फूल अहिस्ता फैको, फूल बड़े नाज़ुक होते हैं....इसे कहते है नाराज़ होने, शिकायत करने का लखनवी शायराना अंदाज़
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 498/2010/198 नौ रसों में कुछ रस वो होते हैं जो अच्छे होते है, और कुछ रस ऐसे हैं जिनका अधिक मात्रा में होना हमारे मन-मस्तिष्क के लिए हानिकारक होता हैं। शृंगार, हास्य, शांत, वीर पहली श्रेणी में आते हैं जबकि करुण, विभत्स और रौद्र रस हमें एक मात्रा के बाद हानी पहुँचाते हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार, 'रस माधुरी' शृंखला में आज बातें रौद्र रस की। जब हमारी आशाएँ पूरी नहीं हो पाती, तब हमें लगता है कि हमें नकारा गया है और यही रौद्र रस का आधार बनता है। यह ज़रूरी नहीं कि ग़ुस्से से हमेशा हानी ही पहुँचती है, कभी कभी रौद्र का इस्तेमाल सकारात्मक कार्य के लिए भी हो सकता है जैसे कि माँ का बच्चे को डाँटना, गुरु का शिष्य को डाँटना, मित्र का अपने मित्र को भलाई के मार्ग पर लाने के लिए डाँटना इत्यादि। लेकिन निरर्थक विषयों पर नाराज़ होना और बात बात पर नाराज़ होकर सीन क्रीएट कर लेना अपने लिए भी और पूरे वातावरण के लिए हानिकारक ही होता है। यह जानना बहुत ज़रूरी है कि ग़ुस्से से कोई भी समस्या का समाधान नहीं होता, बल्कि वह समस्या और विस्तारित होती है। मन अशांत ह