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"कहानी" में गूंथे मधुर गीत अन्विता दास और विशाल शेखर ने

रेडियो प्लेबैक की राय में कैसा है विध्या बालन अभिनीत "कहानी" का संगीत, सुनिए इस अल्बम रिव्यू में -

बोलती कहानियाँ: घीसा (महादेवी वर्मा) - अर्चना चावजी

'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अमर साहित्यकार बाबा नागार्जुन की मार्मिक कहानी " असमर्थ दाता का पॉडकास्ट प्राख्यात ब्लॉगर अर्चना चावजी की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं छायावाद की अमर कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा लिखी हृदयस्पर्शी कहानी " घीसा , जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी ने।  कहानी का कुल प्रसारण समय 10 मिनट 17 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है! ~  महादेवी वर्मा (26 मार्च 1906 – 11 सितम्बर, 198) हर शुक्रवार को यहीं पर सुनें एक नयी कहानी जला हुआ काला वर्ण, टेढ़े मेढ़े पैर, दरकी हुई त्वचा, शुष्क बेतरतीब रस्सीनुमा केश। चीकट मैले कुरते की एक बांह पूरी, एक बांह आधी। मानो खेत म

१५ मार्च- आज का गाना

गाना: आओ हुज़ूर तुमको, सितारों में ले चलूँ चित्रपट: किस्मत संगीतकार: ओ पी नय्यर गीतकार: नूर देवासी स्वर: आशा हमसे रौशन हैं चाँद और तारे हम को दामन समझिये न ग़ैरत का उठ गये हम गर ज़माने से नाम मिट जायेगा मुहब्बत का दिल है नाज़ुक कली से फूलों से यह न टूटे ख़याल रखियेगा और अगर आप से यह टूट गया जान-ए-जां इतना ही समझीयेगा [ंअले वोइचे:] क्या? फिर कोई बाँवरी मुहब्बत की अप्नी ज़ुल्फ़ें नहीं सँवारेगी आरती फिर किसी कन्हैया की कोई राधा नहीं उतारेगी, हिक! आओ हुज़ूर तुमको ... आओ हुज़ूर तुमको, सितारों में ले चलूँ ... हिक! दिल झूम जाए ऐसी, बहारों में ले चलूँ आओ हुज़ूर आओ ... (हमराज़ हमख़याल तो हो, हमनज़र बनो तय होगा ज़िंदगी का सफ़र, हमसफ़र बनो) - २ आ हा हा, ओ ओ, हो हो हो, आ हा आ हा हा, ओ हो हो ... हिक! चाहत के उजले-उजले नज़ारों में ले चलूँ दिल झूम जाए ऐसी, बहारों में ले चलूँ आओ हुज़ूर आओ ... लिख दो किताब-ए-दिल पे कोई, ऐसी दास्तां जिसकी मिसाल दे न सके, सातों आसमां आ हा हा, ओ ओ, हो हो हो, आ हा आ हा हा, ओ हो हो ... हिक! बाहों में बाहें डाले, हज़ारों में ले च

"दे दे ख़ुदा के नाम पे प्यारे..." - बोलती फ़िल्मों के ८१ वर्ष पूर्ती पर आज एक बार फिर से 'आलम आरा' की यादों को ताज़ा किया जाए!

आज १४ मार्च २०१२ है। ८१ वर्ष पहले आज ही के दिन बम्बई के 'मजेस्टिक सिनेमा' में रिलीज़ हुई थी पहली सवाक फ़िल्म 'आलम आरा'। आज 'एक गीत सौ कहानियाँ' की ग्यारहवीं कड़ी में इसी फ़िल्म के गीतों की चर्चा, सुजॉय चटर्जी के साथ, और साथ में सुनिए प्रथम फ़िल्मी गीत "दे दे ख़ुदा के नाम पे प्यारे" का एक संस्करण गायक हरिहरण की आवाज़ में। एक गीत सौ कहानियाँ # 11 जैसा कि सर्वविदित है पहली भारतीय बोलती फ़िल्म ‘आलम-आरा’ के १४ मार्च १९३१ के दिन बम्बई में प्रदर्शित होने के साथ ही फ़िल्म-संगीत का युग भी शुरु हो गया था। इम्पीरियल फ़िल्म कंपनी के बैनर तले अरदशेर ईरानी और अब्दुल अली यूसुफ़ भाई ने मिलकर इस फ़िल्म का निर्माण किया था। इम्पीरियल मूवीटोन कृत आ ल म – आ रा सम्पूर्ण बोलती, गाती, बजती फ़िल्म वार्ता : जोसफ़ डेविड सीनार्यो : अरदेशर एम. ईरानी ध्वनि-आलेखन (साउण्ड रिकार्डिंग्) : अरदेशर एम. ईरानी कैमरामैन : अदि एम. ईरानी डायरेक्टर : अरदेशर एम. ईरानी (सहयोगी : रुस्तम भरुचा, पेसी करानी, मोती गिडवानी) संगीत : पी. एम. मिस्त्री तथा बी. ईरानी सेटिंग्: मुनव्वर अ

