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सुनिए एक ब्लॉगर, गीतकार, कवि और हिन्दीप्रेमी सजीव सारथी की Success Story (AIR FM Gold)

हिन्द-युग्म के आवाज़-मंच के कर्ता-धर्ता सजीव सारथी का अभी-अभी AIR FM Gold पर इंटरव्यू प्रसारित हुआ। AIR FM Gold समाचारों को केन्द्रित अपने कार्यक्रम 'आज सवेरे' में हर वृहस्पतिवार को 'सक्सेस स्टोरी' प्रसारित करता है, जिसमें किसी एक ऐसे व्यक्ति या समूह की चर्चा होती है, जिसने भीड़ से अलग कर दिखाया हो। 'आज सवेरे' कार्यक्रम AIR FM Gold पर हर सुबह 7‍ः30 बजे प्रसारित होता है, जो FM, SW, DTH और AIR की वेबसाइट के माध्यम से पूरी दुनिया मे सुना जाता है। आज सुनिए एक ब्लॉगर, गीतकार, कवि और हिन्दीप्रेमी सजीव सारथी की सक्सेस स्टोरी. प्लेयर से न सुन पा रहे हों तो यहाँ से डाउनलोड कर लें।

न जाना न जाना मेरे बाबू दफ़्तर न जाना....सुनिए लता का शरारती अंदाज़ इस दुर्लभ गीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 484/2010/184 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं श्री अजय देशपाण्डेय जी के चुने हुए लता मंगेशकर के कुछ बेहद दुर्लभ गीतों पर केन्द्रित लघु शृंखला 'लता के दुर्लभ दस'। ये वो गानें हैं दोस्तों जिन्हें लता जी ने अपने पार्श्वगायन करीयर के शुरुआती सालों में गाया था। अभी तक हमने इस शृंखला में 'हीर रांझा' ('४८), 'मेरी कहानी' ('४८) और 'गर्ल्स स्कूल' ('४९) फ़िल्मों के गानें सुनें। आज हम क़दम रख रहे हैं साल १९५० में। आपको यह बता दें कि अगले पाँच अंकों तक हमारे क़दम जमे रहेंगे इसी साल १९५० में और एक के बाद एक हम सुनेंगे कुल पाँच दुर्लभ गीत जिन्हें लता जी ने अपनी कमसिन आवाज़ से सजाया था इस साल। आज के गीत में लता जी के जिस अंदाज़ का मज़ा आप लेंगे, वह है छेड़-छाड़ वाला अंदाज़। फ़िल्म 'छोटी भाभी' का यह गीत है "न जाना न जाना मेरे बाबू दफ़्तर न जाना"। फ़िल्मकार के बैनर तले निर्मित इस फ़िल्म के निर्देशक थे शांति कुमार। फ़िल्म में अभिनय किया करण दीवान, नरगिस, श्याम, कुलदीप कौर, गुलाब, श्यामा, सुरैया, याकू

महफ़िल-ए-ग़ज़ल की १००वीं कड़ी में जगजीत सिंह लेकर आए हैं राजेन्द्रनाथ रहबर की "तेरे खुशबू में बसे खत"

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #१०० हं स ले 'रहबर` वो आये हैं, रोने को तो उम्र पड़ी है राजेन्द्रनाथ ’रहबर’ साहब के इस शेर की हीं तरह हम भी आपको खुश होने और खुशियाँ मनाने का न्यौता दे रहे हैं। जी हाँ, आज बात हीं कुछ ऐसी है। दर-असल आज महफ़िल-ए-ग़ज़ल उस मुकाम पर पहुँच गई है, जिसके बारे में हमने कभी भी सोचा नहीं था। जब हमने अपनी इस महफ़िल की नींव डाली थी, तब हमारा लक्ष्य बस यही था कि "आवाज़" पर "गीतों" के साथ-साथ "ग़ज़लों" को भी पेश किया जाए.. ग़ज़लों को भी एक मंच मुहैया कराया जाए.. यह मंच कितने दिनों तक बना रहेगा, वह हमारी मेहनत और आप सभी पाठकों/श्रोताओं के प्रोत्साहन पर निर्भर होना था। हमें आप पर पूरा भरोसा था, लेकिन अपनी मेहनत पर? शायद नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि महफ़िल की शुरूआत करने से पहले मैं ग़ज़लों का उतना बड़ा मुरीद नहीं था, जैसा अब हो चुका हूँ। हाँ, मैं ग़ज़लें सुनता जरूर था, लेकिन कभी भी ग़ज़लगो या शायर के बारे में पता करने की कोशिश नहीं की थी। इसलिए जब शुरूआत में सजीव जी ने मुझे यह जिम्मेवारी सौंपी तो मैंने उनसे कहा भी था कि मुझे इन सबके बारे में कुछ भी जानकारी न

