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सुनो कहानी: जयशंकर प्रसाद की विजया

सुनो कहानी: जयशंकर प्रसाद की विजया जयशंकर प्रसाद की कहानी विजया 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में गिरिजेश राव की कहानी ' ढेला पत्ता ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं जयशंकर प्रसाद की कहानी " विजया ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 4 मिनट 54 सेकंड। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। झुक जाती है मन की डाली, अपनी फलभरता के डर में। ~ जयशंकर प्रसाद (30-1-1889 - 14-1-1937) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी साहस न हुआ, वही अंतिम रुपया था। ( जयशंकर प्रसाद की "विजया" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।) यदि आप इस पॉडका

धीरे धीरे मचल ए दिले बेकरार कोई आता है....सन्देश दे रही हैं नायिका को पियानो की स्वरलहरियां

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 595/2010/295 पि यानो के निरंतर विकास की दास्तान पिछले चार दिनों से आप पढ़ते आये हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में। यह दास्तान इतनी लम्बी है कि अगर हम इसके हर पहलु पर नज़र डालने जायें तो पूरे पूरे दस अंक इसी में निकल जाएँगे। इसलिए आज से हम पियानो संबंधित कुच अन्य बातें बताएँगे। दोस्तों नमस्कार, 'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' लघु शृंखला में आप सभी का फिर एक बार बहुत बहुत स्वागत है। आइए आज बात करें पियानो के प्रकारों की। मूलत: पियानो के दो प्रकार हैं - ग्रैण्ड पियानो तथा अप-राइट पियानो। ग्रैण्ड पियानो में फ़्रेम और स्ट्रिंग्स होरिज़ोण्टल होते हैं और स्ट्रिंग्स की-बोर्ड से बाहर की तरफ़ निकलते हुए नज़र आते हैं। ध्वनि जो उत्पन्न होती है, वह कार्य स्ट्रिंग्स के नीचे होता है और मध्याकर्षण की तकनीक से स्ट्रिंग्स अपने रेस्ट पोज़िशन पर वापस आते हैं। उधर दूसरी तरफ़ अप-राइट पियानो, जिन्हें वर्टिकल पियानो भी कहते हैं, आकार में छोटे होते हैं क्योंकि फ़्रेम और स्ट्रिंग्स वर्टिकल होते हैं। हैमर्स होरिज़ोण्टली अपनी जगह से हिलते हैं और स्प्रिंग्स के ज़रिए अपने र

जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला....पूरी तरह पियानो पर रचा बुना एक अमर गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 594/2010/294 'पि यानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़', इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है यह शृंखला, जिसमें हम आपको पियानो के बारे में जानकारी भी दे रहे हैं, और साथ ही साथ फ़िल्मों से चुने हुए कुछ ऐसे गानें भी सुनवा रहे हैं जिनमें मुख्य साज़ के तौर पर पियानो का इस्तमाल हुआ है। पिछली तीन कड़ियों में हमने पियानो के इतिहास और उसके विकास से संबम्धित कई बातें जानी, आइए आगे पियानो की कहानी को आगे बढ़ाया जाए। साल १८२० के आते आते पियानो पर शोध कार्य का केन्द्र पैरिस बन गया जहाँ पर प्लेयेल कंपनी उस किस्म के पियानो निर्मित करने लगी जिनका इस्तमाल फ़्रेडरिक चौपिन करते थे; और ईरार्ड कंपनी ने बनाये वो पियानो जो इस्तमाल करते थे फ़्रांज़ लिस्ज़्ट। १८२१ में सेबास्टियन ईरार्ड ने आविष्कार किया 'डबल एस्केपमेण्ट ऐक्शन' पद्धति का, जिसमें एक रिपिटेशन लीवर, जिसे बैलेन्सर भी कहा जाता है, का इस्तमाल हुआ जो किसी नोट को तब भी रिपीट कर सकता था जब कि वह 'की' अपने सर्वोच्च स्थान तक अभी वापस पहुंचा नहीं था। इससे फ़ायदा यह हुआ कि किसी नोट को बार बार और तुरंत रिपीट करना

ऐ जान-ए-जिगर दिल में समाने आजा....पियानों के तार खनके और मुकेश की आवाज़ में गूंजा अनिल दा नग्मा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 593/2010/293 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार और स्वागत है आप सभी का इन दिनों चल रही लघु शृंखला 'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' में। साल १७९० से लेकर १८६० के बीच मोज़ार्ट के दौर के पियानों में बहुत सारे बदलाव आये, पियानो का निरंतर विकास होता गया, और १८६० के आसपास जाकर पियानो ने अपना वह रूप ले लिया जो रूप आज के पियानो का है। पियानो के इस विकास को एक क्रांति की तरह माना जा सकता है, और इस क्रांति के पीछे कारण था कम्पोज़र्स और पियानिस्ट्स के बेहतर से बेहतर पियानो की माँग और उस वक़्त चल रही औद्योगिक क्रांति (industrial revolution), जिसकी वजह से उत्तम क्वालिटी के स्टील विकसित हो रहे थे और उससे पियानो वायर का निर्माण संभव हुआ जिसका इस्तमाल स्ट्रिंग्स में हुआ। लोहे के फ़्रेम्स भी बनें प्रेसिशन कास्टिंग् पद्धति से। कुल मिलाकर पियानो के टोनल रेंज में बढ़ौत्री हुई। और यह बढ़ौत्री थी मोज़ार्ट के 'फ़ाइव ऒक्टेव्स' से ७-१/४ या उससे भी ज़्यादा ऒक्टेव्स तक की, जो आज के पियानो में पायी जाती है। पियानो की शुरुआती विकास में एक और उल्लेखनीय नाम है ब्रॊडव

