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शरमाये काहे, घबराये काहे, सुन मेरे राजा...नशीली अंदाज़ और चुलबुलापन शमशाद की आवाज़ का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 734/2011/174 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का नमस्कार! आज 'ईद-उल-फितर' का पाक़ मौका है। इस मौक़े पर मैं, अपनी तरफ़ से, और पूरे 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से आप सभी को दिली मुबारक़बाद देता हूँ। यह त्योहार आप सब के जीवन में ढेरों ख़ुशियाँ लेकर आएँ, यही परवर दिगारे आलम से दरख्वास्त है। एक तरफ़ ईद की ख़ुशियाँ हों, और दूसरी तरफ़ हो शमशाद बेगम की खनकती आवाज़ का जादू, तो फिर जैसे सोने पे सुहागा वाली बात है, क्यों है न? तो चलिए 'बूझ मेरा क्या नाव रे' शृंखला की चौथी कड़ी शुरु की जाए। दोस्तों, आजकल फ़िल्मों में आइटम नंबर का बड़ा चलन हो गया है। शायद ही कोई ऐसी फ़िल्म बनती है जिसमें इस तरह का गीत न हो। लेकिन यह परम्परा आज की नहीं है, बल्कि पचास के दशक से ही चली आ रही है। आज जिस तरह से कुछ निर्दिष्ट गायिकाओं से आइटम सॉंग गवाये जाते हैं, उस ज़माने में भी वही हाल था। और उन दिनों इस जौनर में शीर्ष स्थान शमशाद बेग़म का था। बहुत सी फ़िल्में ऐसी बनीं, जिनमें मुख्य नायिका का पार्श्वगायन किसी और गायिका नें किया, जबकि शमशाद बेगम से

हरकीरत हीर के मजमुआ-ए-नज़्म 'दर्द की महक' का विमोचन

कविताप्रेमियो, आप सभी को ईद की बधाइयाँ! आज कविता की दुनिया की रुहानी-क़लम अमृता प्रीतम की जयंती है। अमृता अपनी रचनाओं में एक ख़ास तरह की रुमानियत और कोर-संवेदनशीलता के लिए पहचानी जाती हैं। कुछ इसी तरह की रचनाधर्मिता युवा कवयित्री हरकीरत हीर की कविताओं में दृष्टिगोचर होती है। और कितना सुखद संयोग है कि आज ही हरकीरत का भी जन्मदिन है। हरकीरत खुद के अमृता से इस संयोग को चित्रित करते हुए कहती हैं- "...वह अमृता जिसकी आत्मा का इक-इक अक्षर हीर के ज़िस्म में मुस्कुराता है ...जिसकी इक-इक सतर हीर की तन्हा रातों में संग रही है..." नज़्मों से निर्मित उसी हरकीरत की नज़्मों का एक संग्रह 'दर्द की महक' का प्रकाशन हिन्द-युग्म ने किया है। और अमृता की जयंती, हरकीरत के जन्मदिन और ईद के इस महान संयोग पर 'दर्द की महक' का ऑनलाइन विमोचन कर रहा है। (यहाँ से फीटा काटकर विधिवत लोकार्पण करें) 'दर्द की महक' से अमृता के जन्मदिन को समर्पित एक नज़्म उसने कहा है अगले जन्म में तू फ़िर आएगी मोहब्बत का फूल लिए रात .... बहुत गहरी बीत चुकी है मैं हाथों में कलम लिए मग्मूम सी बैठी हूँ .... जान

ना बोल पी पी मोरे अंगना, ओ पंछी जा रे जा...एक अंदाज़ ये भी शमशाद का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 733/2011/173 श मशाद बेगम के गाये गीतों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'बूझ मेरा क्या नाव रे' की आज है तीसरी कड़ी। कुछ वर्ष पहले वरिष्ठ उद्‍घोषक कमल शर्मा के नेतृत्व में विविध भारती की टीम पहुँची थी शमशाद जी के पवई के घर में, और उनसे लम्बी बातचीत की थी। उसी बातचीत का पहला अंश कल हमनें पेश किया था, आइए आज उसी जगह से बातचीत के कुछ और अंश पढ़ें। शमशाद जी: मैंने मास्टरजी (ग़ुलाम हैदर) से फिर कहा कि दूसरा गाना गाऊँ? उन्होंने कहा कि नहीं, इतना ठीक है। फिर १२ गानों का ऐग्रीमेण्ट हो गया, हर गाने के लिए १२ रुपये। मास्टरजी नें उन लोगों से कहा कि इस लड़की को वो सब फ़ैसिलिटीज़ दो जो सब बड़े आर्टिस्टों को देते हो। उस ज़माने में ६ महीनों का कॉनट्रैक्ट हुआ करता था, ६ महीने बाद फिर रेकॉर्डिंग् वाले आ जाते थे। सुबह १० से शाम ५ बजे तक हम रिहर्सल किया करते म्युज़िशियन्स के साथ, मास्टरजी भी रहते थे। आप हैरान होंगे कि उन्हीं के गाने गा गा कर मैं आर्टिस्ट बनी हूँ। कमल जी: आप में भी लगन रही होगी? शमशाद जी - मास्टर ग़ुलाम हैदर साहब कहा करते थे कि इस लड़की में ग