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डाकू ड्रामा - हिंदी फिल्मों के यादगार डाकू किरदार

तिग्मांशु धुलिया की नयी फिल्म में इरफ़ान खान ने "पान सिंह तोमर" की भूमिका निभायी है. पग बाधा दौड के एक राष्ट्रीय चेम्पियन की डकैत में तब्दील हो जाने की वास्तविक कथा है ये, जिसे इरफ़ान ने परदे पर साकार किया है. यूं आज की पीढ़ी के लिए डाकू या डकैत हैरत पैदा कर सकते हों पर नब्बे के दशक तक भी देश के कई बीहड़ इलाकों में अनेकों डाकुओं की सक्रियता देखी गयी थी इनमें से कुछ तो लोगों की नज़र में किसी हीरो से कम बिसात नहीं रखते थे, पान सिंह भी उन्हीं में से एक था. फ़िल्मी परदे पर भी अनेकों अभिनेताओं ने समय समय पर डाकुओं की भूमिका कर कभी दर्शकों की नफ़रत तो कभी सहानुभूति "लूटी" है. कुछ कलाकार इन भूमिकाओं में इतना यादगार अभिनय कर गए हैं कि यही भूमिका उनके अभिनय सफर की पहचान कहलाई जाने लगी. डाकू नामा में आईये कुछ ऐसे ही यादगार किरदारों पर नज़र दौडाएं.

३१ मार्च- आज का गाना

गाना: ऐ मालिक तेरे बंदे हम चित्रपट: दो आँखे बारह हाथ संगीतकार: वसंत देसाई गीतकार: भरत व्यास स्वर: लता मंगेशकर ऐ मालिक तेरे बंदे हम ऐ मालिक तेरे बंदे हम ऐसे हो हमारे करम नेकी पर चलें और बदी से टलें ताकि हंसते हुये निकले दम ऐ मालिक तेरे बंदे हम जब ज़ुलमों का हो सामना तब तू ही हमें थामना वो बुराई करें हम भलाई भरें नहीं बदले की हो कामना बढ़ उठे प्यार का हर कदम और मिटे बैर का ये भरम ऐ मालिक तेरे बंदे हम ये अंधेरा घना छा रहा तेरा इनसान घबरा रहा हो रहा बेखबर कुछ न आता नज़र सुख का सूरज छिपा जा रहा है तेरी रोशनी में वो दम जो अमावस को कर दे पूनम ऐ मालिक तेरे बंदे हम बड़ा कमज़ोर है आदमी अभी लाखों हैं इसमें कमीं पर तू जो खड़ा है दयालू बड़ा तेरी कृपा से धरती थमी दिया तूने हमें जब जनम तू ही झेलेगा हम सबके ग़म ऐ मालिक तेरे बंदे हम

बोलती कहानियाँ - मेले का ऊँट - बालमुकुन्द गुप्त

 'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने  रीतेश खरे "सब्र जबलपुरी" की आवाज़ में निर्मल वर्मा की डायरी ' धुंध से उठती धुंध ' का अंश " क्या वे उन्हें भूल सकती हैं का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं बालमुकुन्द गुप्त का व्यंग्य " मेले का ऊँट , जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। इस प्रसारण का कुल समय 7 मिनट 33 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। समझ इस बात को नादां जो तुम में कुछ भी गैरत हो, न कर उस काम को हरगिज कि जिसमें तुझको जिल्लत हो।  ~  "बालमुकुन्द गुप्त" (1865 - 1907) हर शुक्रवार को यहीं पर सुनें एक नयी कहानी न जाने आप घर से खाकर गये थे या नहीं ... ( बालमुकुन्द गुप्त की "मेले का ऊँट" से एक