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४ फरवरी - आज का गाना

गाना:  तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा चित्रपट: धूल का फूल संगीतकार: एन. दत्ता गीतकार: साहिर लुधियानवी गायक: रफ़ी तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है तुझ को किसी मज़हब से कोई काम नहीं है जिस इल्म ने इन्सानों को तक़सीम किया है इस इल्म का तुझ पर कोई इल्ज़ाम नहीं है तू बदले हुए वक़्त की पहचान बनेगा इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा मालिक ने हर इन्सान को इन्सान बनाया हमने उसे हिन्दू या मुसलमान बनाया क़ुदरत ने तो बख़्शी थी हमें एक ही धरती हमने कहीं भारत कहीं ईरान बनाया जो तोड़ दे हर बंद वह तूफ़ान बनेगा इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा नफ़रत जो सिखाए वो धरम तेरा नहीं है इन्साँ को जो रौंदे वो क़दम तेरा नहीं है क़ुरान न हो जिसमें वह मंदिर नहीं तेरा गीता न हो जिस में वो हरम तेरा नहीं है तू अमन का और सुलह का अरमान बनेगा इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा यह दीन के ताज़िर, यह वतन बेचनेवाले इन्सानों की लाशों के कफ़न बेचनेवाले यह महलों में बैठे हुए क़ातिल, यह लुटेरे काँटों के एवज़ रूह-ए-चमन बेचनेव

ईमानदार प्रधान - दीपक बाबा की बकबक

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में इब्ने इंशा की एक लघुकथा " अकबर के नवरत्न " का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं दीपक बाबा का व्यंग्य "ईमानदार प्रधान", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। इस व्यंग्य का टेक्स्ट " दीपक बाबा की बकबक " ब्लॉग पर उपलब्ध है। कहानी "अकबर के नवरत्न" का कुल प्रसारण समय 3 मिनट 56 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट बैरंग पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। जब दुनिया ही तमाशा बन जाए - तो बक बक करने में बुराई क्या है। ~ दीपक बाबा हर शुक्रवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी बकरी चिल्लाये, "देखो, वह मेरे बच्चे की गर्दन को नोच रहा है|&q

३ फरवरी - आज का गाना

गाना:  अजीब दास्तां है ये चित्रपट: दिल अपना और प्रीत पराई संगीतकार: शंकर-जयकिशन गीतकार: शैलेन्द्र गायिका: लता मंगेशकर अजीब दास्तां है ये कहाँ शुरू कहाँ खतम ये मंज़िलें है कौन सी न वो समझ सके न हम अजीब दास्तां... ये रोशनी के साथ क्यों धुआँ उठा चिराग से -२ ये ख़्वाब देखती हूँ मैं के जग पड़ी हूँ ख़्वाब से अजीब दास्तां... किसीका प्यार लेके तुम नया जहाँ बसाओगे -२ ये शाम जब भी आएगी तुम हमको याद आओगे अजीब दास्तां... मुबारकें तुम्हें के तुम किसीके नूर हो गए -२ किसीके इतने पास हो के सबसे दूर हो गए अजीब दास्तां...