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२३ मार्च - आज का गाना

गाना: देस मेरे देस मेरे चित्रपट: द लीजेंड ऑफ भगत सिंह संगीतकार: ए. आर. रहमान गीतकार: समीर स्वर: सुखविंदर सिंह (श्रधान्जली - शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ) देस मेरे देस मेरे मेरी जान है तू -२ देस मेरे देस मेरे मेरी शान है तू -२ मिटाने से नहीं मिटते डराने से नहीं डरते वतन के नाम पे हम सर कटाने से नहीं डरते हज़ारों ख़्वाब रोशन हैं सुलगती सी निगाहों में क़फ़न हम बाँध के निकले हैं आज़ादी की राहों में निशाने पे जो रहते हैं निशाने से नहीं डरते हमारी एक मन्ज़िल है हमारा एक नारा है धरम से जात से ज्यादा हमें ये मुल्क़ प्यारा है हम इस पे ज़िन्दगी अपनी लुटाने से नहीं डरते देस मेरे देस मेरे मेरी जान है तू -२ देस मेरे देस मेरे मेरी शान है तू -२

२२ मार्च- आज का गाना

गाना: कौन दिसा में लेके चला रे बटुहिया चित्रपट: नदिया के पार संगीतकार: रवीन्द्र जैन गीतकार: रवीन्द्र जैन स्वर: हेमलता, जसपाल सिंह कौन दिसा में लेके चला रे बटुहिया \- (३) ठहर ठहर, ये सुहानी सी डगर ज़रा देखन दे, देखन दे मन भरमाये नयना बाँधे ये डगरिया \- (२) कहीं गए जो ठहर, दिन जायेगा गुज़र गाडी हाँकन दे, हाँकन दे, कौन दिसा... पहली बार हम निकले हैं घर से, किसी अंजाने के संग हो अंजाना से पहचान बढ़ेगी तो महक उठेगा तोरा अंग हो महक से तू कहीं बहक न जाना \- (२) न करना मोहे तंग हो, तंग करने का तोसे नाता है गुज़रिया \- (२) हे, ठहर ठहर, ये सुहानी सी डगर ज़रा देखन दे, देखन दे,  कौन दिसा... कितनी दूर अभी कितनी दूर है, ऐ चंदन तोरा गाँव हो कितना अपना लगने लगे जब कोई बुलाये नाम हो नाम न लेतो क्या कहके बुलायें \- (२) कैसे करायें काम हो, साथी मितवा या अनाड़ी कहो गोरिया \- (२) कहीं गये जो ठहर, दिन जायेगा गुज़र गाड़ी हाँकन दे, हाँकन दे,  कौन दिसा... ऐ गुंजा, उस दिन तेरी सखियाँ, करती थीं क्या बात हो? कहतीं थीं तोरे साथ चलन को तो, आगे हम तोरे साथ हो साथ अधूरा तब तक जब

"दिल आने के ढंग निराले हैं" - वाक़ई निराला था ख़ुर्शीद अनवर का संगीत जिनकी आज १०१-वीं जयन्ती है!

पूरे पंजाब विश्वविद्यालय में एम.ए दर्शनशास्त्र में प्रथम आने के बाद प्रतिष्ठित ICS परीक्षा के लिखित चरण में सफल होने के बावजूद साक्षात्कार चरण में शामिल न होकर संगीत के क्षेत्र को चुना था ख़ुर्शीद अनवर ने। अपनी मेधा को संगीत क्षेत्र में ला कर अत्यन्त कर्णप्रिय धुनें उन्होंने बनाई। २१ मार्च १९१२ को जन्मे ख़ुर्शीद अनवर की आज १०१-वीं जयन्ती है। इस उपलक्ष्य पर उनके द्वारा रचे एक गीत से जुड़ी बातें सुजॉय चटर्जी के साथ 'एक गीत सौ कहानियाँ' की १२-वीं कड़ी में... एक गीत सौ कहानियाँ # 12 1947 में देश के विभाजन के बाद बहुत से कलाकार भारत से पाक़िस्तान जा बसे और बहुत से कलाकार सरहद के इस पार आ गए। उस पार जाने वालों में एक नाम संगीतकार ख़ुर्शीद अनवर का भी है। ख्वाजा ख़ुर्शीद अनवर का जन्म २१ मार्च १९१२ को मियाँवाली, पंजाब (अब पाक़िस्ता न) में हुआ था। उनके नाना ख़ान बहादुर डॉ. शेख़ अट्टा मोहम्मद सिविल सर्जन थे और उनके पिता ख्वाजा फ़िरोज़ुद्दीन अहमद लाहौर के एक जानेमाने बैरिस्टर। पिता को संगीत का इतना ज़्यादा शौक था कि उनके पास ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड्स का एक बहुत बड़ा संग्रह था। इस तरह से बे

