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सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब - इस ग़ज़ल का सुरूर आज भी चढ़ता है आहिस्ता-आहिस्ता

कुछ गीत ऐसे होते हैं जो समय-समय पर थोड़े बहुत फेर बदल के साथ वापस आते रहते हैं। 'एक गीत सौ कहानियाँ' की दूसरी कड़ी में आज एक ऐसी ही मशहूर ग़ज़ल की चर्चा सुजॉय चटर्जी के साथ... सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता-आहिस्ता निकलता आ रहा है आफ़ताब आहिस्ता-आहिस्ता एक गीत सौ कहानियाँ # 2 हिन्दी फ़िल्मों में पारम्परिक रचनाओं का भी स्थान हमेशा से रहा है, चाहे वो विदाई गीत हों या कोई भक्ति रचना या फिर बहुत पुराने समय के किसी अदबी शायर का लिखा हुआ कोई कलाम। मिर्ज़ा ग़ालिब के ग़ज़लों की तो भरमार है फ़िल्म-संगीत में। १९-वीं सदी के एक और मशहूर शायर हुए हैं अमीर मीनाई। लखनऊ में १८२६ में जन्मे अमीर मीनाई एक ऐसे शायर थे जो ख़ास-ओ-आम, दोनों में बहुत लोकप्रिय हुए। उनके समकालीन ग़ालिब और दाग़ भी उनकी शायरी का लोहा मानते थे। लखनऊ के फ़रंगी महल में शिक्षा प्राप्त करने के बाद अमीर मीनाई अवध के रॉयल कोर्ट में शामिल हो गए, पर १८५७ में आज़ादी की लड़ाई शुरु हो जाने के बाद उन्हें रामपुर के राज दरबार से न्योता मिला और वहीं उन्होंने अपनी बाक़ी ज़िन्दगी गुज़ार दी। सन् १९०० में अमीर मीनाई हैदराबाद

११ जनवरी- आज का गाना

गाना:  तूफ़ान मेल चित्रपट: जवाब संगीतकार: कमल दासगुप्ता गीतकार:  पंडित मधुर गायिका: कानन देवी तूफ़ान मेल दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल इसके पहिये ज़ोर से चलते और अपना रस्ता तय करते सयाने इस से काम निकालें बच्चे समझे खेल तूफ़ान मेल   ... कोई कहाँ का टिकट काटता एक है आता एक है जाता सभी मुसाफ़िर बिछड़ जायेंगे पल भर का है मेल तूफ़ान मेल   ... जो जितनी पूँजी है रखता उसी मुताबिक़ सफ़र वो करता जीवन का है भेद बताती ज्ञानी को ये रेल तूफ़ान मेल   ...

१० जनवरी- आज का गाना

गाना:  मेरा नाम है चमेली चित्रपट: राजा और रंक संगीतकार: लक्ष्मीकांत प्यारेलाल गीतकार:  आनंद बक्षी गायिका: लता मंगेशकर मेरा नाम है चमेली मैं हूँ मालन अलबेली चली आई मैं अकेली बीकानेर से -२ ओ दारोगा बाबू बोलो जरा दरवज्जा तो खोलो खड़ी हूँ मैं दरवज्जे पे बड़ी देर से मेरा नाम है चमेली मैं हूँ मालन अलबेली चली आई मैं अकेली बीकानेर से मैं बागों से चुन चुन के लाई चम्पा की कलियाँ -२ ये कलियाँ बिछा के मैं सजा दूँ तेरी गलियाँ रे अंखियाँ मिला मेरी अंखियों से ओ मैं फूलों की रानी मैं बहारों की सहेली मेरा नाम है चमेली मैं हूँ मालन अलबेली चली आई मैं अकेली बीकानेर से ओ दारोगा बाबू बोलो जरा दरवज्जा तो खोलो खड़ी हूँ मैं दरवज्जे पे बड़ी देर से मेरा मनवा ऐसे धड़के जैसे डोले नइया -२ ओ बेदर्दी ओ हरजाई ओ बाँके सिपहिया रे घुंघटा मेरा तैने क्यूँ खोला मैं ऐसे शर्माई जैसे दुल्हन नई नवेली मेरा नाम है चमेली मैं हूँ मालन अलबेली चली आई मैं अकेली बीकानेर से ओ दारोगा बाबू बोलो जरा दरवज्जा तो खोलो खड़ी हूँ मैं दरवज्जे पे बड़ी देर से मेरा नाम है चमेली मैं हूँ मालन अलबेली

सिने पहेली # 2

सिने-पहेली # 2 (9 जनवरी 2012) रेडियो प्लेबैक इण्डिया के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! दोस्तों, 'सिने-पहेली' की दूसरी कड़ी लेकर मैं हाज़िर हूँ। सबसे पहले मैं आप सभी का शुक्रिया अदा करता हूँ कि इस नए स्तंभ को आप सब नें सराहा, जिसका सबूत है आपके ईमेल जो हमें cine.paheli@yahoo.com के आइडी पर लिख भेजे हैं। तो चलिए, आज दूसरी बार के लिए तैयार हो जाइए अपने-अपने फ़िल्मी ज्ञान को आज़माने के लिए, अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालने के लिए। आपको याद दिला दूँ कि इस स्तंभ में हर सप्ताह हम आपसे पाँच सवाल पूछने वाले हैं, जिनका जवाब आपको हमें लिख भेजने हैं। हर सप्ताह पिछले सप्ताह के विजेताओं के नाम घोषित किए जायेंगे, और ५० अंकों के बाद 'महा-विजेता' भी चुना जाएगा और उन्हें 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' की तरफ़ से पुरस्कृत भी किया जाएगा। प्रतियोगिता के नियम हम बाद में बतायेंगे, पहले आइए आपको बताएँ आज के पाँच सवाल जिन्हें हल करने है सिर्फ़ आपको ********************************************* सवाल-1: गोल्डन वॉयस गोल्डन वॉयस के लिए आज हमने चुना है एक विदाई गीत। इस गीत क

९ जनवरी- आज का गाना

गाना:  मतवाली नार ठुमक ठुमक चली जाये चित्रपट: एक फूल चार कांटे संगीतकार: शंकर जयकिशन गीतकार:  शेलेन्द्र गायक: मुकेश मतवाली नार ठुमक ठुमक चली जाये इन कदमों पे किस का जिया ना झुक जाये मतवाली नार ... फूल बदन मुखड़ा यूँ दमके बादल में ज्यों बिजली चमके गीत सुना के तू छम छम के ललचाये, छुप जाये, आय हाय मतवाली नार ... ये चंचल कजरारी आँखें ये चितचोर शिकारी आँखें गैइ दिल चीर कटारी अँखें मुस्काये, शामाये, झुक जाये मतवाली नार ...

‘आज गावत मन मेरो....’ : गीत उस्तादों के, चर्चा राग- देसी की

पंडित डी वी पलुस्कर  हिन्दी फिल्मों का इतिहास १९५३ में प्रदर्शित संगीतमय फिल्म ‘बैजू बावरा’ के उल्लेख के बिना अधूरा ही रहेगा। संगीतकार नौशाद को भारतीय संगीत के रागों के प्रति कितनी श्रद्धा थी, इस फिल्म के गीतों को सुन कर स्पष्ट हो जाता है। अपने समय के जाने-माने संगीतज्ञों को फिल्म संगीत के मंच पर लाने में नौशाद अग्रणी रहे हैं। आज की गोष्ठी में हम फिल्म ‘बैजू बावरा’ के एक गीत के माधम से प्रकृति के रंगों को बिखेरने में सक्षम राग ‘देसी’ अथवा ‘देसी तोड़ी’ पर चर्चा करेंगे। स्वरगोष्ठी – 51 उस्ताद अमीर खान और डी वी पलुस्कर न ये वर्ष के एक नये अंक और एक नये शीर्षक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आपकी इस सुरीली गोष्ठी में उपस्थित हूँ। विगत एक वर्ष तक आपका प्रिय स्तम्भ ‘सुर संगम’, अब आपके सुझावों के अनुरूप न केवल नये शीर्षक, बल्कि नये कलेवर के साथ आपके सम्मुख प्रस्तुत है। मित्रों, इस बदले हुए स्वरूप में अब आपकी सहभागिता भी रहेगी। आज की ‘स्वरगोष्ठी’ में हमारी चर्चा के विषय हैं- राग देसी, उस्ताद अमीर खान, पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर (डी.वी. पलुस्कर),संगीतकार नौशाद और फिल्म बैजू बावरा। म

८ जनवरी- आज का गाना

गाना: मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का चित्रपट: बरसात की रात संगीतकार: रोशन गीतकार: साहिर गायिका: लता मंगेशकर मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का कैसी खुशी लेके आया चाँद, ईद का मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का - २ ज़ुल्फ़ मचलके खुल खुल जाये चाल में मस्ती घुल घुल जाये, घुल घुल जाये ऐसी खुशी आज मिली आज मिली ऐसी खुशी आँखों मैं नाम नहीं, नींद का मुझे मिल गया बहाना ... जागती आँखें बुनती हैं सपने तुझको बिठाके पहलू में अपने, पहलू में अपने दिल की लगी ऐसी बड़ी ऐसी बड़ी दिल की लगी आँखों मैं नाम नहीं नींद का मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का कैसी खुशी लेके आया चाँद ईद का मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का