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अभिषेक ओझा की कहानी "प्रेम गली अति..."

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की कहानी " गुरुर्ब्रह्मा ... " का पॉडकास्ट उन्हीं की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अभिषेक ओझा की कहानी " प्रेम गली अति... ", उन्हीं की आवाज़ में। कहानी "प्रेम गली अति..." का कुल प्रसारण समय 6 मिनट 52 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट ओझा-उवाच पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। वास्तविकता तो ये है कि किसे फुर्सत है मेरे बारे में सोचने की, लेकिन ये मानव मन भी न! ~ अभिषेक ओझा हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "...ठीक ऐसी ही ठंढ थी... उसे गुस्सा आ रहा था। एक तो उसे ठंड पसंद नहीं थी ऊपर से बर्फ... और ये लड़की। " ( अभिषेक ओझा की "प्रेम गली अति..." से एक अंश ) नीचे के प्लेयर

मेघा बरसने लगा है आज की रात...राग "जयन्ती मल्हार" पर आधारित एक आकर्षक गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 710/2011/150 व र्षा गीतों पर आधारित श्रृंखला "उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा" की समापन कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ| इस श्रृंखला का समापन हम राग "जयन्ती मल्हार" और इस राग पर आधारित एक आकर्षक गीत से करेंगे| परन्तु आज के राग और गीत पर चर्चा करने से पहले संगीत के रागों और फिल्म-संगीत के बारे में एक तथ्य की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना आवश्यक है| शास्त्रीय संगीत में रागानुकुल स्वरों की शुद्धता आवश्यक होती है| परन्तु सुगम और फिल्म संगीत में रागानुकुल स्वरों की शुद्धता पर कड़े प्रतिबन्ध नहीं होते| फिल्मों के संगीतकार का ज्यादा ध्यान फिल्म के प्रसंग और चरित्र की ओर होता है| इस श्रृंखला में प्रस्तुत किये गए दो गीतों को छोड़ कर शेष गीतों में एकाध स्थान पर राग के निर्धारित स्वरों में आंशिक मिलावट की गई है; इसके बावजूद राग का स्पष्ट स्वरुप इन गीतों में नज़र आता है| गीतों को चुनने में यही सावधानी बरती गई है| आज हमारी चर्चा में राग "जयन्ती मल्हार" है| वर्षा ऋतु में गाये-बजाये जाने वाले रागों में "जयन्ती मल्हार" भी

अंग लग जा बालमा..."मेघ मल्हार" के सुरों से वशीभूत नायिका का मनुहार

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 709/2011/149 "ओ ल्ड इज गोल्ड" पर जारी वर्षाकालीन रागों पर आधारित गीतों की श्रृंखला "उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा" की नौवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार फिर उपस्थित हूँ| आज एक बार फिर हम राग "मेघ मल्हार" पर चर्चा करेंगे और उसके बाद इसी राग पर आधारित, श्रृंगार रस से सराबोर संगीतकार शंकर-जयकिशन की एक संगीत रचना का आनन्द लेंगे| श्रृंखला की पहली कड़ी में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि राग "मेघ मल्हार" एक प्राचीन राग है| संगीत शास्त्र के प्राचीन ग्रन्थों में इस राग को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना गया है| आचार्य लोचन के ग्रन्थ "राग तरंगिणी" में रागों के वर्गीकरण के लिए जिन 12 थाटों का वर्णन है, उनमे एक थाट "मेघ" भी है| प्राचीन राग-रागिनी पद्यति में भी छह मुख्य रागों में "मेघ" भी है| पण्डित विष्णु नारायण भातखंडे द्वारा वर्गीकृत थाट व्यवस्था में यह राग काफी थाट के अन्तर्गत आता है| भातखंडे जी ने "संगीत शास्त्र" के चौथे खण्ड में लिखा है कि राग "मेघ मल्हार" उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में