२१ मार्च- आज का गाना

गाना: तुझे जीवन की डोर से, बाँध लिया है, तेरी ज़ुल्म-ओ-सितम चित्रपट: असली नकली संगीतकार: शंकर - जयकिशन गीतकार: हसरत स्वर: रफ़ी , लता रफ़ी: तुझे जीवन की डोर से, बाँध लिया है, बाँध लिया है तेरे ज़ुल्म\-ओ\-सितम, सर आँखों पर लता: मैने बदले में प्यार के, प्यार दिया है, प्यार दिया है तेरी खुशियाँ और गम, सर आँखों पर रफ़ी: तुझे जीवन की ... (अप्सरा कोई आए तो देखूँ नहीं कोई बहकाये हंसके तो बहकूँ नहीं   ) \- २ तोरे मतवारे नैनों ने, जादू किया ओ ... तोरे मतवारे नैनों ने, जादू किया तेरी उल्फ़त सनम सर आँखों पर ... (मेरे जीवन की अनमिट कहानी है तू मेरी तक़दीर और ज़िंदगानी है तू  ) \- २ लिये फ़िरते हैं सबसे छुपाये हुए ओ ... लिये फ़िरते हैं सबसे छुपाये हुए तेरी तसवीर हम सर आँखों पर ... चाँड सूरज भी हैं तेरी परछाइयाँ तुझ से रोशन हुई दिल की गहराइयाँ तेरे चेहरे की झिलमिल से मंज़िल मिली ओ तेरे चेहरे की झिलमिल से मंज़िल मिली ऐसी प्यारी पूनम सर आँखों पर ... (दोनो): तुझे जीवन की डोर से, बाँध लिया है, बाँध लिया है तेरे ज़ुल्मो\-सितम, सर आँखों पर

श्याम कोरी उदय ने कड़वे सच में घोले कुछ मीठे गीत, आज ब्लोग्गर्स चोईस में

श्याम कोरी उदय जी अपने ब्लॉग से मुड़े और कहा - वैसे तो फ़िल्में बहुत ही कम देखना होता है और न ही गाने सुनने का कोई स्पेशल शौक है ... आपके आदेश पर कुछ पसंदीदा गाने भेज रहा हूँ लेकिन इन्हें सुने हुए भी एक अर्सा-सा हो गया है ... पसंद की वजह - गानों में प्रयोग किये गए शब्द व उनके भाव ... १ जिंदगी का सफ़र, है ये कैसा सफ़र, कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं है, जिंदगी को बहुत प्यार हमने किया...(किशोर/सफर) २ होंठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो / बन जाओ प्रीत मेरी, मेरी जीत अमर कर दो...(प्रेम गीत/जगजीत) ३ कोई फ़रियाद तेरे दिल में दबी हो जैसे...(तुम बिन/ जगजीत सिंह) ४ कहीं दूर जब दिन ढल जाए, सांझ की दुल्हन ... मेरे ख्यालों के आँगन में, कोई सपनों के दीप जलाए...(मुकेश/आनंद) ५ जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए, तुम देना साथ मेरा, ओ मेरे हमनवा ... ( कुमार सानु/जुर्म )

सिने-पहेली # 12

'सिने पहेली' के द्वितीय सेगमेण्ट की दूसरी कड़ी लेकर मैं, आपका ई-दोस्त सुजॉय चटर्जी, फिर एक बार हाज़िर हूँ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर। दोस्तों, 'सिने पहेली' की पिछली दो कड़ियों में कृष्णमोहन जी आपसे मुख़ातिब थे, और मैं उनका शुक्रिया अदा करते हुए इस स्तंभ का कार्यभार फिर एक बार अपने कंधे ले रहा हूँ। तो फिर एक बार मुक़ाबला शुरु हो चुका है। सभी साथियों से निवेदन है कि इस नए सेगमेण्ट का फ़ायदा उठायें, अपना फ़िल्मी और फ़िल्म-संगीत के ज्ञान को आज़माते हुए अन्य प्रतियोगियों को कांटे का टक्कर दें, और इस स्तंभ को मनोरंजक तथा इस प्रतियोगिता को दिलचस्प बनायें। हमारे बहुत से साथी ऐसे हैं जो 'सिने पहेली' में पधारते तो हैं पर हिस्सा नहीं लेते। उन सब से यह गुज़ारिश है कि जितने भी जवाब मालूम हों, हमें ज़रूर लिख भेजें, इससे प्रतियोगिता और भी ज़्यादा मज़ेदार बन जाएगी। और क्योंकि अब इसे सेगमेण्ट्स में विभाजित कर दिया गया है, इसलिए आप किसी भी चरण से इसमें भाग ले सकते हैं और महाविजेता भी बन सकते हैं। चलिए बातें बहुत हो गईं, अब शुरु करते हैं 'सिने पहेली - सेगमेण्ट-२'

चैत्र मास और चैती का रंग

स्वरगोष्ठी – ६२ में आज ‘सेजिया से सइयाँ रूठि गइलें हो रामा.....’ भारतीय संगीत की कई ऐसी लोक-शैलियाँ हैं, जिनका प्रयोग उपशास्त्रीय संगीत में भी किया जाता है। होली पर्व के बाद, आरम्भ होने वाले चैत्र से ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। इस परिवेश में पूरे उत्तर भारत में चैती-गायन आरम्भ हो जाता है। गाँव की चौपालों से लेकर मेलों में, मंदिरों में चैती के स्वर गूँजने लगते हैं। ‘स्व रगोष्ठी’ के एक नए अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः सभी संगीत-प्रेमियों का स्वागत करता हूँ। मित्रों, भारतीय संगीत के अक्षय भण्डार में ऋतु-प्रधान गीत-संगीत का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बसन्त ऋतु से आरम्भ होकर पावस ऋतु की समाप्ति तक देश के हर क्षेत्र और हर आंचलिक बोलियों में, प्रकृति के हर बदलाव को रेखांकित करते ग्राम्य-गीतों का खजाना है। होलिका-दहन के अगले दिन से ही भारतीय पंचांग का चैत्र मास आरम्भ हो जाता है। प्रकृति में ग्रीष्म का प्रभाव बढ़ने लगता है और खेतों में कृषक का श्रम सार्थक नज़र आने लगता है। ऐसे परिवेश में जनजीवन उल्लास से परिपूर्ण होकर गा उठता है। उत्तर भारत में इस गीत को चैती, चैता या घाटो के न