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पायलिया बांवरी मोरी....सूने महल में नाचती रक्कासा के स्वरों में राग मारवा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 746/2011/186 ‘ओ ल्ड इज़ गोल्ड‘ पर जारी श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के नए सप्ताह में सभी रसिकों का मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार फिर हार्दिक स्वागत करता हूँ। आधुनिक उत्तर भारतीय संगीत में राग-वर्गीकरण के लिए प्रचलित दस थाट प्रणाली पर केन्द्रित इस श्रृंखला में अब तक आप कल्याण, बिलावल, खमाज, भैरव और पूर्वी थाट का परिचय प्राप्त कर चुके हैं। आज की कड़ी में हम ‘मारवा’ थाट पर चर्चा करेंगे। हमारा भारतीय संगीत एक सुदृढ़ और समृद्ध आधार पर विकसित हुआ है। समय-समय पर इसका वैज्ञानिक दृष्टि से मूल्यांकन होता रहा है। यह परिवर्द्धन वर्तमान थाट प्रणाली पर भी लागू है। आधुनिक संगीत में प्राचीन मुर्च्छनाओं के स्थान पर मेल अथवा थाट प्रणाली का उपयोग किया जाता है। सभी छोटे-बड़े अन्तराल, जो रागों के लिए आवश्यक हैं, सप्तक की सीमाओं के अन्तर्गत रखे गए और मुर्च्छना की प्राचीन प्रणाली का परित्याग किया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि यह परिवर्तन चार-पाँच सौ वर्ष पूर्व हुआ। आज ऋषभ, गांधार, मध्यम, धैवत और निषाद स्वरों के प्रत्येक स्वर की एक या दो श्रुतियों को ग्रहण कर नवीन थाट का निर्माण करते

'गीतांजलि' ने मानव मन में एक स्निग्ध, स्नेहिल स्पर्श दिया - माधवी बंद्योपाध्याय

सुर संगम - 35 -रवीन्द्रनाथ ठाकुर की सार्द्धशती वर्ष-२०११ पर श्रद्धांजलि (तीसरा भाग) बांग्ला और हिन्दी साहित्य की विदुषी श्रीमती माधवी बंद्योपाध्याय से कृष्णमोहन मिश्र की रवीन्द्र साहित्य और उसके हिन्दी अनुवाद विषयक चर्चा पहले पढ़ें पहला भाग दूसरा भाग स भी संगीत-प्रेमियों का ‘सुर संगम’ के आज के अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। आपको स्मरण ही है कि इन दिनों हम कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर के १५०वें जयन्ती वर्ष में रवीन्द्र-साहित्य की विदुषी माधवी बंद्योपाध्याय से बातचीत कर रहे हैं। माधवी जी ने रवीद्रनाथ के अनेक गद्य और पद्य साहित्य का हिन्दी अनुवाद किया है। यह सभी अनुवाद सदा साहित्य जगत में चर्चित रहे। इस वर्ष रवीन्द्रनाथ ठाकुर के सार्द्धशती वर्ष में माधवी जी द्वारा अनूदित रवीन्द्रनाथ ठाकुर की लोकप्रिय कहानियों के संग्रह का प्रकाशन उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा किया गया है। गद्य साहित्य से अधिक महत्त्वपूर्ण है रवीन्द्रनाथ के गीतों का हिन्दी अनुवाद। माधवी जी द्वारा किये गीतों का अनुवाद केवल शाब्दिक ही नहीं है बल्कि स्वरलिपि के अनुकूल भी है। इस श्रृंखला

भारत में ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड की शुरुआत

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 59 यूं तो ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड के बारे में हम सभी को जानकारी है, लेकिन ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड की सटीक परिभाषा क्या है? विकिपीडिआ में इसकी परिभाषा कुछ इस तरह से दी गई है - "A gramophone record, also known as a phonograph record, is an analogue sound storage medium consisting of a flat disc with an inscribed modulated spiral groove starting near the periphery and ending near the center of the disc." ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड के कई प्रकार हैं जैसे कि एल.पी रेकॉर्ड (LP, 33, or 33-1/3 RPM), ई.पी रेकॉर्ड (EP, 16-2/3 RPM), 45 RPM रेकॉर्ड और 78 RPM रेकॉर्ड। 78 RPM रेकॉर्ड वह रेकॉर्ड है जो प्रति मिनट ७८ बार अपनी धूरी पर घूमती है। एल.पी का अर्थ है 'लॉंग प्ले' तथा ई.पी का अर्थ है 'एक्स्टेण्डेड प्ले'। एल.पी, 16 और 45 RPM रेकॉर्डों का निर्माण पॉलीविनाइल क्लोराइड (PVC) से होता था, जिस वजह से इन्हें विनाइल रेकॉर्ड भी कहते हैं। 'सोसायटी ऑफ़ इण्डियन रेकॉर्ड कलेक्टर्स मुंबई' के सुरेश चंदावरकर नें बहुत अच्छी तरह से भारत में ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड के विकास