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साजन के छोड़ कर चले जाने की स्थिति में "मैं रोय मरूँगी..." की धमकी देती नायिका

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 683/2011/123 ठु मरी गीतों की हमारी श्रृंखला "रस के भरे तोरे नैन" की तीसरी कड़ी में आप सभी संगीत प्रेमियों का मैं कृष्णमोहन मिश्र स्वागत करता हूँ| कल की ठुमरी में आपने श्रृंगार रस के वियोग पक्ष का कल्पनाशील चित्रण महसूस किया था; किन्तु आज की ठुमरी में नायिका अपने प्रियतम से बिछड़ना ही नहीं चाहती| उसे रोकने के लिए नायिका तरह-तरह के प्रयत्न करती है, तर्क देती है, यहाँ तक कि वह अपने प्रियतम को धमकी भी देती है| इस श्रृंखला की पहली कड़ी में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि ठुमरी शैली में रस, रंग और भाव की प्रधानता होती है| ख़याल शैली के द्रुत लय की रचना (छोटा ख़याल) और ठुमरी में मूलभूत अन्तर यही होता है कि छोटा ख़याल में शब्दों की अपेक्षा राग के स्वरों और स्वर संगतियों पर विशेष ध्यान रखना पड़ता है, जबकि ठुमरी में रस के अनुकूल भावाभिव्यक्ति पर ध्यान रखना पड़ता है| प्रायः ठुमरी गायक / गायिका को एक ही शब्द अथवा शब्द समूह को अलग-अलग भाव में प्रस्तुत करना होता है| इस प्रक्रिया में राग के निर्धारित स्वरों में कहीं-कहीं परिवर्तन करना पड़ता है| आज हम ठुमरी की उत

चाँद-दूत परिकल्पना की अनुभूति कराती ठुमरी "चंदा देस पिया के जा..."

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 682/2011/122 फ़ि ल्म संगीत में ठुमरी के प्रयोग पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस शृंखला की दूसरी कड़ी में आपका स्वागत है! कल की कड़ी में आपने राग "झिंझोटी" की ठुमरी के माध्यम से विरह की बेचैनी का अनुभव किया था| आज के ठुमरी गीत में श्रृंगार रस के वियोग पक्ष को रेखांकित किया गया है| नायिका अपनी विरह-व्यथा को नायक तक पहुँचाने के लिए वही मार्ग अपनाती है, जैसा कालिदास के "मेघदूत" में अपनाया गया है| "मेघदूत" का यक्ष जहाँ अपनी विरह वेदना की अभिव्यक्ति के लिए मेघ को सन्देश-वाहक बनाता है, वहीं आज के ठुमरी गीत की नायिका अपनी विरह व्यथा की अभिव्यक्ति के लिए चाँद को दूत बनने का अनुरोध कर रही है| आज के ठुमरी गीत के बारे में कुछ और चर्चा से पहले आइए "ठुमरी" शैली पर थोड़ी बातचीत हो जाए| ठुमरी एक भाव-प्रधान, चपल-चाल वाला गीत है| मुख्यतः यह श्रृंगार प्रधान गीत है; जिसमें लौकिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार का श्रृंगार मौजूद होता है| इसीलिए ठुमरी में लोकगीत जैसी कोमल शब्दावली और अपेक्षाकृत हलके रागों का ही प्रयोग होता है| अधिकतर ठु

पिया बिन नाहीं आवत चैन: राग झिंझोटी के सुरों में उभरी देवदास की बेचैनी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 681/2011/121 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का नमस्कार! सजीव सारथी के निर्देशन में इस सुरीले कारवाँ को लेकर आगे बढ़ते हुए हम बहुत जल्द पहुँचने वाले हैं अपने ७००-वे पड़ाव पर। इस ख़ास मंज़िल को छू पाना हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इसलिए हमें लगा कि जिस शृंखला के ज़रिये हम इस ७००-वे अंक तक पहुँचेंगे, वह शृंखला बेहद ख़ास होनी चाहिए। इस मनोकामना को साकार करने के लिए हम एक बार फिर से आमंत्रित कर रहे हैं हमारे अतिथि स्तंभकार और वरिष्ठ कला-समीक्षक व पत्रकार श्री कृष्णमोहन मिश्र को। आइए 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के अगले तीस अंकों (६८१ से ७१०) का हम आनंद लें कृष्णमोहन जी के साथ। ************************************************************************ 'ओल्ड इज गोल्ड' के संगीत प्रेमी पाठकों/श्रोताओं का आज से शुरू हो रही हमारी नई श्रृंखला 'रस के भरे तोरे नैन...' में कृष्णमोहन मिश्र की ओर से हार्दिक स्वागत है| आपको शीर्षक से ही यह अनुमान हो ही गया होगा कि इस श्रृंखला का विषय फिल्मों में शामिल उपशास्त्रीय गायन शैली "ठुमरी