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आज छुपा है चाँद - नया ओरिजिनल - वरिष्ठ कवि पिता और युवा संगीतकार पुत्र की संगीतमयी बैठक

कवि महेंद्र भटनागर  दोस्तों लीजिए पेश है वर्ष २०१२ का एक और प्लेबैक ओरिजिनल. ये गीत है वरिष्ठ कवि मेहन्द्र भटनागर का लिखा जिसे स्वरबद्ध किया और गाया है उन्हीं के गुणी सुपुत्र कुमार आदित्य ने, जो कि एक उभरते हुए गायक संगीतकार हैं. सुनें और टिप्पणियों के माध्यम से सम्न्बधित फनकारों तक पहुंचाएं. गीत के बोल - नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ? मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ नीरव जलने वाले तारो ! मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ अविरल बहने वाली धारो ! सागर की किस गहराई में आज छिपा है चाँद ? नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ? ॰ मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ मन्थर मुक्त हवा के झोंको ! जिसने चाँद चुराया मेरा उसको सत्वर भगकर रोको ! नयनों से दूर बहुत जाकर आज छिपा है चाँद ? नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ? ॰ मैं पूछ रहा हूँ तुमसे ओ तरुओ ! पहरेदार हज़ारों, चुपचाप खड़े हो क्यों ? अपने पूरे स्वर से नाम पुकारो ! दूर कहीं मेरी दुनिया से आज छिपा है चाँद ! नभ के किन परदों के पीछे आज छिपा है चाँद ? संगीतकार गायक कुमार आदित्य 

१४ अप्रेल- आज का गाना

गाना: कौन ये आया महफ़िल में, बिजली सी चमकी दिल में चित्रपट: दिल दे के देखो संगीतकार: उषा खन्ना गीतकार: मजरूह सुलतान पुरी स्वर: आशा, रफ़ी कौन ये आया महफ़िल में बिजली सी चमकी दिल में उजला मुखड़ा काला तिल होंठ गुलाबी जैसे दिल रंग\-ए\-बदन तौबा तौबा आँख मिली तो क्या होगा हाय ओ ओ दिलरुबा मेरी नीता प्यार किया है तो फिर निभाना आज खुल के यूँ आँख मिलाना देखता रहे ग़म ये ज़माना हो ओ हो ओ हो ओ ओ ओ ओ ओ तू जो है मेरी बाहों में जलते है दीपक राहों में खाबों की बस्ती है ज़मीं आज है दुनिया कितनी हंसीं दिल से दिल का साथ रहे जीवन भर ये रात रहे हाय ओ ओ दिलरुबा मेरी नीता

ऑडियो कहानी: कौव्वा (विष्णु बैरागी)

इस साप्ताहिक स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर शुक्रवार को आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में उन्हीं की कहानी "भोला" का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं श्रीयुत सुरेशचन्द्रजी करमरकर के पत्र पर आधारित एक किस्सा " कौव्वा " जिसे विष्णु बैरागी जी के ब्लॉग एकोऽहम् से लिया गया है। इसे स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "कौव्वा" का कुल प्रसारण समय 2 मिनट 32 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।  इस कथा का टेक्स्ट एकोऽहम् ब्लॉग पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। भ्रष्टाचार का लालच मनुष्य की आत्मा को मार देता है।  ~ विष्णु बैरागी हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी संयोग की बात कि ये सज्जन अगले दिन फिर बिना हेलमेट के निकल पड़े और एक चौ

१३ अप्रेल- आज का गाना

गाना: जीवन के दिन छोटे सही हम भी बड़े दिल वाले चित्रपट: बड़े दिल वाला संगीतकार: राहुलदेव बर्मन गीतकार: मजरूह सुलतान पुरी स्वर: किशोर कुमार (जीवन के दिन छोटे सही, हम भी बड़े दिल वाले कल की हमें फ़ुर्सत कहाँ, सोचें जो हम मतवाले) \-२ जीने का रँगीन मौसम, ये खूबसूरत ज़माना \-२ अपने यही चार पल हैं, आगे है क्या किसने जाना जीना जिसे आता है वो इनमें ही मौज मना ले जीवन के दिन ... ये ज़िंदगी दर्द भी है, ये ज़िंदगी है दवा भी \-२ दिल तोड़ना ही न जाना, जाने ये दिल जोड़ना भी इस ज़िंदगी का शुक्रिया, सदके मैं ऊपर वाले कल की हमें फ़ुर्सत कहाँ, सोचें जो हम दिल वाले जीवन के दिन ...

