Skip to main content

Posts

"पहला म्युज़िक विडियो प्लस चैनल नें ही बनाया नाज़िया हसन को लेकर"- अमित खन्ना

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 63 "मैं अकेला अपनी धुन में मगन" - भाग:२ पढ़ें भाग ०१ यहाँ ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! पिछले अंक में आप मिले सुप्रसिद्ध गीतकार एवं फ़िल्म व टी.वी. प्रोड्युसर-डिरेक्टर अमित खन्ना से। अमित जी इन दिनों रिलायन्स एन्टरटेनमेण्ट के चेयरमैन हैं, इसलिए ज़ाहिर है कि वो बहुत ही व्यस्त रहते हैं। बावजूद इसके उन्होंने 'हिन्द-युग्म' को अपना मूल्यवान समय दिया, पर बहुत ज़्यादा विस्तार से बातचीत सम्भव नहीं हो सकी। और वैसे भी अमित जी अपने बारे में ज़्यादा बताने में उत्साही नहीं है, उनका काम ही उनका परिचय रहा है। आइए अमित जी से बातचीत पर आधारित शृंखला 'मैं अकेला अपनी धुन मे मगन' की दूसरी कड़ी में उनसे की हुई बातचीत को आगे बढ़ाते हैं। पिछली कड़ी में यह बातचीत आकर रुकी थी फ़िल्म 'चलते चलते' के शीर्षक गीत पर। अब आगे... सुजॉय - अमित जी, 'चलते चलते' फ़िल्म का ही एक और गीत था लता जी का गाया "दूर दूर तुम रहे"। अमित जी - जी हाँ, इस गीत के लिए उन्हें अवार्ड भी मिला था। इस गीत की धुन

घुघूतीबासूती की कहानी - ओह!

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की कहानी " अग्नि समर्पण " का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं घुघूतीबासूती का व्यंग्य " ओह! ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। "ओह!" का कुल प्रसारण समय 5 मिनट 17 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट घुघूतीबासूती ब्लॉग पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। वे ठंडी हवाएँ, वह बर्फ से ढकी पहाड़ों की चोटियाँ, चीड़ व देवदार के वृक्ष! बस इन्हीं यादों को, अपने छूटे कुमाऊँ को, अपनी स्वर्गीय दीदी की याद को श्रद्धा व स्नेह के सुमन अर्पण करने के लिए मैंने स्वयं को नाम दिया है घुघूती बासूती! ~ घुघूतीबासूती हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "दहेज में पैसा माँगत

संग मेरे निकले थे साजन....आज लीजिए नेपाली लोक धुन से प्रेरित ये गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 765/2011/205 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत के लोक धुनों पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी रचनाओं की चल रही शृंखला 'पुरवाई' में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। असम, सिक्किम और उत्तर बंगाल में एक बड़ा समुदाय नेपालियों का भी है। मूलत: नेपाल से ताल्लुख़ रखने वाले ये लोग बहुत समय पहले इन अंचलों में आ बसे थे और अब ये भारत के ही नागरिक हैं और भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग भी। नेपाली लोक-गीत इतने मधुर होते हैं कि तनाव भरी ज़िन्दगी जी रहे लोग अगर इन्हें सुनें तो जैसे मन-मस्तिष्क ताज़गी से भर जाता है। पहाड़ों की मन्द-मन्द शीतल बयार जैसे इन गीतों के साथ-साथ चलने लग जाती है। जितने भी भारत के पहाड़ी अंचल हैं, उनमें जो लोक-संगीत की परम्परा है, उनमें नेपाली लोक-संगीत एक बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखती है। और शायद इसी वजह से हमारी हिन्दी फ़िल्मों में भी कई बार नेपाली लोक धुनों का गीतों में इस्तमाल किया गया है। सलिल चौधरी एक ऐसे संगीतकार हुए जिन्होंने असम और पहाड़ी संगीत का ख़ूब इस्तमाल किया जिनमें नेपाली लोक धुनें भी शामिल थीं। इसका सबसे महत्वपूर्ण उ

जाने क्या है जी डरता है...असम के चाय के बागानों से आती एक हौन्टिंग पुकार

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 764/2011/204 अ सम के लोक-संगीत की बात चल रही हो और चाय बागानों के संगीत की चर्चा न हो, यह सम्भव नहीं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है शृंखला 'पुरवाई' में जिसमें इन दिनों आप पूर्व और उत्तर-पूर्व भारत के लोक धुनों पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी गीत सुन रहे हैं। चाय बागानों की अपनी अलग संस्कृति होती है, अपना अलग रहन-सहन, गीत-संगीत होता है। दरअसल इन चाय बागानों में काम करने वाले मज़दूर असम, बंगाल, बिहार और नेपाल के रहने वाले हैं और इन सब की भाषाओं के मिश्रण से एक नई भाषा का विकास हुआ जिसे चाय बागान की भाषा कहा जाता है। यह न तो असमीया है, न ही बंगला, न नेपाली है और न ही हिन्दी। इन चारों भाषाओं की खिचड़ी लगती है सुनने में, पर इसका स्वाद जो है वह खिचड़ी जैसा ही स्वादिष्ट है। यहाँ का संगीत भी बेहद मधुर और कर्णप्रिय होता है। असम के चाय बागानों में झुमुर नृत्य का चलन है। यह नृत्य लड़कों और लड़कियों द्वारा एक साथ किया जाता है, और कभी-कभी केवल लड़कियाँ करती हैं झुमुर नृत्य। इस नृत्य में पाँव के स्टेप्स का बहुत महत्व होता है, एक क़दम ग़लत पड़ा और नृत्य बिग

