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ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें -दूर जिबूति से आया एक स्नेह सन्देश

ओल्ड इज़ गोल्ड' शनिवार विशेष की छठी कड़ी में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों, इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस ख़ास प्रस्तुति में हम आप तक पहुँचा रहे हैं शृंखला 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें'। हमारे नए दोस्तों की जानकारी के लिए हम यह बता दें कि इस शृंखला के तहत हम आप ही की यादों के ख़ज़ानों को पूरी दुनिया के साथ बाँट रहे हैं। ये वो यादें हैं जो यकीनन आपकी ज़िंदगी के अविस्मरणीय क्षण हैं, जिन्हें बाँटते हुए आपको जितना आनंद आता होगा, हमें भी इन्हें पढ़ते हुए उतना ही आनंद आ रहा है। तो हमारे नए दोस्तों से भी अनुरोध है कि आप अपनी ज़िंदगी के यादगार लम्हों व घटनाओं को हमारे साथ बाँटें हमें oig@hindyugm.com पर ईमेल भेज कर। आप किसी भी विषय पर हमें ईमेल कर सकते हैं। लेकिन हो सके तो किसी पुराने गीत के साथ अगर अपनी यादों को जोड़ सकते हैं तो फिर सोने पे सुहागा वाली बात होगी। और अब आज का ईमेल। यह ईमेल पाकर हम जितने ख़ुश हुए हैं उससे भी ज़्यादा आश्चर्यचकित हुए हैं, क्योंकि यह ईमेल आया है जिबूति से। आप ने इस देश का नाम शायद सुना होगा या नहीं सुना होगा। यह अफ़्रीका महाद्वीप

भारतेंदु हरिश्चंद्र की सच्चा घोड़ा - अनुराग शर्मा के स्वर में

सुनो कहानी: भारतेंदु हरिश्चंद्र की सच्चा घोड़ा 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने राजेन्द्र गुप्ता की आवाज़ में प्रसिद्ध लेखिका सुधा अरोड़ा की बहुचर्चित कहानी "रहोगी तुम वही" का अंतिम भाग सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं भारतेंदु हरिश्चंद्र की कहानी " सच्चा घोड़ा ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 1 मिनट 3 सेकंड। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।। ~ भारतेंदु हरिश्चंद्र (१८५०-१८८५) हर शनिवार को सुनें एक नई कहानी - आवाज़ पर हुजूर, यह जानवर गजब का सच्चा है। ( भारतेंदु हरिश्चंद्र की "सच्चा घोड़ा" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, क

ये इंतज़ार बड़ा मुश्किल, कितनी हीं रंगीं हो महफ़िल...महसूस किया कुहू ने रूचि और वेंकटेश के साथ

Season 3 of new Music, Song # 18 नए गीतों से रोशन आवाज़ महोत्सव २०१० में आज बारी है १८ वें गीत की, और आज फिर उसी गायिका की आवाज़ से रोशन है ये महफ़िल जो पहले ही इस सत्र में ५ गीतों को अपनी आवाज़ दे चुकी हैं, जी हाँ आपने सही पहचाना ये उभरती हुई बेहद प्रतिभशाली गायिका है कुहू गुप्ता, जिन पर पूरे आवाज़ परिवार को नाज़ है, तभी तो वो हर उभरते हुए संगीतकार की पहली पसंद बन चुकी हैं आज. आज का गीत कुछ शास्त्रीय रंग लिए हुए है जिसके माध्यम से पहली बार आवाज़ के मंच पर उतर रहे हैं एक हुनरमंद संगीतकार और एक बेहद नयी गीतकारा. संगीतकार वेंकटेश शंकरण हैं जिनका परिचय आप नीचे पढ़ सकते हैं, गीत को लिखा है रूचि लाम्बा ने. निलंजन नंदी ने गीत का संयोजन किया है. हमें पूरा यकीन है बेहद मधुर और बेहद कर्णप्रिय इस गीत को आप हमेशा अपने संकलन में रखना चाह्गें. तो सुनिए ये गीत गीत के बोल - कुछ ना भाये मन को मेरे, हर पल देखूँ सपने तेरे, तेरे , तेरे जिया लागे ना, तेरे बिन.. जिया लागे ना, नहीं लागे लागे, नहीं लागे लागे, जिया लागे ना, तेरे बिन, नींद आवे ना, नैना जागे जागे, नैना जागे जागे, नींद आवे ना, तेरे बिन, जिया ल