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एक दफा एक जंगल था उस जंगल में एक गीदड था....याद है कुछ इस कहानी में आगे क्या हुआ था

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 680/2011/120 कि स्से-कहानियों का आनंद लेते हुए आज हम आ पहुँचे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'एक था गुल और एक थी बुलबुल' की अंतिम कड़ी पर। इस शृंखला में हमनें कोशिश की कि अलग अलग गीतकारों के लिखे कहानीनुमा गीत आपको सुनवायें। आनन्द बक्शी साहब के दो गीतों के अलावा किदार शर्मा, मुंशी अज़ीज़, क़मर जलालाबादी, हसरत जयपुरी, मजरूह सुल्तानपुरी, प्रेम धवन और रवीन्द्र रावल के लिखे एक एक गीत आपनें सुनें। आज इस शृंखला की आख़िरी कड़ी में बारी एक और बेहतरीन गीतकार गुलज़ार साहब की। १९८३ में कमल हासन - श्रीदेवी अभिनीत पुरस्कृत फ़िल्म आयी थी 'सदमा'। फ़िल्म की कहानी जितनी मर्मस्पर्शी थी, कमल हासन और श्रीदेवी का अभिनय भी सर चढ़ कर बोला। फ़िल्म की कहानी तो आपको मालूम ही है। मानसिक रूप से बीमार श्रीदेवी, जो एक छोटी बच्ची की तरह पेश आती है, कमल हासन उसे कैसे संभालते हैं, किस तरह से उसका देखभाल करते हैं, लेकिन जब श्रीदेवी ठीक हो जाती है और कमल हासन के साथ गुज़ारे दिन भूल जाती हैं, तब कमल हासन को किस तरह का सदमा पहूँचता है, यही था इस फ़िल्म का सार। रेल्वे स्ट

हर एक जीवन है एक कहानी....और सुनिए एक और भी कहानी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 679/2011/119 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर किस्से-कहानियों का सिलसिला जारी है लघु शृंखला 'एक था गुल और एक थी बुलबुल' के तहत। आज हम जिस गीतकार का लिखा कहानीनुमा गीत सुनने जा रहे हैं वो हैं रवीन्द्र रावल। पिछले दो अंकों में क्रम से हमनें १९७९ और १९८० के दो गीत सुनें। आज एक साल और आगे बढ़ते हैं। १९८१ में एक्स्ट्रा-मैरिटल अफ़ेअर पर बनी एक फ़िल्म आयी थी 'बेज़ुबान', जिसमें मुख्य कलाकार थे रीना रॉय, नसीरुद्दिन शाह और शत्रुघ्न सिंहा। इस फ़िल्म का जो शीर्षक गीत है, या युं कहिये कि जो फ़िल्म का थीम सॉंग् है, उसमें नायिका अपनी ही ज़िंदगी की दास्तान सुनाती है, लेकिन एक कहानी के माध्यम से। यह कहानी बताती है कि किस तरह से उसके पाँव फ़िसल जाते हैं, किस तरह से पती और बच्चे के होते हुए वो एक और संबंध रखती है, और उसे किस तरह का अनुताप होता है। बहुत ही सुंदर लिखा है रावल साहब नें और फ़िल्म में संगीत है राम-लक्ष्मण का। राम-लक्ष्मण नये दौर के उन संगीतकारों में से हैं जिनके साथ लता जी गाती आईं हैं। 'मैंने प्यार किया' और 'हम आपके हैं कौन' लता जी के साथ र

एक हसीना थी, एक दीवाना था....एक कहानी नुमा गीत जिसमें फिल्म की पूरी तस्वीर छुपी है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 678/2011/118 'ए क था गुल और एक थी बुलबुल' शृंखला में कल आपने १९७९ की फ़िल्म 'मिस्टर नटवरलाल' का गीत सुना था। जैसा कि हमने कल बताया था कि आनन्द बक्शी साहब के लिखे दो गीत आपको सुनवायेंगे, तो आज की कड़ी में सुनिये उनका लिखा एक और ज़बरदस्त कहानीनुमा गीत। यह केवल कहानीनुमा गीत ही नहीं, बल्कि उसकी फ़िल्म का सार भी है। पुनर्जनम की कहानी पर बनने वाली फ़िल्मों में एक महत्वपूर्ण नाम है 'कर्ज़' (१९८०)। राज किरण और सिमी गरेवाल प्रेम-विवाह कर लेते हैं। राज को भनक तक नहीं पड़ी कि सिमी ने दरअसल उसके बेहिसाब जायदाद को पाने के लिये उससे शादी की है। और फिर एक दिन धोखे से सिमी राज को गाड़ी से कुचल कर पहाड़ से फेंक देती है। राज किरण की मौत हो जाती है और सिमी अपने स्वर्गवासी पति के एस्टेट की मालकिन बन जाती है। लेकिन कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई। प्रकृति भी क्या क्या खेल रचती है! राज दोबारा जनम लेता है ॠषी कपूर के रूप में, और जवानी की दहलीज़ तक आते आते उसे अपने पिछले जनम की याद आ जाती है और किस तरह से वो सिमी से बदला लेता है अपने इस जनम की प्रेमिका टिना मुनीम के