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"फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया"- और याद आए ग़ालिब उनकी १४४-वीं पुण्यतिथि पर

१५ फ़रवरी १८६९ को मिर्ज़ा ग़ालिब का ७२ साल की उम्र में इन्तकाल हुआ था। करीब १५० साल गुज़र जाने के बाद भी ग़ालिब की ग़ज़लें आज उतनी ही लोकप्रिय और सार्थक हैं जितनी उस ज़माने में हुआ करती थीं। ग़ालिब पर बनी फ़िल्मों और टीवी प्रोग्रामों की चर्चा तथा उनकी एक ग़ज़ल लेकर सुजॉय चटर्जी आज आए हैं 'एक गीत सौ कहानियाँ' की सातवीं कड़ी में... एक गीत सौ कहानियाँ # 7 अतीत के अदबी शायरों की बात चले तो जो नाम सबसे ज़्यादा चर्चित हुआ है, वह नाम है मिर्ज़ा ग़ालिब का। ग़ालिब की ग़ज़लें केवल ग़ज़लों की महफ़िलों और ग़ैर-फ़िल्मी रेकॉर्डों तक ही सीमित नहीं रही, फ़िल्मों में भी ग़ालिब की ग़ज़लें सर चढ़ कर बोलती रहीं। 'अनंग सेना' (१९३१), 'ज़हर-ए-इश्क़' (१९३३), 'यहूदी की लड़की' (१९३३), 'ख़ाक का पुतला' (१९३४), 'अनारकली' (१९३५), 'जजमेण्ट ऑफ़ अल्लाह' (१९३५), 'हृदय मंथन' (१९३६), 'क़ैदी' (१९४०), 'मासूम' (१९४१), 'एक रात' (१९४२), 'चौरंगी' (१९४२), 'हण्टरवाली की बेटी' (१९४३), 'अपना देश' (१९४९), 'मिर

१५ फरवरी - आज का गाना

गाना:  पितु मातु सहायक स्वामी सखा संगीतकार: नरेश भट्टाचार्य गायक: मुकेश पितु मातु सहायक स्वामी सखा तुम ही एक नाथ हमारे हो जिन के कछु उर आधार नहीं उन के तुम ही रखवारे हो पितु मातु सहायक स्वामी सखा ... सब भाँति सदा सुख दयक हो दुःख दुर्दम नाशन हारे हो प्रतिपाल करो सगरे जग को अतिशय करुणा गुण धारे हो पितु मातु सहायक स्वामी सखा ... शुभ शाँति निकेतन प्रेम निकेत मन मंदिर के उजियारे हो इस जीवन के तुम जीवन हो इन प्राणन के तुम प्यारे हो तुम तो प्रभु पाये प्रतप हरि कहिये के अब और सहारे हो पितु मातु सहायक स्वामी सखा ...

ब्लोग्गर्स चोईस में आज हैं जेनी शबनम और उनकी यादों में बसे कुछ गीत

५ गीतों की असमंजसता में आज हैं हमारे साथ जेनी शबनम जी, किसे चुनूँ किसे रहने दूँ ! धत् - जो पहले मन में आता है, जिसका एक ख़ास संबंध है जीवन से, वो ये हैं ...... गीत व्यक्तित्व की ही झलक हैं, पसंद बताते हैं कि व्यक्ति कैसा है . मन, दर्शन, रहस्य, भक्ति, आशा, निराशा. सबकुछ है गीतों में, जो आपको ही प्रस्तुत करते हैं. ये रहे ५ गीत जेनी जी की पसंद के...श्श्श्श....गीतों के मध्य बातचीत सही नहीं .... बस सुनिए - १. बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले.......... फिल्म - नील कमल मेरे पिता को ये गाना बहुत पसंद था और जब मैं करीब १०-११ साल की थी तब ये गाना सुनते सुनते मेरे पापा रोने लगे थे कि एक दिन मेरी भी शादी इसी तरह हो जाएगी और मैं दूसरे घर चली जाऊँगी. हालांकि मेरी शादी होने तक वो जीवित न रहे. इसलिए जब भी ये गाना सुनती हूँ मुझे मेरे पापा याद आते हैं और उस दिन की घटना भी. २. मैं एक सदी से बैठी हूँ, इस राह से कोई गुजरा नहीं...... फिल्म - लेकिन इस गाने के पसंद की वजह तो मुझे भी नहीं मालूम. पर इतना याद है कि जिस दिन पहली बार इस गाना को सुना तो इसके बोल इतने पसंद आये कि सा