जब से तूने बंसी बजाई रे....भूपेन हजारिका का स्वरबद्ध एक मधुर गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 763/2011/203 पू र्वी और पुर्वोत्तर राज्यों के लोक धुनों पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी गीतों की लघु शृंखला 'पुरवाई' की तीसरी कड़ी में आप सभी का स्वागत है। जैसा कि पहली कड़ी में हमने कहा था कि हमारे देश के हर राज्य के अन्दर भी कई अलग अलग प्रकार के लोक गीत पाये जाते हैं; इसमे असम राज्य कोई व्यतिक्रम नहीं है। कल की कड़ी में हमने बिहु का आनद लिया था, आज प्रस्तुत है असम की भक्ति गीतों की शैली में कम्पोज़ किया एक गीत। असम के नामघरों में जिस तरह का धार्मिक संगीत गाया जाता है, यह गीत उसी शैली का है। संगीतकार भूपेन हज़ारिका नें पहली बार इसका प्रयोग अपनी असमीया फ़िल्म 'मणिराम दीवान' के "हे माई जोख़ुआ" गीत में किया था, बाद में ७० के दशक में जब उन्हे हिन्दी फ़िल्म 'आरोप' में संगीत देने का सुयोग मिला, और एक भक्ति रचना उन्हें फ़िल्म के लिए कम्पोज़ करना था, तो इसी धुन का उन्होंने दुबारा इस्तमाल किया और गायिका लक्ष्मी शंकर से यह गीत गवाया जिसके बोल थे "जब से तूने बंसी बजाई रे, बैरन निन्दिया चुराई, मेरे ओ कन्हाई, नटखट कान्हा ओ हरजाई रे काहे पकड़ी

फूले बन बगिया, खिली कली कली....बिहु रंग रंगा ये सुरीला गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 762/2011/202 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस सुरीली महफ़िल में। कल से हमने शुरु की है पूर्वी और पुर्वोत्तर भारत के लोक गीतों पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी गीतों से सजी लघु शृंखला 'पुरवाई'। कल पहली कड़ी में आपनें सुनी अनिल बिस्वास के संगीत में मेघालय के खासी जनजाति के एक लोक धुन पर आधारित मीना कपूर की गाई फ़िल्म 'राही' की एक लोरी। आज जो गीत हम लेकर आये हैं उसके संगीतकार भी अनिल बिस्वास ही हैं और गायिका भी मीना कपूर ही हैं। पर साथ में मन्ना डे की आवाज़ भी शामिल है। पर यह गीत किसी खासी लोक धुन पर नहीं बल्कि असम की सबसे ज़्यादा लोकप्रिय लोक-गीत 'बिहु' पर आधारित है। बिहु में गीत, संगीत और नृत्य, तीनों की समान रूप से प्रधानता होती है। इनमें से कोई भी एक अगर कमज़ोर पड़ जाए, तो बात नहीं बनती। बिहु असम का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार भी है और बिहु गीत व बिहु नृत्य इस त्योहार का प्रतीक स्वरूप है। 'बिहु' शब्द 'दिमसा कछारी' जनजाति के भाषा से आया है। ये लोग मुख्यत: कृषि प्रधान होते हैं और ये ब्र

चाँद सो गया, तारे सो गए....मधुर लोरी में पुरवैया की महक लाये अनिल दा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 761/2011/201 ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस सुरीले सफ़र में। और इस सुरीले सफ़र के हमसफ़र, मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ और आप सभी को साथ लेकर फिर से चल पड़ा हूँ एक और नई शृंखला के साथ। दोस्तों, किसी भी देश में जितने भी प्रकार के संगीत पाये जाते हैं, उनमें से सबसे ज़्यादा लोकप्रिय संगीत होता है वहाँ का लोक-संगीत। जैसा कि नाम में ही "लोक" शब्द का प्रयोग है, यह है ही आम लोगों का संगीत, सर्वसाधारण का संगीत। लोक-संगीत एक ऐसी धारा है संगीत की जिसे गाने के लिए न तो किसी संगीत शिक्षा की ज़रूरत पड़ती है और न ही इसमें सुरों या तकनीकी बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। यह तो दिल से निकलने वाला संगीत है जो सदियों से लोगों की ज़ुबाँ से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती चली आई है। हमारे देश में पाये जाने वाला लोक-संगीत यहाँ की अन्य सब चीज़ों की तरह ही विविध है, विस्तृत है, विशाल है। यहाँ न केवल हर राज्य का अपना अलग लोक-संगीत है, बल्कि एक राज्य के अन्दर भी कई कई अलग तरह के लोक-संगीत पाये जाते हैं। आज