Skip to main content

Posts

सांची कहे तोरे आवन से हमरे....याद आया ये मासूम सा गीत दादु के संगीत से संवरा

आज के अंक में हम आपको सुनवा रहे हैं फिर एक बार 'राजश्री' और 'रवीन्द्र जैन की जोड़ी की एक और ज़बरदस्त हिट फ़िल्म 'नदिया के पार' (१९८२) का गीत जसपाल सिंह की आवाज़ में। बोल हैं "सांची कहे तोरे आवन से हमरे अंगना में आये बहार भौजी"। फ़िल्म का पार्श्व ग्रामीण था, इसलिए फ़िल्म के गीतों में संगीत भी भोजपुरी शैली के थे। पर जब 'राजश्री' ने ९० के दशक में इसी फ़िल्म का शहरी रूपान्तर कर 'हम आपके हैं कौन' के रूप में पेश किया, तब इसी गीत का शहरी रूप बन गया "धिकताना धिकताना धिकताना, भाभी तुम ख़ुशियों का ख़ज़ाना"।

ऐ मेरे उदास मन चल दोनों कहीं दूर चलें...येसुदास ने अपने सबसे बेहतरीन गीत गाये दादु के लिए

एक दिन बासु भट्टाचार्य जी ने येसुदास को लाकर कहा कि यह लड़का गाएगा, इसे सुन लो। हम लोग अमोल पालेकर के लिए एक नई आवाज़ की तलाश कर रहे थे, तो येसुदास जी की आवाज़ उन पर बिल्कुल फ़िट हो गई, बहुत ही अच्छे गुणी कलाकार हैं। और यह जो गाना है न, "जब दीप जले आना", इसकी धुन मैंने पहले कलकत्ते में तैयार किया था एक नाटक के लिए, 'मृच्छ कटिका'। इसके बाद हम तो चल पड़े, मंज़िल की जिसको धुन हो, उसे कारवाँ से क्या!" दोस्तों, इसी बात पर येसुदास का गाया फ़िल्म 'मान अभिमान' का वह गीत यकायक याद आ गया, जिसके बोल हैं "ऐ मेरे उदास मन चल दोनों कहीं दूर चलें, मेरे हमदम, तेरी मंज़िल, ये नहीं ये नहीं कोई और है

एक दिन तुम बहुत बड़े बनोगे...और दिल से बहुत बड़े बने दादु हमारे

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 797/2011/237 'मे रे सुर में सुर मिला ले' शृंखला की सातवीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। रवीन्द्र जैन के लिखे और स्वरबद्ध किए गीतों की इस शृंखला में आइए आज आपको बतायें कि दादु को बम्बई में पहला मौका किस तरह से मिला। " झुनझुनवाला जी नें मुझे कहा कि तुम अभी थोड़ा धैर्य रखो, यहाँ बैठ के काम करो, अपने घर में जगह दी, और काम करता रहा, उनको धुनें बना बना के सुनाता था, उन्होंने एक फ़िल्म प्लैन की 'लोरी', जिसके लिए हम बम्बई गानें रेकॉर्ड करने आए थे, जिसका मुकेश जी नें दो गानें गाये। मुकेश जी का एक गाना मैं आपको सुनाता हूँ, जो कुछ मैं कलकत्ते से यहाँ लेके आया था - "दुख तेरा हो कि दुख मेरा हो, दुख की परिभाषा एक है, आँसू तेरे हों कि आँसू मेरे हों, आँसू की भाषा एक है "।"