा हूँ। इससे पहले कि आज की 'सिने पहेली' का सिलसिला शुरू हो, सेगमेण्ट के विजेता की घोषणा करना आवश्यक है। यूँ तो इस प्रतियोगिता के नियमित प्रतिभागियों ने तो विजेता का अनुमान लगा ही लिया होगा। दोस्तों, हमारे दूसरे सेगमेण्ट के विजेता हुए हैं- लखनऊ के प्रकाश गोविन्द , जिन्होने 49 अंक अर्जितकर सर्वोच्च स्थान पर रहे। बैंगलुरु के पंकज मुकेश ने प्रकाश जी को कड़ी टक्कर देते हुए दूसरा स्थान और मुम्बई के रीतेश खरे ने तीसरा स्थान प्राप्त किया है। इन दोनों प्रतिभागियों को क्रमशः 45 और 42 अंक मिले हैं। चौथे स्थान पर 34 अंक लेकर अमित चावला और पांचवें स्थान पर 32 अंक पाकर क्षिति तिवारी ने स्वयं को दर्ज़ कराया है। इन प्रतिभागियों को ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से हार्दिक बधाई। इनके साथ-साथ दूसरे सेगमेण्ट की प्रतियोगिता मे

गीत उस्तादों के : चर्चा राग सोहनी की

स्वरगोष्ठी – ७१ में आज राग सोहनी के स्वरों का जादू : 'प्रेम जोगन बन के...' पटियाला कसूर घराने के सिरमौर, उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ पिछली शताब्दी के बेमिसाल गायक थे। अपनी बुलन्द गायकी के बल पर संगीत-मंचों पर लगभग आधी शताब्दी तक उन्होने अपनी बादशाहत को कायम रखा। पंजाब अंग की ठुमरियों के वे अप्रतिम गायक थे। संगीत-प्रेमियों को उन्होने संगीत की हर विधाओं से मुग्ध किया, किन्तु फिल्म संगीत से उन्हें परहेज रहा। एकमात्र फिल्म- ‘मुगल-ए-आजम’ में उनके गाये दो गीत हैं। आज की ‘स्वरगोष्ठी’ में हम इनमें से एक गीत पर चर्चा करेंगे। शा स्त्रीय, उपशास्त्रीय, लोक और फिल्म संगीत पर केन्द्रित साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नये अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने सभी पाठकों-श्रोताओं का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, हमारे कई संगीत-प्रेमियों ने फिल्म संगीत में पटियाला कसूर घराने के विख्यात गायक उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ के योगदान पर चर्चा करने का आग्रह किया था। आज का यह अंक हम उन्हीं की फरमाइश पर प्रस्तुत कर रहे हैं। भारतीय फिल्मों के इतिहास में १९५९ में बन कर तैयार फिल्म- ‘मुगल