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८ फरवरी - आज का गाना

गाना:  मेरे साजन हैं उस पार चित्रपट: बंदिनी संगीतकार: एस डी बर्मन गीतकार: शैलेन्द्र गायक: एस डी बर्मन ओ रे माझी ओ रे माझी ओ ओ मेरे माझी मेरे साजन हैं उस पार, मैं मन मार, हूँ इस पार ओ मेरे माझी, अबकी बार, ले चल पार, ले चल पार मेरे साजन हैं उस पार... हो मन की किताब से तू, मेरा नाम ही मिटा देना गुन तो न था कोई भी, अवगुन मेरे भुला देना मुझको तेरी बिदा का... मुझको तेरी बिदा का मर के भी रहता इंतज़ार मेरे साजन... मत खेल जल जाएगी, कहती है आग मेरे मन की मत खेल... मत खेल जल जाएगी, कहती है आग मेरे मन की मैं बंदिनी पिया की चिर संगिनी हूँ साजन की मेरा खींचती है आँचल... मेरा खींचती है आँचल मन मीत तेरी हर पुकार मेरे साजन हैं उस पार ओ रे माझी ओ रे माझी ओ ओ मेरे माझी मेरे साजन हैं उस पार...

ब्लोग्गर्स चोईस में हैं रश्मि प्रभा के साथ "भला बुरा" समझने वाले शिवम मिश्रा

आज की महफ़िल में अपरोक्ष गुनगुनाते शिवम् मिश्रा जी हैं. इन ५ गानों की सौगात लेने शिवम् जी के पास पहुंची तो पहले एक सवाल का तीर चला, "ये क्यूँ ?" मैंने भी शरारत से कहा - "क्यूँ बताऊँ !" दीदी कहते हैं तो मुस्कान में मायूसी के भाव लाते हुए बोले, "अपनी पसंद को ५ सिर्फ ५ गाने कैसे बताऊँ ???" बताना था ही हर हाल में तो थमा दी लिस्ट ये कहते हुए कि इनको सुनना मेरा सुकून है, बस - तो इनके सुकून के लिए सुनते हैं इनके साथ हम भी इनकी पसंद ... तू मेरे रूबरू है - फिल्म मकबूल ; संगीत - विशाल ; गायक - दलेर महेंदी, राम शंकर और साथी छोड़ आये हम वो गलियां - फिल्म माचिस ; संगीत - विशाल ; गायक - सुरेश वाडेकर , के के, हरीहरण और साथी साँसों की माला पर सिमरु मैं पी का नाम - सूफी ; गायक - उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान और साथी उम्र जलवो में बसर हो यह जरुरी तो नहीं - ग़ज़ल ; गायक :- जगजीत सिंह साहब न ले के जाओ ... मेरे दोस्त का जनाजा है - फिल्म - फिजा ; संगीत :- अनु मालिक ; गायिका - जसपिंदर नरूला

७ फरवरी - आज का गाना

गाना:  सैंया झूठों का बड़ा सरताज निकला चित्रपट: दो आँखें बारह हाथ संगीतकार: वसंत देसाई गीतकार: भरत व्यास गायिका: लता मंगेशकर सैंया झूठों का बड़ा सरताज निकला मुझे छोड़ चला, मुख मोड़ चला दिल तोड़ चला बड़ा धोखेबाज निकला सैंया झूठों का ... चल दिया ज़ुल्मी मुझसे बहाना बना मेरे नन्हे से दिल को निशाना बना बड़ा तीखा वो तीरन्दाज निकला मुझे छोड़ चला ... सैंया झूठों का ... मैंने इक दिन ज़रा सी जो की मसखरी चल दिया नज़रें घुमाके वो गुस्से भरी मेरा छैला बड़ा नाराज निकला मुझे छोड़ चला ... सैंया झूठों का ... परदेसी की प्रीत बड़ी होती बुरी जैसे मीठी ज़हर भरी हो तीखी छुरी मैं तो भोली सी वो चालबाज निकला मुझे छोड़ चला ... सैंया झूठों का ... कुछ दिनों से पिया हम से ना बोलता न हमारा घूँघटवा का पट खोलता इस गुप-चुप का इस गुप-चुप का भेद देखो आज निकला मुझे छोड़ चला ..

