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रातों को जब नींद उड़ जाए....सलिल दा के संगीत की मासूमियत और लता

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 757/2011/197 न मस्कार साथियों, लता जी अपने आप में एक ऐसी किताब हैं जिसको जितना भी पढ़ो कम ही है. गाना चाहे कैसा भी हो अगर उनकी आवाज आ जाए तो क्या कहना? गाने में शक्कर अपने आप घुल जाती है. ओ.पी.नय्यर को छोड़कर लता मंगेशकर ने हर बड़े संगीतकार के साथ काम किया, मदनमोहन की ग़ज़लें और सी रामचंद्र के भजन लोगों के मन-मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ चुके हैं. जितना भी आप सुनें आपका मन नही भरेगा. ओ.पी.नय्यर साहब के साथ लता जी ने कभी काम नहीं करा.एक बार लता जी ने हरीश भिमानी जी से कहा " आप शायद जानते होंगे, कि मैंने नय्यर साहब के लिए गीत क्यों नहीं गाये! ". हरीश जी ने कहा कि मैंने सुना है कि बहुत पहले, नय्यर साहब के शुरुआत के दिनों में, फिल्म सेन्टर में एक रिकॉर्डिंग करते समय आप "सिंगर्स बूथ" में गा रही थीं और वह 'मिक्सर' पर रिकॉर्डिस्ट और निर्देशक के साथ थे और आपने 'इन्टरकोम' पर उन्हें कुछ अपशब्द कहते हुए सुना और वहीँ के वहीं हेडफोन्स उतार कर स्टूडियो से सीधे घर चल दीं, किसी को बताये बगैर. बस फिर उनके लिए कभी गाया ही नहीं. " अच्छा...? &q

कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार.....निर्गुण भक्ति और लता

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 756/2011/196 न मस्कार दोस्तों. आज हम आ पहुंचे हैं लता जी को समर्पित ‘मेरी आवाज ही पहचान है....’ श्रृंखला की सातवीं कड़ी पर. सबसे पहले तो ऊँचाइयों पर पहुँचाना कठिन होता है और जब उसे हासिल कर लिया जाए तब वहाँ पर मजबूती के साथ टिके रहना उससे भी कठिन होता है. और वही लता जी के साथ हुआ. वो उस मुकाम पर पहुँची और उन पर कई आरोप लगाये गए. एक संगीन आरोप लगा ‘मोनोपोली’ का. आरोप लगा था कि लता जी के कहने पर म्यूजिक डायरेक्टर दूसरों को गाने का मौका ही नहीं देते. लता जी ही निर्णय करती हैं कि कौन म्यूजिक डायरेक्टर होगा, कितने गाने होंगे आदि आदि ... लता जी से जब पूछा गया था तो वो नाराज होकर बोलीं कि अगर मुझे ही तय करना होता कि म्यूजिक डायरेक्टर कौन होगा तो तब तो आधी से ज्यादा फिल्मों में मेरे भाई हृदयनाथ को म्यूजिक डायरेक्टर होना चाहिए था. इसके विपरीत कविता कृष्णमूर्ती ने एक साक्षात्कार में एक अनुभव शेअर किया था. १९८२ में कविता जी ने निर्माता राजकुमार कोहली की एक निर्माणाधीन फिल्म के लिए, बप्पी दा के संगीत निर्देशन में ‘डबिंग’ गायिका के तौर पर एक गाना गाया था, यह जानते हुए, कि बा

चंदा मामा आरे आवा...एक मधुर लोरी...अरे अरे सो मत जाईयेगा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 756/2011/196 सु रों की मल्लिका लता मंगेशकर पर आधारित श्रंखला ‘मेरी आवाज ही पहचान है....' की छठी कड़ी में मैं अमित तिवारी आप सभी गुणी श्रोताओं और पाठकों का स्वागत करता हूँ. लता जी का पसन्दीदा वाद्य है ‘बाँसुरी'. पंडित पन्नालाल घोष की बाँसुरी के लिए उन्होंने कहा था कि 'उनकी बाँसुरी बजती ही नहीं थी, बल्कि गाती थी. फिल्म बसंत बहार के गाने ‘मैं पिया तेरी तू माने या न माने’ में दो गायिकाएं हैं, मैं और पन्नाबाबू की बाँसुरी.' शहनाई उन्हें उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के अलावा किसी और की पसंद ही नहीं आयी. युसूफ भाई यानी कि दिलीप कुमार से लता जी की मुलाकात बड़े ही अजीब ढंग से हुई थी. एक बार अनिल बिस्वास और लता जी ‘फिल्मिस्तान स्टूडियो’ लोकल ट्रेन से जा रहे थे. यह वो समय था जब इन सितारों के पास गाड़ियां नहीं हुआ करती थीं और ट्रेनों में भीड़ भी नहीं हुआ करती थी. बांद्रा स्टेशन से दिलीप कुमार उसी डिब्बे में चढ़े. अनिल दा से दुआ सलाम हुआ. ये लोग आमने-सामने बैठे हुए थे तो अनिल दा ने कहा की युसूफ ये लता मंगेशकर है बहुत अच्छा गाती हैं. तो उन्होंने कहा कि कहाँ की है तो