कुछ शर्माते हुए और कुछ सहम सहम....सुनिए लता की आवाज़ में ये मासूमियत से भरी अभिव्यक्ति

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 483/2010/183 'ल ता के दुर्लभ दस' शृंखला की तीसरी कड़ी में आप सभी का स्वागत है। १९४८ की दो फ़िल्मों - 'हीर रांझा' और 'मेरी कहानी' - के गानें सुनने के बाद आइए अब हम क़दम रखते हैं १९४९ के साल में। १९४९ का साल भी क्या साल था साहब! 'अंदाज़', 'बड़ी बहन', 'बरसात', 'बाज़ार', 'एक थी लड़की', 'दुलारी', 'लाहोर', 'महल', 'पतंगा', और 'सिपहिया' जैसी फ़िल्मों में गीत गा कर लता मंगेशकर यकायक फ़िल्म संगीत के आकाश का एक चमकता हुआ सितारा बन गईं। इन नामचीन फ़िल्मों की चमक धमक के पीछे कुछ ऐसी फ़िल्में भी बनीं इस साल जिसमें भी लता जी ने गीत गाए, लेकिन अफ़सोस कि उन फ़िल्मों के गानें ज़्यादा लोकप्रिय नहीं हुए और वो आज भूले बिसरे और दुर्लभ गीतों में शुमार होता है। ऐसी ही एक फ़िल्म थी 'गर्ल्स स्कूल'। लोकमान्य प्रिडक्शन्स के बैनर तले बनी इस फ़िल्म के निर्देशक थे अमीय चक्रबर्ती। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे सोहन, गीता बाली, शशिकला, मंगला, सज्जन, राम सिंह और वशिष्ठ प्रमुख। फ़िल्म का सं

ज़िंदगी का फलसफा समझा कर माधोलाल कीप वाकिंग की जोरदार एवं असरदार अपील की है नायब राजा ने

ताज़ा सुर ताल ३५/२०१० सुजॊय - सभी दोस्तों को हमारा नमस्कार! दोस्तों, आज हम एक ऐसी फ़िल्म के गीतों की चर्चा करने जा रहे हैं जो पैरलेल सिनेमा की श्रेणी में आता है। कुछ फ़िल्में ऐसी होती हैं जो व्यावसायिक लाभों से परे होती हैं, जिनका उद्देश्य होता है क्रीएटिव सैटिस्फ़ैक्शन। ये फ़िल्में भले ही सिनेमाघरों में ज़्यादा देखने को ना मिले, लेकिन अच्छे फ़िल्मों के दर्शक इन्हें अपने दिलों में जगह देते हैं और एक लम्बे समय तक इन्हें याद रखते हैं। विश्व दीपक - लेकिन यह अफ़सोस की भी बात है कि आज फ़िल्मों का हिट होना उसकी मारकेटिंग पर बहुत ज़्यादा निर्भर हो गया है। पैसे वाले प्रोड्युसर हर टीवी चैनल पर अपनी नई फ़िल्म का प्रोमो बार बार लगातार दिखा दिखा कर लोगों के दिमाग़ पर उसे बिठा देते हैं और एक समय के बाद लोगों को भी लगने लगता है कि वह हिट है। गीतों को भी इसी तरह से आजकल हिट करार दिया जाता है। लेकिन जिन प्रोड्युसरों के पास पैसे कम है, वो इस तरह के प्रोमोशन नहीं कर पाते, जिस वजह से उनकी फ़िल्म सही तरीक़े से लोगों तक नहीं पहुँच पाती। जब लोगों को मालूम ही नहीं चल पाता कि ऐसी भी कोई फ़िल्म बनी है, तो उन

