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२३ दिसम्बर - आज की कलाकार - नूरजहाँ - श्रद्धांजलि

आज २३ दिसम्बर मल्लिका ए तरन्नुम नूरजहां की ११ वीं बरसी है.उन्होंने 1935 में सिर्फ़ नौ वर्ष की उम्र में कलकत्ता में ‘शीला या पिंड दी कुड़ी’ में सिर्फ़ एक गाने की झलक दिखा कर स्पष्ट कर दिया कि वह भविष्य की महान कलाकार हैं.

जीने के बहाने लाखों हैं, जीना तुझको आया ही नहीं....कभी सोचिये इस तरह भी

'ख़ून भरी माँग' १९८८ की राकेश रोशन की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म थी जो एक ऑस्ट्रेलियन मिनि सीरीज़ 'रिटर्ण टू ईडन' (१९८३) से प्रेरीत थी। यह कहानी है एक विधवा की जिसकी हत्या उसी का प्रेमी करना चाहता था, पर वो मौत के मुंह से निकल आती है और अपने प्रेमी से बदला लेती है।

आओ झूमें गायें, मिलके धूम मचायें....क्योंकि दोस्तों जश्न है ये ज़िदगी

किसी स्कूली छात्र को अगर "गाँव" शीर्षक पर निबन्ध लिखने को कहा जाये तो वह जिन जिन बातों का ज़िक्र करेगा, जिस तरह से गाँव का चित्रण करेगा, वो सब कुछ इस गीत में दिखाई देता है, और जैसे एक आदर्श गाँव का चित्र उभरकर हमारे सामने आता है। फ़िल्म 'पराया धन' शुरु होती है इसी गीत से और गीत में ही फ़िल्म की नामावली को शामिल किया गया है।

सुन सुन जीने वाले जीना है तो....झूमें हंसें सुनकर ऐसे मस्त गीत

यह गीत अपने आप में विविधता लिए हुए है। लता-किशोर की आवाज़ों के साथ साथ ऐनेटे की कन्ट्रास्ट भरी आवाज़ गीत को दूसरे गीतों से अलग करती है। विदेशी उच्चारण में शुद्ध हिन्दी के शब्दों को सुनना भी बड़ा मज़ेदार लगता है। ऐनेटे पिण्टो की आवाज़ सिडक्टिव आवाज़ है और शायद इसी वजह से जब भी संगीतकारों नें उनकी आवाज़ का इस्तेमाल अपने गीतों में किया, अधिकतर गानें वैसे ही किसी सिचुएशन के लिए बने होते थे।

सुनो ज़िंदगी गाती है...जाने कितने रंगों में डूबकर

इस भाव पर कई गीत बने हैं समय समय पर, कुछ के नाम गिनाते हैं - "ज़िन्दगी प्यार का गीत है, जिसे हर दिल को गाना पड़ेगा", "एक प्यार का नग़मा है, मौजों की रवानी है", "गीत है यह ज़िन्दगी, गुनगुनाते और गाते चले चलो", "ज़िन्दगी गीत है, अपने होठों पे इसको सजा लो", "ज़िन्दगी एक गीत है इसे होठों पे सजा ले", "जीवन को संगीत बना लो, एक जोगी का मीत बना लो", और भी न जाने कितने ऐसे गीत होंगे।

इस दुनिया में जीना हो तो...क्या करें सुने इस गीत में

फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह की थी कि एक नाइट क्लब में साथ-साथ नृत्य कर सात युवाओं की एक टीम (जिसमे पाँच पुरुष और दो महिलाएँ थीं) नें उस डान्स कम्पीटिशन को जीता, और इनाम के रूप में उन्हें एक प्राइवेट विमान से 'प्राइज़ हॉलिडे' में भेजे जाने का ऐलान हुआ। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था।।

स्वर-सम्राट उस्ताद अब्दुल करीम खाँ : जिनका कुत्ता भी सुरीला था

उस्ताद अब्दुल करीम खाँ सम्पूर्ण भारतीय संगीत का प्रतिनिधित्व करते थे। वे उत्तर और दक्षिण भारतीय संगीत के बीच एक सेतु थे। दक्षिण के कर्नाटक संगीत के कई रागों को उत्तर भारतीय संगीत में शामिल किया और सरगम के विशिष्ट अन्दाज को उत्तर भारत में प्रचलित किया। उनकी कल्पना विस्तृत और अनूठी थी, जिसके बल पर उन्होने भारतीय संगीत को एक नया आयाम और क्षितिज प्रदान किया।