१४ मार्च- आज का गाना

गाना: मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा चित्रपट: पगला कहीं का संगीतकार: शंकर जयकिशन गीतकार: हसरत जयपुरी स्वर: मन्ना डे क्यूं मारा -५ क्यूं -६ मेरी भैंस को डंडा मेरी भैंस को डंडा क्यूं मारा वो खेत में चारा चरती थी तेरे बाप का वो क्या करती थी मेरी भैंस को डंडा क्यूं मारा वो खेत में चारा चरती थी तेरे बाप का है वो क्या करती थी मेरी भैंस को डंडा क्यूं मारा वो लड्डू पेड़े खाती है वो पेड़ों पे चढ जाती है वो लड्डू पेड़े खाती है वो पेड़ों पे चढ जाती है ये मच्छर बीन बजाते हैं वो अपना राग सुनाती है वो ठुम्मक ठुम्मक नाचे जब मैं दिल का बजाऊँ मैं दिल का बजाऊँ इकतारा मेरी भैंस को डंडा मेरी भैंस को डंडा क्यूं मारा वो खेत में चारा चरती थी तेरे बाप का है वो क्या करती थी मेरी भैंस को डंडा क्यूं मारा अरे घर का ये इक स्टेशन है और झंडी प्यारी प्यारी है अरे घर का ये इक स्टेशन है और झंडी प्यारी प्यारी है सब हम तो रेल के डिब्बे हैं वो अपनी इंजन गाड़ी है वो गुस्सा जब भी करती है तो बन जाती है तो बन जाती है अंगारा मेरी भैंस को डंडा मेरी भैंस को डंडा क्यूं मारा वो खे

आई हैं पल्लवी सक्सेना अपनी पसंद के गीतों के साथ रश्मि जी के कार्यक्रम में

आज की पसंद पल्लवी सक्सेना जी के संग. पल्लवी सक्सेना जी से जब मैंने ५ गीतों की चर्चा की तो उन्होंने कहा - " मैं, यह तो नहीं जानती कि आपको यह गाने क्यूँ चाहिए, मगर इतना ज़रूर कहूँगी, कि यह तो बड़ा ही कठिन सवाल है। फिर भी कुछ गाने है। जो दिल को छु ही जाते हैं। मगर आपने इतने कम गाने चुनने को कहे कि मेरा तो मन ही नहीं भरेगा इसलिए मैं आपको 5 से ज्यादा गाने भेज रही हूँ। जो मुझे बेहद पसंद है और कहीं न कहीं मेरी ज़िंदगी के गुजरे हुए लम्हों से जुड़े हुए है। जो मेरी ज़िंदगी के प्यार और दोस्ती के पवित्र रिश्तों से जुड़े हुए हैं। हर एक गाने में मुझे ज़िंदगी की सच्चाई महसूस होती है। हर गाने में यही महसूस होता है कि यह मेरी ही ज़िंदगी है हर एक गीत में इसलिए मुझे यह सारे गाने बहुत-बहुत अच्छे लगते हैं। मेरी माने तो एक बार you tube पर यह सारे गाने सुनकर देखिये गा आपका भी मन खिल जाएगा गा सच्ची। वैसे तो मेरी लिस्ट कभी खत्म होने वाली नहीं क्यूंकि मुझे गाने सुनना बहुत पसंद है मगर फिलहाल मेरी पसंद के कुछ गीत मैं आपको भेज रही हूँ। " तो लीजिए पल्लवी की पसंद के गीतों में सुनते हैं ये ५ गीत.

१३ मार्च- आज का गाना

गाना: दर्शन दो घनश्याम नाथ चित्रपट: नरसी भगत संगीतकार: रवी गीतकार: गोपाल दास नेपाली स्वर: हेमंत कुमार, सुधा मल्होत्रा दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अँखियाँ प्यासी रे .. मंदिर मंदिर मूरत तेरी फिर भी न दीखे सूरत तेरी . युग बीते ना आई मिलन की पूरनमासी रे .. दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरि अँखियाँ प्यासी रे .. द्वार दया का जब तू खोले पंचम सुर में गूंगा बोले . अंधा देखे लंगड़ा चल कर पँहुचे काशी रे .. दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरि अँखियाँ प्यासी रे .. पानी पी कर प्यास बुझाऊँ नैनन को कैसे समजाऊँ . आँख मिचौली छोड़ो अब तो घट घट वासी रे .. दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरि अँखियाँ प्यासी रे ..