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सुर संगम में आज - सुर-संगम दे रहा है श्रद्धांजलि 'गंगुबाई हंगल' को

सुर संगम - 23 - गंगुबाई हंगल गुरूभाई भीम अन्ना कुंडगोल (हुबली से ३० कि. मी. दूर) गुरूजी के घर पर ही रहते थे। मैं घंटों उनके साथ बैठकर रियाज़ करती थी। शाम को वे हाथ में लालटेन उठाए मुझे स्टेशन छोड़ने आया करते थे। सु र-संगम के २३वें साप्ताहिक अंक में आप सभी संगीत प्रेमियों का मैं, सुमित चक्रवर्ती हार्दिक स्वागत करता हूँ। हमारे आज के अंक में हम याद कर रहे हैं एक ऐसी महान शास्त्रीय गायिका को जिन्होंने भारतीय शास्त्रिय संगीत की 'ख़याल' शैली में ५० से भी अधिक वर्षों तक अपना वर्चस्व बनाए रखा। पद्म-भूषण व पद्म-विभूषण सम्मनित श्रीमति 'गंगुबाई हंगल' को सुर-संगम दे रहा है श्रद्धांजलि। गंगुबाई का जन्म ५ मार्च १९१३ को कर्नाटक के धारवाड़ शहर में एक देवदासी परिवार में हुआ। उनके पिताजी चिक्कुराव नादिगर एक कृषक थे तथा माँ अम्बाबाई कार्णाटिक शैली की शास्त्रीय गायिका थीं। उनके बचपन में वे धारवाड़ के शुक्रवरपीट नामक जगह में रहते थे जो मूलतः एक बाह्मण प्रधान क्षेत्र था। उन दिनों जातिवाद बहुत प्रबल था। उनका ब्राह्मणों के घर प्रवेश निषेध था। अपनी स्वजीवनी में गंगुबाई बतातीं हैं - "मुझे य

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 44 - 'उषा मंगेशकर से ट्विटर पर छोटी सी मुलाक़ात और उनके गाये चंद असमीया फ़िल्मी गीत'

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, शनिवार विशेषांक के साथ मैं, आपका दोस्त सुजॉय, हाज़िर हूँ। पिछले दिनों 'हिंद-युग्म' नें मुझे 'लोकप्रिय गोपीनाथ बार्दोलोई हिंदी सेवी सम्मान' से जब सम्मानित किया था, तो मेरी ख़ुशी की सीमा न थी। यह ख़ुशी सिर्फ़ इस बात की नहीं थी कि मैं पुरस्कृत हो रहा था, बल्कि इस बात की भी थी कि यह पुरस्कार उस महान शख़्स के नाम पर था जो उसी जगह से ताल्लुख़ रखते थे जहाँ से मैं हूँ। जी हाँ, आसाम की सरज़मीं। आसाम, जहाँ मेरा जन्म हुआ, जहाँ से मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की, और जहाँ से मेरी नौकरी जीवन की शुरुआत हुई। उस रोज़ मैं उस पुरस्कार को ग्रहण करते हुए यह सोच रहा था कि 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिये मुझे यह पुरस्कार दिया गया है, तो क्यों न 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में एक विशेषांक असमीया फ़िल्म संगीत को लेकर की जाये! तभी मुझे याद आया कि पिछले साल, जून के महीने में, जब तीनों मंगेशकर बहनों का ट्विटर पर आगमन हुआ, उस वक़्त मैंने लता जी और उषा जी से कुछ सवाल पूछे थे, जिनमें से कुछ के उन दोनों ने जवाब भी दिये थे। आपको याद होगा लता जी से की हुई बातचीत को ह

शेखर जोशी की कहानी दाज्यू

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने गिरिजेश राव की संस्मरणात्मक कहानी " सुजान साँप " का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं शेखर जोशी की कहानी " दाज्यू ", जिसको स्वर दिया है प्रीति सागर ने। कहानी "दाज्यू" का कुल प्रसारण समय 10 मिनट 34 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। शेखर जोशी (जन्म: सितम्बर 1932) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "वह कुछ बोला नहीं। हाँ, नम्रता प्रदर्शन के लिए थोड़ा झुका और मुस्कराया-भर था, पर उसके इसी मौन में जैसे सारा ‘मीनू’ समाहित था।" ( शेखर जोशी की कहानी "दाज्यू" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़ि