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आजा री आ, निंदिया तू आ......कहाँ सुनने को मिल सकती है ऐसी मीठी लोरी आज के दौर में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 541/2010/241 न मस्कार! दोस्तों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस नई सप्ताह में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में जारी है लघु शृंखला 'हिंदी सिनेमा के लौह स्तंभ'। इसके पहले और दूसरे खण्डों में आपने क्रम से वी. शांताराम और महबूब ख़ान के फ़िल्मी सफ़र की कहानी जानी और साथ ही इनके पाँच पाँच फ़िल्मों के गानें सुनें। आज से हम शुरु कर रहे हैं इस शृंखला का तीसरा खण्ड, और इस खण्ड के लिए हमने चुना है एक और महान फ़िल्मकार को, जिन्हें हम बिमल रॊय के नाम से जानते हैं। बिमल रॊय हिंदी सिनेमा के बेहतरीन निर्देशकों में से एक हैं जिनकी फ़िल्में कालजयी बन गईं हैं। उनकी सामाजिक और सार्थक फ़िल्मों, जैसे कि 'दो बिघा ज़मीन, परिणीता', 'बिराज बहू', 'मधुमती', 'सुजाता' और 'बंदिनी' ने उन्हें शीर्ष फ़िल्मकारों में दर्ज कर लिया। आइए बिमल दा क्ली कहानी शुरु करें शुरु से। बिमल रॊय का जन्म १२ जुलाई १९०९ के दिन ढाका के एक बंगाली परिवार में हुआ था। उस समय ढाका ब्रिटिश भारत का हिस्सा हुआ करता था, और जो अब बांगलादेश की र

ई मेल के बहाने यादों के खजाने (१९) - ई मेल तो नहीं पर आज बात एक खत की जो किशोर दा ने लिखा था लता को

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है इस साप्ताहिक विशेषांक में। युं तो हम इसमें 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' पेश किया करते हैं, लेकिन आज इसमें हम आपके लिए कुछ अलग चीज़ लेकर आये हैं। यह ईमेल तो नहीं है, लेकिन ख़त ज़रूर है। वही ख़त, जिसे हम काग़ज़ पर लिखा करते हैं। और पता है आज जिस ख़त को यहाँ हम शामिल करने वाले हैं, उसे किसने लिखा है और किसको लिखा है? यकीन करेंगे आप अगर हम कहें कि किशोर कुमार ने यह ख़त लिखा है लता मंगेशकर को? दिल थाम के बैठिए दोस्तों, पिछले दिनों लता जी ने किशोर दा के एक ख़त को स्कैन कर ट्विटर पर अपलोड किया था, तो मैंने सोचा कि क्यों ना उसे डाउनलोड करके अपनी उंगलियों से टंकित कर आपके लिए इस स्तंभ में पेश करूँ। तो चलिए अब मैं बीच में से हट जाता हूँ, ये रहा किशोर दा का ख़त लता जी के नाम... *************************************** 28.11.65 बहन लता, अच्छी तो हो! अचानक एक मुसीबत में आ फंसा हूँ। तुम ही मेरी जीवन नैय्या पार लगा सकती हो। घबराने की बात नहीं पर घबराने की बात भी है!!! सुनो, ज़िंदगी में पहली मर्तबा फ़ौजी भाइयों की सेवा करन

मृणाल पाण्डेय की कहानी 'लड़कियाँ'

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की संस्मरणात्मक कहानी " नसीब अपना अपना " का पॉडकास्ट उन्हीं की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं मृणाल पाण्डेय की कहानी " लड़कियाँ ", जिसको स्वर दिया है प्रीति सागर ने। कहानी "लड़कियाँ" का कुल प्रसारण समय 18 मिनट 23 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। "अगर प्रोफेशनल दुराचरण साबित होने पर एक डॉक्टर या चार्टर्ड अकाउंटेंट नप सकता है, तो एक गैरजिम्मेदार पत्रकार क्यों नहीं?" ~ मृणाल पाण्डेय हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "जब तुम लोग लड़कियों को प्यार नहीं करते तो झूठ मूठ में दिखावा क्यों करते हो?" ( मृणाल पाण्डेय की कहानी 'लड़कियाँ' से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुन