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फ़िल्म संगीत में ग़ालिब की ग़ज़लें - एक अवलोकन

'ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! दोस्तों, फ़िल्म-संगीत में ग़ज़लों का चलन शुरु से ही रहा है। गीतकारों नें तो फ़िल्मी सिचुएशनों के लिए ग़ज़लें लिखी ही हैं, पर कई बार पुराने अदबी शायरों की ग़ज़लें भी फ़िल्मों में समय-समय पर आती रही हैं, और इन शायरों में जो नाम सबसे उपर आता है, वह है मिर्ज़ा ग़ालिब। ग़ालिब की ग़ज़लें सबसे ज़्यादा सुनाई दी हैं फ़िल्मों में। आइए आज इस लेख के माध्यम से यह जानने की कोशिश करें कि ग़ालिब की किन ग़ज़लों को हिन्दी फ़िल्मों नें गले लगाया है। पेश-ए-ख़िदमत है 'ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेषांक' की ७३-वीं कड़ी।

२४ दिसम्बर - आज का कलाकार - मोहम्मद रफ़ी - जन्मदिन मुबारक

मोहम्मद रफ़ी एक ऐसा नाम है जिसे किसी परिचय की जरूरत नहीं.आज २४ दिसम्बर रफ़ी साहब का ८४ वाँ जन्मदिन है. हिन्दी सिनेमा के श्रेष्ठतम पार्श्व गायकों में से एक थे.इन्हें शहंशाह-ए-तरन्नुम भी कहा जाता था.१९४० के दशक से आरंभ कर १९८० तक तक इन्होने कुल २६००० गाने गाए.जिन अभिनेताओं पर उनके गाने फिल्माए गए उनमें गुरु दत्त, दिलीप कुमार, देव आनंद, भारत भूषण, जॉनी वॉकर, जॉय मुखर्जी, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, जीतेन्द्र तथा ऋषि कपूर के अलावे गायक अभिनेता किशोर कुमार का नाम भी शामिल है. हिन्दी के अलावा आपने अन्य भाषाओं में भी गाया.

गिरिजेश राव की कहानी "राजू के नाम एक पत्र"

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने प्रसिद्ध अमेरिकी कथाकार ओ हेनरी की "अ स्ट्रेंज स्टोरी" का हिन्दी अनुवाद " एक विचित्र कहानी " का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं गिरिजेश राव की कहानी " राजू के नाम एक पत्र ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "राजू के नाम एक पत्र" का कुल प्रसारण समय 4 मिनट 46 सेकंड है।

२३ दिसम्बर - आज की कलाकार - नूरजहाँ - श्रद्धांजलि

आज २३ दिसम्बर मल्लिका ए तरन्नुम नूरजहां की ११ वीं बरसी है.उन्होंने 1935 में सिर्फ़ नौ वर्ष की उम्र में कलकत्ता में ‘शीला या पिंड दी कुड़ी’ में सिर्फ़ एक गाने की झलक दिखा कर स्पष्ट कर दिया कि वह भविष्य की महान कलाकार हैं.

जीने के बहाने लाखों हैं, जीना तुझको आया ही नहीं....कभी सोचिये इस तरह भी

'ख़ून भरी माँग' १९८८ की राकेश रोशन की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म थी जो एक ऑस्ट्रेलियन मिनि सीरीज़ 'रिटर्ण टू ईडन' (१९८३) से प्रेरीत थी। यह कहानी है एक विधवा की जिसकी हत्या उसी का प्रेमी करना चाहता था, पर वो मौत के मुंह से निकल आती है और अपने प्रेमी से बदला लेती है।

आओ झूमें गायें, मिलके धूम मचायें....क्योंकि दोस्तों जश्न है ये ज़िदगी

किसी स्कूली छात्र को अगर "गाँव" शीर्षक पर निबन्ध लिखने को कहा जाये तो वह जिन जिन बातों का ज़िक्र करेगा, जिस तरह से गाँव का चित्रण करेगा, वो सब कुछ इस गीत में दिखाई देता है, और जैसे एक आदर्श गाँव का चित्र उभरकर हमारे सामने आता है। फ़िल्म 'पराया धन' शुरु होती है इसी गीत से और गीत में ही फ़िल्म की नामावली को शामिल किया गया है।

सुन सुन जीने वाले जीना है तो....झूमें हंसें सुनकर ऐसे मस्त गीत

यह गीत अपने आप में विविधता लिए हुए है। लता-किशोर की आवाज़ों के साथ साथ ऐनेटे की कन्ट्रास्ट भरी आवाज़ गीत को दूसरे गीतों से अलग करती है। विदेशी उच्चारण में शुद्ध हिन्दी के शब्दों को सुनना भी बड़ा मज़ेदार लगता है। ऐनेटे पिण्टो की आवाज़ सिडक्टिव आवाज़ है और शायद इसी वजह से जब भी संगीतकारों नें उनकी आवाज़ का इस्तेमाल अपने गीतों में किया, अधिकतर गानें वैसे ही किसी सिचुएशन के लिए बने होते थे।