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"न किसी की आँख का नूर हूँ" - क्या इस ग़ज़ल के शायर वाक़ई बहादुर शाह ज़फ़र हैं?

पौराणिक, धार्मिक व ऐतिहासिक फ़िल्मों के जौनर में संगीतकार एस. एन. त्रिपाठी का नाम सर्वोपरि है। आज उनकी पुण्यतिथि पर उनके द्वारा स्वरबद्ध बहादुर शाह ज़फ़र की एक ग़ज़ल की चर्चा 'एक गीत सौ कहानियाँ' में सुजॉय चटर्जी के साथ। साथ ही बहस इस बात पर कि क्या इस ग़ज़ल के शायर ज़फ़र ही हैं या फिर कोई और? एक गीत सौ कहानियाँ # 13 फ़ि ल्म निर्माण के पहले दौर से ही पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक फ़िल्मों का अपना अलग जौनर रहा है, अपना अलग जगत रहा है। और हमारे यहाँ ख़ास तौर से यह देखा गया है कि अगर किसी कलाकार ने इस जौनर में एक बार क़दम रख दिया तो फिर इससे बाहर नहीं निकल पाया। शंकरराव व्यास, अविनाश व्यास, चित्रगुप्त और एस. एन. त्रिपाठी जैसे संगीतकारों के साथ भी यही हुआ। दो चार बड़ी बजट की सामाजिक फ़िल्मों को अगर अलग रखें तो इन्हें अधिकतर पौराणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, स्टण्ट और फ़ैंटसी फ़िल्मों में ही काम मिले। पर इस क्षेत्र में इन संगीतकारों ने अपना उत्कृष्ट योगदान दिया और इस जौनर की फ़िल्मों को यादगार बनाया। एस. एन. त्रिपाठी की बात करें तो काव्य की सुन्दरता, मधुरता, शीतलता, सहजता औ

२८ मार्च- आज का गाना

गाना: जय-जय हे जगदम्बे माता चित्रपट: गंगा की लहरें संगीतकार: चित्रगुप्त गीतकार: मजरूह सुल्तानपुरी स्वर: लता मंगेशकर जय-जय हे जगदम्बे माता द्वार तिहारे जो भी आता बिन माँगे सब-कुछ पा जाता तू चाहे तो जीवन दे-दे चाहे पल में जीवन ले-ले जन्म-मरण सब हाथ में तेरे हे शक्ति हे माता जय-जय हे ... पापी हो या होवे पुजारी राजा हो या होवे भिखारी फिर भी तूने जोड़ा सबसे माँ-बेटे का नाता जय-जय हे ... जब-जब जिसने तुझको पुकारा तूने दिया है बढ़के सहारा हर भूले राही को तेरा प्यार ही राह दिखाता जय-जय हे ...

२७ मार्च- आज का गाना

गाना: आए हो मेरी ज़िंदगी में तुम बहार बन के चित्रपट: राजा हिन्दुस्तानी संगीतकार: नदीम-श्रवण गीतकार: समीर स्वर: अलका याज्ञिक आए हो मेरी ज़िंदगी में तुम बहार बन के मेरे दिल में यूं ही रहना तुम प्यार प्यार बन के आए हो मेरी ज़िंदगी ... आँखों में तुम बसे हो सपने हज़ार बन के मेरे दिल में यूं ... मेरे साथी मेरे साजन मेरे साथ यूं ही चलना बदलेगा रंग ज़माना पर तुम नहीं बदलना मेरी मांग यूं ही भरना तारे हज़ार बन के मेरे दिल में यूं ... गर मैं जो रूठ जाऊं तो तुम मुझे मनाना थामा है हाथ मेरा फिर उम्र भर निभाना मुझे छोड़ के न जाना वादे हज़ार करके मेरे दिल में यूं ...

सिने-पहेली # 13 (जीतिये 5000 रुपये के इनाम)

सिने-पहेली में जीतिये 5000 रुपये के इनाम 'सि ने-पहेली' के एक और अंक में मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का फिर एक बार स्वागत करता हूँ। आज शुरुआत हम एक अच्छी ख़बर से कर रहे हैं। 'सिने पहेली' के 100 अंकों के बाद जो महाविजेता बनेगा, उन्हें हम इनाम स्वरूप 5000 रुपये की नकद राशि भेंट करेंगे। अर्थात् 10 सेगमेण्ट्स की लड़ाई में जो सर्वाधिक सेगमेण्ट विनर होगा, उन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। अभी सिर्फ़ दूसरा ही सेगमेण्ट चल रहा है दोस्तों, जिसका अर्थ है कि अब भी कोई भी महाविजेता बन सकता है। अगर आप आज से इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहे हैं, तो भी आपके पास 100% मौका है महाविजेता बनने का। तो दोस्तों, देर बिल्कुल भी नहीं हुई है और कहते भी हैं कि जहाँ जागो वहीं सवेरा। तो हम भी यही उम्मीद करते हैं कि आप इस पुरस्कार से अपने आप को वंचित नहीं होने देंगे और आज के अंक से ही 'सिने पहेली' प्रतियोगिता में भाग लेंगे और हमारे सवालों के जवाब cine.paheli@yahoo.com के पते पर लिख भेजेंगे। चलिए शुरु करते हैं 'सिने पहेली - 13' के सवालों का सिलसिला... ********************

२६ मार्च- आज का गाना

गाना: ज़िक्र होता है जब क़यामत का  चित्रपट: माय लव संगीतकार: दान सिंह गीतकार: आनन्द बक्शी स्वर: मुकेश  ज़िक्र होता है जब क़यामत का तेरे जलवों की बात होती है तू जो चाहे तो दिन निकलता है तू जो चाहे तो रात होती है ज़िक्र होता है जब ... तुझको देखा है मेरी नज़रों ने तेरी तारीफ़ हो मगर कैसे के बने ये नज़र ज़ुबाँ कैसे के बने ये ज़ुबाँ नज़र कैसे ना ज़ुबाँ को दिखाई देता है ना निग़ाहों से बात होती है ज़िक्र होता है जब ... तू चली आए मुस्कुराती हुई तो बिखर जाएं हर तरफ़ कलियाँ तू चली जाए उठ के पहलू से तो उजड़ जाएं फूलों की गलियाँ जिस तरफ़ होती है नज़र तेरी उस तरफ़ क़ायनात होती है ज़िक्र होता है जब ... तू निग़ाहों से ना पिलाए तो अश्क़ भी पीने वाले पीते हैं वैसे जीने को तो तेरे बिन भी इस ज़माने में लोग जीते हैं ज़िन्दगी तो उसी को कहते हैं जो गुज़र तेरे साथ होती है ज़िक्र होता है जब ...

फिल्म और सुगम संगीत के रंग में रँगी चैती

स्वरगोष्ठी – ६३ में आज ‘यही ठइयाँ मोतिया हेरा गइलीं रामा...’ पिछले अंक में आपने उपशास्त्रीय संगीत के गायक-वादकों के माध्यम से चैती गीतों का आनन्द प्राप्त किया था। आज हम चैती गीतों के, ग्रामोफोन रिकार्ड, फिल्म और सुगम संगीत के अन्य माध्यमों में किये गए प्रयोग पर चर्चा करेंगे। शा स्त्रीय, उपशास्त्रीय, लोक और फिल्म संगीत की चर्चाओं पर केन्द्रित हमारी-आपकी इस अन्तरंग साप्ताहिक गोष्ठी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आपका स्वागत करता हूँ। आप सब पाठको/श्रोताओं को शुक्रवार से आरम्भ हुए भारतीय नववर्ष के उपलक्ष्य में हमारी ओर से हार्दिक बधाई। अपने पिछले अंक से हमने चैत्र मास में गायी जाने वाली लोक संगीत की शैली ‘चैती’ पर चर्चा आरम्भ की थी। यूँ तो चैती लोक संगीत की शैली है, किन्तु ठुमरी अंग में ढल कर यह और भी रसपूर्ण हो जाती है। पिछले अंक में हमने आपको शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत के कलाकारों से कुछ चैती गीतों का रसास्वादन कराया था। आज हम आपसे पुराने ग्रामोफोन रिकार्ड और फिल्मों में चैती के प्रयोग पर चर्चा करेंगे। भारत में ग्रामोफोन रिकार्ड के निर्माण का आरम्भ १९०२ से हुआ था। पहले ग

२५ मार्च- आज का गाना

गाना: आप से प्यार हुआ जाता है... चित्रपट: शमा संगीतकार: गुलाम मोहम्मद गीतकार: कैफी आज़मी स्वर: सुरैया  आप से प्यार हुआ जाता है खेल दुश्वार हुआ जाता है। दिल जो हर क़ैद से घबराता था, घबराता था ख़ुद ही गिरफ़्तार हुआ जाता है। तुमने क्यों प्यार से देखा मुझको - २ दर्द बेज़ार हुआ जाता है। इस तमन्ना में कि तुम दोगे सज़ा, तुम दोगे सज़ा दिल गुनाहग़ार हुआ जाता है।