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रेडियो और रेशम की डोरी

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 54 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नम्स्कार! आज रक्षाबंधन है। भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को मनाता यह त्योहार आप सभी के जीवन में ख़ुशियाँ लेकर आये, यह हमारी शुभकामना है। आप सभी को इस पावन पर्व रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ। आज के इस शनिवार विशेषांक में मैं अपने ही जीवन के का अनुभव आप सभी के साथ बाँटने जा रहा हूँ जो शायद आज के दिन के लिए बहुत सटीक है। किसी नें ठीक ही कहा है कि कुछ रिश्तों को नाम नहीं दिया जा सकता। ये रिश्ते न तो ख़ून के रिश्ते हैं, न ही दोस्ती के, और न ही प्रेम-संबंध के। ये रिश्ते बस यूं ही बन जाया करते हैं। मेरा भी एक ऐसा ही रिश्ता बना है रेडियो की तीन उद्‍घोषिकाओं के साथ, जिनकी आवाज़ें मैं करीब २७-२८ सालों से सुनता चला आ रहा हूँ, पर जिनसे मिलने का मौका अभी पिछले वर्ष ही हुआ। इस रिश्ते की शुरुआत शायद तब हुई जब मैं बस चार साल का था। मेरी माँ स्कूल टीचर हुआ करती थीं जिस वजह से मैं और मेरा बड़ा भाई दोपहर को घर पर अकेले ही होते थे। ८० के दशक के उन शुरुआती सालों में मनोरंजन का एकमात्र ज़रिया रेडियो ही हु

भीष्म साहनी के जन्मदिन पर विशेष "चील"

सुनो कहानी: भीष्म साहनी की "चील" 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अर्चना चावजी और सलिल वर्मा की आवाज़ में संजय अनेजा की कहानी "इंतज़ार" का पॉडकास्ट सुना था। आठ अगस्त को प्रसिद्ध लेखक, नाट्यकर्मी और अभिनेता श्री भीष्म साहनी का जन्मदिन होता है. इस अवसर पर आवाज़ की ओर से प्रस्तुत है उनकी एक कहानी। मैं तब से उनका प्रशंसक हूँ जब पहली बार स्कूल में उनकी कहानी "अहम् ब्रह्मास्मि" पढी थी। सुनो कहानी में वही कहानी पढने की मेरी बहुत पुरानी इच्छा है परन्तु यहाँ उपलब्ध न होने के कारण आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं उनकी एक और प्रसिद्ध कहानी "चील" जिसको स्वर दिया है संज्ञा टंडन ने। आशा है आपको पसंद आयेगी। कहानी का कुल प्रसारण समय 21 मिनट 5 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ

आगे भी जाने न तू....जब बदलती है जिंदगी एक पल में रूप अनेक तो क्यों न जी लें पल पल को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 720/2011/160 स जीव सारथी के लिखे कविता-संग्रह ' एक पल की उम्र लेकर ' पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इसी शीर्षक से लघु शृंखला की आज दसवीं और अंतिम कड़ी है। आज जिस कविता को हम प्रस्तुत करने जा रहे हैं, वह इस पुस्तक की शीर्षक कविता है 'एक पल की उम्र लेकर'। आइए इस कविता का रसस्वादन करें... सुबह के पन्नों पर पायी शाम की ही दास्ताँ एक पल की उम्र लेकर जब मिला था कारवाँ वक्त तो फिर चल दिया एक नई बहार को बीता मौसम ढल गया और सूखे पत्ते झर गए चलते-चलते मंज़िलों के रास्ते भी थक गए तब कहीं वो मोड़ जो छूटे थे किसी मुकाम पर आज फिर से खुल गए, नए क़दमों, नई मंज़िलों के लिए मुझको था ये भरम कि है मुझी से सब रोशनाँ मैं अगर जो बुझ गया तो फिर कहाँ ये बिजलियाँ एक नासमझ इतरा रहा था एक पल की उम्र लेकर। ज़िंदगी की कितनी बड़ी सच्चाई कही गई है इस कविता में। जीवन क्षण-भंगुर है, फिर भी इस बात से बेख़बर रहते हैं हम, और जैसे एक माया-जाल से घिरे रहते हैं हमेशा। सांसारिक सुख-सम्पत्ति में उलझे रहते हैं, कभी लालच में फँस जाते हैं तो कभी झूठी शान दिखा बैठते हैं। कल किसी नें न