जासूस बॉलीवुड के

गोलियों की बरसात उसे छू भी नहीं पाती, उसका दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता है, वो भेष बदल कर किसी को भी चकमा दे देता है, देश और दुनिया को बचाने के लिए वो जान पर भी खेल जाता है. ये हैं फ़िल्मी जासूस. जासूसी फिल्मों का ये जोनर हमारी हिंदी फिल्मों में बेहद कंजूसी से इस्तेमाल हुआ है जबकि होलीवुड में इनकी भरमार है जहाँ बोंड, होक और हिच्कोक दर्शकों को सालों से मनोरजन दे रहे हैं. कुछ दिनों पहले प्रदर्शित एजेंट विनोद ने नए सिरे से हमारे लिए इस जोनर को परिभाषित किया, चलिए जरा गुजरे ज़माने में झाके और देखें की किन किन जासूसो ने इससे पहले हमारे दिलों पर राज़ किया है.

१२ अप्रेल- आज का गाना

गाना: मेरे साजन हैं उस पार चित्रपट: बंदिनी संगीतकार: सचिन देव बर्मन गीतकार: शैलेन्द्र स्वर: सचिन देव बर्मन ओ रे माझी ओ रे माझी ओ ओ मेरे माझी मेरे साजन हैं उस पार, मैं मन मार, हूँ इस पार ओ मेरे माझी, अबकी बार, ले चल पार, ले चल पार मेरे साजन हैं उस पार... हो मन की किताब से तू, मेरा नाम ही मिटा देना गुन तो न था कोई भी, अवगुन मेरे भुला देना मुझको तेरी बिदा का... मुझको तेरी बिदा का मर के भी रहता इंतज़ार मेरे साजन... मत खेल जल जाएगी, कहती है आग मेरे मन की मत खेल... मत खेल जल जाएगी, कहती है आग मेरे मन की मैं बंदिनी पिया की चिर संगिनी हूँ साजन की मेरा खींचती है आँचल... मेरा खींचती है आँचल मन मीत तेरी हर पुकार मेरे साजन हैं उस पार ओ रे माझी ओ रे माझी ओ ओ मेरे माझी मेरे साजन हैं उस पार...

"बाबुल मोरा नैहर छूट ही जाए" - कुंदनलाल सहगल की जयन्ती पर इस ठुमरी से संबंधित कुछ रोचक तथ्य

कई बार कुछ उक्तियाँ लोककंठ में इस प्रकार समा जाते हैं कि कभी-कभी तो उनका आगा-पीछा ही समझ में नहीं आता, कभी उसके अर्थ का अनर्थ होता रहता है और पीढी-दर-पीढी हम उस भ्रान्ति को ढोते रहते हैं। "देहरी भई बिदेस" भी ऐसा ही उदाहरण है जो कभी था नहीं, किन्तु कुन्दनलाल सहगल द्वारा गाई गई कालजयी ठुमरी में भ्रमवश इस प्रकार गा दिये जाने के कारण ऐसा फैला कि इसे गलत बतलाने वाला पागल समझे जाने के खतरे से शायद ही बच पाये। आज, ११ अप्रैल, सहगल साहब की जयन्ती पर इसी विषय पर चर्चा 'एक गीत सौ कहानियाँ' की १५-वीं कड़ी में सुजॉय चटर्जी के साथ... एक गीत सौ कहानियाँ # 15 १९३८ में 'न्यू थिएटर्स' की फ़िल्म ‘स्ट्रीट सिंगर’ ने एक बार फिर से १९३७ की फ़िल्म ‘विद्यापति’ जैसी विजयगाथा दोहराई। दोनों ही फ़िल्मों में रायचन्द बोराल का संगीत था। 'स्ट्रीट सिंगर' में कुंदनलाल सहगल और कानन देवी की जोड़ी पहली बार पर्दे पर नज़र आई और फ़िल्म सुपर-डुपर हिट हुई। बतौर निर्देशक यह फणि मजुमदार की भी पहली फ़िल्म थी। ‘स्ट्रीट सिंगर’ की कहानी दो बाल्यकाल के मित्रों – भुलवा (सहगल) और मंजू (कानन