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२५ अप्रैल- आज का गाना

गाना:  सागर किनारे दिल ये पुकारे चित्रपट:  सागर संगीतकार: राहुलदेव बर्मन गीतकार: जावेद अख्तर स्वर:  किशोर कुमार, लता सागर किनारे दिल ये पुकारे तू जो नहीं तो मेरा कोई नहीं है सागर किनारे   ... जागे नज़ारे, जागी हवाएं जब प्यार जागा, जागी फ़िज़ाएं हो पल भर को दिल की दुनिया सोयी नहीं है सागर किनारे   ... लहरों पे नाचें, किरणों की परियाँ मैं खोई जैसे, सागर में नदिया हो तू ही अकेली तो खोई नहीं है सागर किनारे   ...

सब कुछ सीख कर भी अनाड़ी रही रंजना भाटिया

रंजना भाटिया जी .... जब मैंने ब्लॉग पढ़ना शुरू किया तो यह मेरी पहली पसंद बनीं. जो सोचता है ख़ास, लिखता है ख़ास तो उसकी पसंद के गीत....होंगे ही न ख़ास. उनके शब्दों से सुनिए - नमस्ते रश्मि जी ...गाने सुनना तो बहुत पसंद है और उस में से पांच गाने चुनना बहुत मुश्किल काम है ...पर कोशिश करती हूँ .... अजीब दास्तां है ये कहाँ शुरू कहाँ खतम ये मंज़िलें है कौन सी न वो समझ सके न हम अजीब दास्तां... फ़िल्म - दिल अपना और प्रीत पराई गायिका - लता मंगेशकर पसंद है इस लिए क्यों कि इस गीत में ज़िन्दगी कि सच्चाई है, एक ऐसी दास्तान जो ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सच ब्यान करती है ...और ज़िन्दगी गुजर जाती है समझते समझाते ... सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी सच है दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी दुनिया ने कितना समझाया कौन है अपना कौन पराया फिर भी दिल की चोट छुपा कर हमने आपका दिल बहलाया खुद पे मर मिटने की ये ज़िद थी हमारी... सच है दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी सही में मैं अनाड़ी ही रही ..और दुनिया अपना काम कर गयी ..फिर भी आज तक कोई समझ नहीं पाया ...यह गाना खुद पर लिखा महसूस होता है इ

२४ अप्रैल- आज का गाना

गाना:  जलता है बदन चित्रपट:  रज़िया सुल्तान संगीतकार: खैय्याम स्वर:  लता जलता है बदन हो ... हाय! जलता है बदन प्यास भड़की है प्यास भड़की है सरे शाम से जलता है बदन \- २ इश्क़ से कह दो कि ले आए कहीं से सावन प्यास भड़की है सरे शाम से जलता है बदन जलता है बदन \- २ जाने कब रात ढले, सुबह तक कौन जले दौर पर दौर चले, आओ लग जाओ गले आओ लग जाओ गले कम हो सीने की जलन प्यास भड़की है सरे शाम से जलता है बदन जलता है बदन \- ३ ओ आह! जलता है बदन देख जल जाएंगे हम, इस तबस्सुम की कसम अब निकल जायेगा दम, तेरे बाहों में सनम दिल पे रख हाथ कि थम जाये दिल की धड़कन प्यास भड़की है सरे शाम से जलता है बदन जलता है बदन इश्क़ से कह दो के ले आये कहीं से सावन प्यास भड़की है सरे शाम से जलता है बदन जलता है बदन \- २ ओ ... हाय जलता है बदन जलता है बदन ...

सिने-पहेली # 17 (जीतिये 5000 रुपये के इनाम)

सिने-पहेली # 17 (23 अप्रैल, 2012)  नमस्कार दोस्तों, 'सिने पहेली' की १७-वीं कड़ी में मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का फिर एक बार स्वागत करता हूँ। दोस्तों, 'सिने पहेली' में इस सप्ताह हमारे साथ तीन प्रतियोगी और जुड़े हैं, इनमें एक हैं नई दिल्ली से शुभ्रा शर्मा (जो आकाशवाणी की जानी-मानी समाचारवाचिका भी हैं), दूसरी हैं दुबई से कृतिका, और तीसरी हैं पटना की राजेश प्रिया। आप तीनों का 'सिने पहेली' में बहुत-बहुत स्वागत है और आपसे अनुरोध करते हैं कि आगे भी नियमित रूप से 'सिने पहेली' में भाग लेते रहिएगा और कोशिश कीजिएगा कि 'सिने पहेली' के महाविजेता बन कर 5000 रुपये का इनाम अपने नाम कर लें। आपके लिए और अन्य सभी नए प्रतियोगियों के लिए 'सिने पहेली' महाविजेता बनने के नियम दोहरा देते हैं। हमने इस प्रतियोगिता को दस-दस कड़ियों के सेगमेण्ट्स में विभाजित किया है (वर्तमान में दूसरा सेगमेण्ट चल रहा है)। इस तरह से १००-वें अंक तक १० सेगमेण्ट्स हो जाएँगे, और हर सेगमेण्ट का एक विजेता घोषित होगा (पहले सेगमेण्ट के विजेता रहे प्रकाश गोविंद)। इस तरह से १० सेगमेण्

२३ अप्रैल- आज का गाना

गाना:  तुम मुझे यूँ, भुला ना पाओगे चित्रपट:  पगला कहीं का संगीतकार: शंकर - जयकिशन गीतकार: हसरत जयपुरी स्वर:  रफ़ी तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे संग संग तुम भी गुनगुनाओगे हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे हो तुम मुझे यूँ ... (वो बहारें वो चांदनी रातें हमने की थी जो प्यार की बातें ) \- २ उन नज़ारों की याद आएगी जब खयालों में मुझको लाओगे हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे हो तुम मुझे यूँ ... (मेरे हाथों में तेरा चेहरा था जैसे कोई गुलाब होता है ) \- २ और सहारा लिया था बाहों का वो शाम किस तरह भुलाओगे हाँ तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे हो तुम मुझे यूँ ... (मुझको देखे बिना क़रार ना था एक ऐसा भी दौर गुज़रा है ) \- २ झूठ मानूँ तो पूछलो दिल से मैं कहूंगा तो रूठ जाओगे हाँ तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे जब कभी भी ...

हिन्दी फिल्मी गीतों में रवीद्र संगीत - एक शोध

स्वरगोष्ठी – ६७ में आज रवीन्द्र-सार्द्धशती वर्ष में विशेष ‘पुरानो शेइ दिनेर कथा...’ ज हाँ एक ओर फ़िल्म-संगीत का अपना अलग अस्तित्व है, वहीं दूसरी ओर फ़िल्म-संगीत अन्य कई तरह के संगीत पर भी आधारित रही है। शास्त्रीय, लोक और पाश्चात्य संगीत का प्रभाव फ़िल्म-संगीत पर हमेशा रहा है और आज भी है। उधर बंगाल की संस्कृति में रवीन्द्र संगीत एक मुख्य धारा है, जिसके बिना बांग्ला संगीत, नृत्य और साहित्य अधूरा है। समय-समय पर हिन्दी सिने-संगीत-जगत के कलाकारों ने रवीन्द्र-संगीत को भी फ़िल्मी गीतों का आधार बनाया है। इस वर्ष पूरे देश मेँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की १५०वीं जयन्ती मनायी जा रही है। इस उपलक्ष्य मेँ हम भी उन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं। ‘स्व रगोष्ठी’ के सभी संगीत रसिकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! इस स्तम्भ के वाहक कृष्णमोहन जी की पारिवारिक व्यस्तता के कारण आज का यह अंक मैं सुजॉय चटर्जी प्रस्तुत कर रहा हूँ। कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर के लिखे गीतों का, जिन्हें हम "रवीन्द्र-संगीत" के नाम से जानते हैं, बंगाल के साहित्य, कला और संगीत पर ज

२२ अप्रैल- आज का गाना

गाना:  मत मारो शाम पिचकारी चित्रपट:  दुर्गेश नन्दिनी संगीतकार: हेमंत कुमार गीतकार: राजिंदर कृष्ण स्वर:  लता मत मारो शाम पिचकारी मोरी भीगी चुनरिया सारी रे... नाजुक तन मोरा रंग न डारो शामा अंग-अंग मोर फड़के रंग पड़े जो मोरे गोरे बदन पर रूप की ज्वाला भड़के कित जाऊँ मैं लाज की मारी रे मत मारो शाम... काह करूँ कान्हा, रूप है बैरी मेरा रंग पड़े छिल जाये देखे यह जग मोहे, तिरछी नजरिया से मोरा जिया घबराये कित जाऊँ मैं लाज की मारी रे मत मारो शाम...