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सिने-पहेली # 20 (जीतिये 5000 रुपये के इनाम)

सिने-पहेली # 20 (14 मई, 2012)  नमस्कार दोस्तों, आज है 'सिने पहेली' की 20-वीं कड़ी, यानी आज इस प्रतियोगिता के दूसरे सेगमेण्ट की अंतिम कड़ी है और इसमें मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का फिर एक बार स्वागत करता हूँ। इस सप्ताह 'सिने पहेली' परिवार के साथ कोई नया प्रतियोगी तो नहीं जुड़ा लेकिन हमारी एक पुरानी नियमित साथी क्षिति तिवारी प्रतियोगिता में वापस आ गईं हैं। दूसरे सेगमेण्ट में वो पीछे रह गईं ज़रूर पर हम उम्मीद करते हैं कि अगले सेगमेण्ट में वो दूसरे प्रतियोगियों को कड़ी टक्कर देंगी। इस सप्ताह शुभम जैन जी और कृतिका जी प्रतियोगिता में शामिल नही हुईं। जैसा कि हमने पिछली बार भी बताया था कि अगर आपको सेगमेण्ट विनर या महाविजेता बनना है तो यह बहुत ही ज़्यादा ज़रूरी है कि आप हर एपिसोड में हिस्सा लें। एक एपिसोड से आप खिसके कि दूसरों से पाँच अंक पीछे रह गए। अत: हम सभी प्रतियोगियों से यह दरख्वास्त करते हैं कि 'सिने पहेली' प्रतियोगिता को गम्भीरता से लें और 5000 रुपये के इनाम को अपने नाम कर लें। क्यों देना है यह पुरस्कार किसी और को जब आप में है इसे जीतने की काबलीयत? 

भोजपुरी के शेक्सपीयर पद्मश्री भिखारी ठाकुर

स्वरगोष्ठी - ७० में आज एक लोक-कलाकार, जो आजन्म रूढ़ियों के विरुद्ध संघर्षरत रहा लोक-कलाकारों का सही-सही मूल्यांकन प्रायः हम उनके जीवनकाल में नहीं कर पाते। भोजपुरी के कवि, गायक, संगीतकार, नाटककार, अभिनेता, निर्देशक और नर्तक भिखारी ठाकुर भी एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिनके कार्यों का वास्तविक मूल्यांकन उनके जाने के बाद ही हुआ। उन्होने लोक-कला-विधाओं का उपयोग, तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध किया। शा स्त्रीय, उपशास्त्रीय और लोक-संगीत पर केन्द्रित अपने साप्ताहिक स्तम्भ 'स्वरगोष्ठी' के एक नये अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों आज लोक-कला की बारी है और आज के अंक में हम आपसे भोजपुरी साहित्य और कला-क्षेत्र के एक बहुआयामी व्यक्तित्व- भिखारी ठाकुर और उनके कृतित्व पर चर्चा करेंगे। १८ दिसम्बर, १८८७ को बिहार के सारण जिला-स्थित कुतुबपुर दियारा ग्राम में एक नाई परिवार में इस महाविभूति का जन्म हुआ था। भिखारी ठाकुर का जन्म एक ऐसे भारतीय परिवेश में हुआ था, जब भारतीय मान्यताएँ ब्रिटिश सत्ता के आतंक के कारण पतनोन्मुख

वापसी को तैयार स्वप्न सुंदरियाँ

एक दौर था जब अभिनेत्रियों का करियर बेहद सीमित हुआ करता था, मगर अब विवाहित और माँ बन चुकी अभिनेत्रियों के लिए भी विषय चुनकर उन्हें वापसी का मौका दिया जा रहा है. आईये इस श्रृंखला में नज़र दौडाएं कुछ ऐसी ही वापसी को तैयार बीते दौर की स्वप्न सुंदरियों पर.

हरिशंकर परसाई की कहानी "अश्‍लील"

इस साप्ताहिक स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर शुक्रवार को आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने रचना बजाज जी की कहानी " अपनापन " सुनी थी अर्चना चावजी के स्वर में। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई का व्यंग्य अश्‍लील जिसे स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "अश्‍लील" का टेक्स्ट कबाड़खाना पर उपलब्ध है। इस कथा का कुल प्रसारण समय 2 मिनट 46 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। मेरी जन्म-तारीख 22 अगस्त 1924 छपती है। यह भूल है। तारीख ठीक है। सन् गलत है। सही सन् 1922 है। । ~ हरिशंकर परसाई (1922-1995) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी अखबारों में समाचार और नागरिकों के पत्र छपते कि सड़कों के किनारे खुलेआम अश्‍लील पुस्‍तकें बिक रह

"ससुराल गेंदा फूल..." - क्यों की जाती है ससुराल की तुलना गेंदे के फूल से?

'डेल्ही-६' फ़िल्म में "ससुराल गेंदा फूल" गीत ने हम सभी को कम या ज़्यादा थिरकाया ज़रूर है। छत्तीसगढ़ी लोक गीत पर आधारित इस गीत के बनने की कहानी के साथ-साथ जानिये कि ससुराल को क्यों गेंदे का फूल कहा जाता है। 'एक गीत सौ कहानियाँ' की 19वीं कड़ी में सुजॉय चटर्जी के साथ... एक गीत सौ कहानियाँ # 19 हि न्दी फ़िल्मी गीतों में लोक-संगीत के प्रयोग की बात करें तो उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, पंजाब और महाराष्ट्र राज्यों के लोक-संगीत का ही सर्वाधिक प्रयोग इस क्षेत्र में हुआ है। पहाड़ी पृष्ठभूमि पर बनने वाले गीतों में हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, उत्तरांचल और उत्तर बंगाल व उत्तर-पूर्व के लोक धुनों का इस्तेमाल भी समय-समय पर होता आया है। पर छत्तीसगढ़ के लोक-संगीत की तरफ़ फ़िल्मी संगीतकारों का रुख़ उदासीन ही रहा है। हाल के वर्षों में दो ऐसी फ़िल्में बनी हैं जिनमें छत्तीसगढ़ी लोक-संगीत का सफल प्रयोग हुआ है। इसमें एक है आमिर ख़ान की फ़िल्म 'पीपली लाइव', जिसमें रघुवीर यादव और साथियों का गाया "महंगाई डायन" और नगीन तनवीर का गाया "चोला माटी के राम"