रिमझिम के तराने लेके आई बरसात...सुनिए एस डी दादा का ये गीत, जिसे सुनकर बिन बारिश के भी मन झूम जाता है
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 435/2010/135 आ ज है 'रिमझिम के तराने' शृंखला की पांचवी कड़ी। यानी कि हम पहुँचे हैं इस शृंखला के बीचोंबीच, और आज जो गीत हम लेकर आए हैं, वह भी इन्ही बोलों से शुरु होता है। "रिमझिम के तराने लेके आई बरसात, याद आए किसी से वह पहली मुलाक़ात"। मोहम्मद रफ़ी और गीता दत्त की आवाज़ों में यह है १९५९ फ़िल्म 'काला बाज़ार' का एक बेहद ख़ूबसूरत और मशहूर गीत। इस फ़िल्म का "ना मैं धन चाहूँ, ना रतन चाहूँ" हमने इस स्तंभ में सुनवाया था। 'काला बाज़ार' का निर्माण देव आनंद ने किया था। फ़िल्म की कहानी व निर्देशन विजय आनंद का था। देव आनंद, वहीदा रहमान, नंदा, विजय आनंद, चेतन आनंद, लीला चिटनिस अभिनीत इस फ़िल्म के गीत संगीत का पक्ष भी काफ़ी मज़बूत था। इन दो गीतों के अलावा रफ़ी साहब का गाया "खोया खोया चांद खुला आसमान", "अपनी तो हर आह एक तूफ़ान है", "तेरी धूम हर कहीं"; आशा-मन्ना का गाया "सांझ ढली दिल की लगी थक चली पुकार के"; तथा आशा भोसले का गाया "सच हुए सपने तेरे" गीत आज भी उतने ही प्यार से सुने जाते