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कहाँ से आये बदरा....एक से बढ़कर एक खूबसूरत फ़िल्में दी सशक्त निर्देशिका साईं परांजपे ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 618/2010/318 पा र्श्वगायन को छोड़ कर हिंदी फ़िल्म निर्माण के अन्य सभी क्षेत्रों में पुरुषों का ही शुरु से दबदबा रहा है। लेकिन कुछ साहसी और सशक्त महिलाओं नें फ़िल्म निर्माण के सभी क्षेत्रों में क़दम रखा और दूसरों के लिए राह आसान बनायी. ऐसी ही कुछ महत्वपूर्ण महिला कलाकारों को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला 'कोमल है कमज़ोर नहीं' में आप सब का हम फिर एक बार स्वागत करते हैं। कल की कड़ी में हमने बातें की मशहूर लेखिका इस्मत चुगताई की, और आज बातें फिर एक बार एक लेखि्का व निर्देशिका की। इन्होंने अपनी कलम को अपना 'साज़' बनाकर ऐसी 'कथा' लिखीं कि वह न केवल सब के मन को 'स्पर्श' कर गईं बल्कि फ़िल्म निर्माण को भी एक नई 'दिशा' दी। उनकी लाजवाब फ़िल्मों को देख कर केवल पढ़े लिखे लोग ही नहीं, बल्कि 'अंगूठा-छाप' लोगों ने भी एक स्वर कहा 'चश्म-ए-बद्दूर'!!! जी हाँ, हम आज बात कर रहे हैं साईं परांजपे की। १९ मार्च १९३८ को लखनऊ मे जन्मीं साईं के पिता थे रशियन वाटरकलर आर्टिस्ट यूरा स्लेप्ट्ज़ोफ़, और उनकी माँ थीं शकुंत

संगीत समीक्षा - सतरंगी पैराशूट - बच्चों की इस फिल्म के संगीत के लिए एकजुट हुए चार दौर के फनकार, देने एक सुरीला सरप्रायिस

Taaza Sur Taal (TST) - 06/2011 - SATRANGEE PARACHUTE 'आवाज़' के दोस्तों नमस्कार! मैं, सुजॊय चटर्जी, साप्ताहिक स्तंभ 'ताज़ा सुर ताल' के साथ हाज़िर हूँ। साल २०११ के फ़िल्मों की अगर हम बात करें तो 'ताज़ा सुर ताल' में इस साल हमनें जिन फ़िल्मों की चर्चा की है, वो हैं 'नो वन किल्ड जेसिका', 'यमला पगला दीवाना', 'धोबी घाट', 'दिल तो बच्चा है जी', 'ये साली ज़िंदगी', 'सात ख़ून माफ़' और 'तनु वेड्स मनु'। एक और महत्वपूर्ण फ़िल्म प्रदर्शित हुई थी वर्ल्ड कप क्रिकेट शुरु होने से ठीक पहले, पटियाला हाउस, जिसका केन्द्रबिंदु भी क्रिकेट ही था। अक्षय कुमार, ऋषी कपूर, डिम्पल कपाडिया अभिनीत यह फ़िल्म अच्छी बनी, लेकिन इसके संगीत नें कोई छाप नहीं छोड़ी। और २०११ की अब तक की कुछ और प्रदर्शित फ़िल्में जो कब आईं और कब गईं पता भी नहीं चला, और न ही पता चला उनके संगीत का, ऐसी फ़िल्मों में कुछ नाम हैं - 'विकल्प', 'मुंबई मस्त कलंदर', 'होस्टल', 'यूनाइटेड सिक्स', 'ऐंजेल', 'तुम ही तो हो' वगेरह। क्रि

चंदा रे जा रे जा रे....मुस्लिम समाज में महिलाओं की निर्भीक आवाज़ बनकर उभरी इस्मत चुगताई को आज आवाज़ सलाम

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 617/2010/317 हिं दी सिनेमा के कुछ सशक्त महिला कलाकारों को सलाम करती 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'कोमल है कमज़ोर नहीं' की सातवीं कड़ी में आप सभी का फिर एक बार स्वागत है। आज हम जिस प्रतिभा से आपका परिचय करवा रहे हैं, वो एक उर्दू की जानीमानी लेखिका तो हैं ही, साथ ही फ़िल्म जगत को एक कहानीकार, पटकथा व संवाद लेखिका, निर्मात्री व निर्देशिका के रूप में अपना परिचय देनेवाली इस फनकारा का नाम है इस्मत चुगताई। १५ अगस्त १९१५ को उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्मीं और जोधपुर राजस्थान में पलीं इस्मत जी के पिता एक सिविल सर्वैण्ट थे। ६ भाई और ४ बहनों के विशाल परिवार में इस्मत नौवीं संतान थीं। इस्मत की बड़ी बहनों का उनकी बचपन में ही शादी हो जाने की वजह से इस्मत का बचपन अपने भाइयों के साथ गुज़रा। और शायद यही वजह थी इस्मत के अंदर पनपने वाले खुलेपन की और इसी ने उनके लेखन में बहुत ज़्यादा प्रभाव डाला। इस्मत के युवावस्था में ही उनका भाई मिर्ज़ा अज़ीम बेग चुगताई एक स्थापित लेखक बन चुके थे, और वो ही उनके पहले गुरु बनें। १९३६ में स्नातक की पढ़ाई करते हुए इस्मत चुगताई लखनऊ