नन्ही नन्ही बुंदिया जिया लहराए बादल घिर आए...बरसात के मौसम में आनंद लीजिए लता के इस बेहद दुर्लभ गीत का भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 482/2010/182 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर कल से हमने शुरु की है इस सदी की आवाज़ लता मंगेशकर के गाए कुछ बेहद दुर्लभ और भूले बिसरे गीतों से सजी लघु शृंखला 'लता के दुर्लभ दस'। कल की कड़ी में आपने १९४८ की फ़िल्म 'हीर रांझा' का एक पारम्परिक विदाई गीत सुना था, आइए आज १९४८ की ही एक और फ़िल्म का गीत सुना जाए। यह फ़िल्म है 'मेरी कहानी'। इस फ़िल्म का निर्माण किया था एस. टी. पी प्रोडक्शन्स के बैनर ने, फ़िल्म के निर्देशक थे केकी मिस्त्री। सुरेन्द्र, मुनव्वर सुल्ताना, प्रतिमा देवी, मुराद और लीला कुमारी अभिनीत इस फ़िल्म के संगीतकार थे दत्ता कोरेगाँवकर, जिन्हें हम के. दत्ता के नाम से भी जानते हैं। फ़िल्म में दो गीतकारों ने गीत लिखे - नक्शब जराचवी, यानी कि जे. नक्शब, और अंजुम पीलीभीती। इस फ़िल्म के मुख्य गायक गायिका के रूप में सुरेन्द्र और गीता रॊय को ही लिया गया था। लेकिन उपलब्ध जानकारी के अनुसार लता मंगेशकर से इस फ़िल्म में दो गीत गवाए गए थे, जिनमें से एक तो आज का प्रस्तुत गीत है "नन्ही नन्ही बुंदिया जिया लहराए बादल घिर आए", और दूसरे गीत के ब

काहे को ब्याही बिदेस रे सुन बाबुल मोरे...क्या लता की आवाज़ में सुना है कभी आपने ये गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 481/2010/181 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! लता मंगेशकर एक ऐसा नाम है जो किसी तारीफ़ की मोहताज नहीं। ये वो नाम है जो हम सब की ज़िंदगियों में कुछ इस तरह से घुलमिल गया है कि इसे हम अपने जीवन से अलग नहीं कर सकते। और अगर अलग कर भी दें तो जीवन बड़ा ही नीरस हो जाएगा, कड़वाहट घुल जाएगी। लता जी की आवाज़ इस सदी की आवाज़ है और इस बात में ज़रा सी भी अतिशयोक्ति नहीं। फ़िल्म संगीत के लिए वरदान है उनकी आवाज़ क्योंकि उन जैसी आवाज़ हज़ारों सालों में एक ही बार जन्म लेती है। लता जी के गाए हुए लोकप्रिय गानों की फ़ेहरिस्त बनाने बैठें तो शायद जनवरी से दिसंबर का महीना आ जाएग। युं तो उनके असंख्य लोकप्रिय और हिट गीत हम रोज़ाना सुनते ही रहते हैं, लेकिन उनके गाए बहुत से ऐसे गानें भी हैं जो बेहद दुर्लभ हैं, जो कहीं से भी आज सुनाई नहीं देते, और शायद वक़्त ने भी उन अनमोल गीतों को भुला दिया है। लेकिन जो लता जी के सच्चे भक्त हैं, वो अपनी मेहनत से, अपनी लगन से, और लता जी के प्रति अपने प्यार की वजह से इन भूले बिसरे दुर्लभ गीतों को खोज निकालते रहते हैं। ऐसे ही एक लता भक्त हैं नाग