तुम बिन कल न आवे मोहे.....पियानो की स्वरलहरियों में कानन की मधुर आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 592/2010/292 आ धुनिक पियानो के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है इटली के बार्तोलोमियो क्रिस्तोफ़ोरी (Bartolomeo Chritofori) को, जो साज़ों के देखरेख के काम के लिए नियुक्त थे Ferdinando de' Medici, Grand Prince of Tuscany में। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, जैसा कि कल से हमने पियानो पर केन्द्रित शृंखला की शुरुआत की है, आइए पियानो के विकास संबंधित चर्चा को आगे बढ़ाते हैं। तो बार्तोलोमेओ को हार्प्सिकॊर्ड बनाने में महारथ हासिल थी और पहले की सभी स्ट्रिंग्ड इन्स्ट्रुमेण्ट्स संबंधित तमाम जानकारी उनके पास थी। इस बात की पुष्टि नहीं हो पायी है कि बार्तोलोमियो ने अपना पहला पियानो किस साल निर्मित किया था, लेकिन उपलब्ध तथ्यों से यह सामने आया है कि सन् १७०० से पहले ही उन्होंने पियानो बना लिया था। बार्तोलोमियो का जन्म १६५५ में हुआ था और उनकी मृत्यु हुई थी साल १७३१ में। उनके द्वारा निर्मित पियानो की सब से महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि उन्होंने पियानो के डिज़ाइन की तब तक की मूल त्रुटि का समाधान कर दिया था। पहले के सभी पियानो में हैमर स्ट्रिंग् पर वार करने के बाद उसी से चिपकी

झुकी आई रे बदरिया सवान की...जब पियानो के सुर छिड़े तो बने ढेरों फ़िल्मी गीत....

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 591/2010/291 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक और तरो-ताज़ा सप्ताह के साथ हम उपस्थित हैं और आप सभी का स्वागत करते हैं इस महफ़िल में। साज़ों की अगर बात छेड़ें तो दुनिया भर के सभी देशों को मिलाकार फ़ेहरिस्त शायद हज़ारों में पहुँच जाए। लेकिन एक साज़ जिसे साज़ों का राजा कहलाने का गौरव प्राप्त है, वह है पियानो। और यह इसलिए साज़ों का राजा है क्योंकि पियानो ऒर्केस्ट्रा के किसी साज़ का सम्पूर्ण स्पेक्ट्रम कवर कर लेता है; डबल बसून के सब से नीचे के नोट से लेकर पिकोलो के सब से ऊँचे नोट तक। पियानो की मेलडी उत्पन्न करने की क्षमता, उसकी विस्तृत डायनामिक रेंज, तथा आकार में भी सब से बड़ा होना पियानो को साज़ों में सब से उपर का स्थान देता है। सब से ज़्यादा वर्सेटाइल और सब से मज़ेदार है यह साज़। जहाँ तक हिंदी फ़िल्म संगीतकारों की बात है, तो लगभग सभी दिग्गज संगीतकारों ने समय समय पर कहानी, सिचुएशन और मूड के मुताबिक़ फ़िल्मी रचनाओं में पियानो का इस्तेमाल किया। ज़्यादातर गीतों में पियानो के छोटे मोटे पीसेस सुनने को मिले, लेकिन बहुत से गानें ऐसे भी थे जिनमें मुख्य साज़ ही पियानो

सुर संगम में आज - बेगम अख्तर की आवाज़ में ठुमरी और दादरा का सुरूर

सुर संगम - 07 कुछ लोगों का यह सोचना है कि मॊडर्ण ज़माने में क्लासिकल म्युज़िक ख़त्म हो जाएगी; उसे कोई तवज्जु नहीं देगा, पर मैं कहती हूँ कि यह ग़लत बात है। ग़ज़ल भी क्लासिकल बेस्ड है। अगर सही ढंग से पेश किया जाये तो इसका जादू भी सर चढ़ के बोलता है। "आ प सभी को मेरा सलाम, मुझे आप से बातें करते हुए बेहद ख़ुशनसीबी महसूस हो रही है। मुझे ख़ुशी है कि मैंने ऐसे वतन में जनम लिया जहाँ पे फ़न और फ़नकार से प्यार किया जाता है, और मैंने आप सब का शुक्रिया अपनी गायकी से अदा किया है"। मलिका-ए-ग़ज़ल बेगम अख़्तर जी के इन शब्दों से, जो उन्होंने कभी विविध भारती के किसी कार्यक्रम में श्रोताओं के लिए कहे थे, आज के 'सुर-संगम' का हम आगाज़ करते हैं। बेगम अख़्तर एक ऐसा नाम है जो किसी तारुफ़ की मोहताज नहीं। उन्हें मलिका-ए-ग़ज़ल कहा जाता है, लेकिन ग़ज़ल गायकी के साथ साथ ठुमरी और दादरा में भी उन्हें उतनी ही महारथ हासिल है। ३० अक्तुबर १९७४ को वो इस दुनिया-ए-फ़ानी से किनारा तो कर लिया, लेकिन उनकी आवाज़ का जादू आज भी सर चढ़ कर बोलता है। आज के संगीत में जब चारों तरफ़ शोर-शराबे का माहौल है, ऐसे में बेग