सिने-पहेली # 6

सिने-पहेली # 6 (6 फ़रवरी 2012) रेडियो प्लेबैक इण्डिया के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! दोस्तों, 'सिने-पहेली' की छठी कड़ी लेकर मैं हाज़िर हूँ। पिछले दिनों 'सिने पहेली' के नियमित प्रतियोगी पंकज मुकेश जी का मुझे टेलीफ़ोन आया, जिन्होंने इस स्तंभ की तारीफ़ के साथ-साथ तीन सुझाव भी दिये। पहला सुझाव था कि इस स्तंभ को सप्ताह में दो बार कर दिया जाये क्योंकि पचास अंक के पूरे होते होते साल भर का समय लग जाएगा। उनका दूसरा सुझाव था कि जो जो प्रतियोगी 'सिने पहेली' के प्रथम अंक में भाग लेने से चूक गए (क्योंकि उन्हें नए स्तंभ के बारे में जानकारी नहीं थी), उनके लिए एक विशेषांक प्रस्तुत की जाये जिसमें केवल वो ही भाग ले सकते हैं जो पहले अंक में भाग नहीं ले पाये थे। इस तरह से उन सभी को कम से कम एक मौका मिलेगा अन्य प्रतियोगियों के बराबरी तक पहुँचने का। और पंकज जी का तीसरा सुझाव था कि हम पार्श्वगायक मुकेश को 'सिने-पहेली' का एक पूरा अंक समर्पित करें। पंकज जी, आपके इन तीनों सुझावों के जवाब ये रहे। 'सिने-पहेली' सप्ताह में दो दिन कर पाना हमारे लिए स

६ फरवरी - आज का गाना

गाना:  ऐ मेरी जोहराजबीं चित्रपट: वक्त संगीतकार: रवी गीतकार: साहिर लुधियानवी गायक: मन्ना डे ऐ मेरी जोहराजबीं, तुझे मालूम नही तू अभी तक हैं हसीन, और मैं जवां तुझ पे कुर्बान मेरी जां, मेरी जां ये शोखियां, ये बाकपन, जो तुझ में हैं कही नही दिलों को जीतने का फन, जो तुझ में हैं कही नही मै तेरी आंखों में पा गया दो जहां ऐ मेरी जोहराजबीं… तू मीठे बोल जान-ए-मन, जो मुस्कुरा के बोल दे तो धडकनों में आज भी, शराबी रंग घोल दे ओ सनम, मैं तेरा आशिक-ए-जाविदां ऐ मेरी जोहराजबीं…

राग बसन्त से ऋतुराज का स्वागत

स्वरगोष्ठी – ५६ में आज ‘और राग सब बने बराती दुल्हा राग बसन्त...’ भारतीय संगीत की मूल अवधारणा भक्ति-रस है। इसके साथ-साथ इस संगीत में समय और ऋतुओं के अनुकूल रागों का भी विशेष महत्त्व होता है। विभिन्न रागों के परम्परागत गायन-वादन में समय और मौसम का सिद्धान्त आज वैज्ञानिक कसौटी पर खरा उतरता है। गत सप्ताह ऋतुराज बसन्त ने अपने आगमन की आहट दी है। इस ऋतु में मुख्य रूप से राग बसन्त का गायन-वादन अनूठा परिवेश रचता है। स मस्त पाठको-श्रोताओं का अभिनन्दन करते हुए मैं कृष्णमोहन मिश्र, आज की ‘स्वरगोष्ठी’ में ऋतुराज बसन्त का स्वागत और महान संगीतज्ञ पण्डित भीमसेन जोशी के जन्म-दिवस के उपलक्ष्य में उनका स्मरण करने उपस्थित हुआ हूँ। हमारे परम्परागत भारतीय संगीत में ऋतु-प्रधान रागों का समृद्ध भण्डार है। छः ऋतुओं में बसन्त और पावस ऋतु, मानव जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं। आज के अंक से हम बसन्त ऋतु के रागों पर चर्चा आरम्भ कर रहे हैं। इस मनभावन ऋतु में कुछ विशेष रागों के गायन-वादन की परम्परा है, जिनमें सर्वप्रमुख राग है- बसन्त। आइए, आज सबसे पहले राग बसन्त पर आधारित एक मोहक फिल्मी गीत की चर्चा से सभा की

५ फरवरी - आज का गाना

गाना:  है अपना दिल तो आवारा चित्रपट: सोलवाँ साल संगीतकार: सचिन देव बर्मन गीतकार: मजरूह सुलतान पुरी गायक: हेमंत कुमार है अपना दिल तो आवारा न जाने किस पे आयेगा हसीनों ने बुलाया, गले से भी लगाया बहुत समझाया, यही न समझा बहुत भोला है बेचारा, न जाने किस पे आयेगा है अपना दिल तो आवारा ... अजब है दीवाना, न घर ना ठिकाना ज़मीं से बेगाना, फलक से जुदा ये एक टूटा हुआ तारा, न जाने किस पे आयेगा है अपना दिल तो आवारा ... ज़माना देखा सारा, है सब का सहारा ये दिल ही हमारा, हुआ न किसी का सफ़र में है ये बंजारा, न जाने किस पे आयेगा है अपना दिल तो आवारा ... हुआ जो कभी राज़ी, तो मिला नहीं काज़ी जहाँ पे लगी बाज़ी, वहीं पे हारा ज़माने भर का नाकारा, न जाने किस पे आयेगा है अपना दिल तो आवारा ... है अपना दिल तो आवारा न जाने किस पे आएगा ...