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मुंबई है एक बार फिर फिल्म का विषय, और गैंगस्टरों की मारधाड के बीच भी है संगीत में मधुरता

ताज़ा सुर ताल २५/२०१० सुजॊय - सजीव, बहुत दिनों के बाद आप से इस 'टी.एस.टी' के स्तंभ में मुलाक़ात हो रही है। और बताइए, हाल में आपने कौन कौन सी नई फ़िल्में देखीं और आपके क्या विचार हैं उनके बारे में? सजीव - सुजॉय मैंने "काईट्स", "रावण" और "राजनीति" देखी. रावण और राजनीति मुझे पैसा वसूल लगी तो काईट्स उबाऊ. रावण बेशक चली नहीं पर जहाँ तक मेरा सवाल है मैं फिल्मों को सिर्फ कहानी के लिए नहीं देखता हूँ, मैं जिस मणि का कायल हूँ निर्देशन के लिए वही मणि "युवा" और "दिल से" के बाद मुझे यहाँ दिखे....जबरदस्त संगीत और छायाकारी है फिल्म की. राजनीति भी रणबीर और कंपनी के शानदार अभिनय के लिए देखी जा सकती है, बस मुझे कर्ण के पास कुंती के जाने वाला एपिसोड निरर्थक लगा, नाना पाटेकर हमेशा की तरह....सोलिड....खैर छोडो ये सब....आज का मेनू बताओ... सुजॊय - जैसे कि इस साल का सातवाँ महीना शुरु हो गया है, तो ऐसे में अगर हम पिछले ६ महीनों की तरफ़ अपनी नज़र घुमाएँ, तो आपको क्या लगता है कौन कौन से गीत उपरी पायदानों पर चल रहे हैं इस साल? मेरे सीलेक्शन कुछ इस तरह के

डर लागे गरजे बदरिया ---- भरत व्यास को उनकी पुण्यतिथि पर याद किया आवाज़ परिवार ने कुछ इस तरह

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 432/2010/132 न मस्कार दोस्तों। आज ५ जुलाई, गीतकार भरत व्यास जी का स्मृति दिवस है। भरत व्यास जी ने अपने करीयर में केवल अच्छे गानें ही लिखे हैं। विशुद्ध हिंदी भाषा का फ़िल्मी गीतों में उन्होने व्यापक रूप से इस्तेमाल किया और अच्छे गीतों के कद्रदानों के दिलों में जगह बनाई। आज जब कि हम इस 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में बरसात के गीतों पर आधारित शृंखला 'रिमझिम के तराने' प्रस्तुत कर रहे हैं, ऐसे में यह बेहद ज़रूरी हो जाता है कि आज के दिन हम व्यास की लिखी हुई कोई ऐसी रचना सुनवाएँ जो सावन से जुड़ी हो, बारिश से जुड़ी हो। इसी उद्देश्य से हमने खोज बीन शुरु की और ऐसे गीतों की याद हमें आने लगी जिनमें भरत व्यास जी ने बारिश का उल्लेख किया हो। तीन गीतों का उल्लेख करते हैं, एक "ऐ बादलों, रिमझिम के रंग लिए कहाँ चले" (चाँद), दूसरा, "डर लागे, गरजे बदरिया, सावन की रुत कजरारे कारी" (राम राज्य), और तीसरा गीत फ़िल्म गज गौरी का है "आज गरज घन उठी"। ये और इन जैसे बहुत से और भी गीत हैं जिनमें भरत व्यास ने सावन के, बादलों के, रिमझिम बरसते फुहारों का रंग भरा

ओ वर्षा के पहले बादल...सावन की पहली दस्तक को आवाज़ सलाम इस सुमधुर गीत के माध्यम से

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 431/2010/131 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी चाहने वालों का एक बार फिर से हार्दिक स्वागत है इस स्तंभ में। अगर आप हम से आज जुड़ रहे हैं, तो आपको बता दें कि आप इस वक़्त शामिल हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' स्तंभ है 'हिंद-युग्म' के साज़-ओ-आवाज़ विभाग, यानी कि 'आवाज़' का एक हिस्सा। हर हफ़्ते रविवार से लेकर गुरुवार तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल सजती है और हर अंक में हम आपको सुनवाते हैं हिंदी सिनेमा के गुज़रे ज़माने का एक अनमोल नग़मा। कभी ये नग़में कालजयी होते हैं तो कभी भूले बिसरे, कभी सुपर हिट तो कभी कमचर्चित। लेकिन हर एक नग़मा बेमिसाल, हर एक गीत नायाब। तभी तो इस स्तंभ को हम कहते हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड'। तो उन सभी भाइयों और बहनों का, जो हम से आज जुड़ रहे हैं, हम एक बार फिर से इस महफ़िल में हार्दिक स्वागत करते हैं। दोस्तों, भारत में इस साल के मानसून का आगमन हो चुका है। देश के कई हिस्सों में बरखा रानी छम छम बरस रही हैं इन दिनों, तो कई प्रांत ऐसे भी हैं जो अभी भी भीषण गरमी से जूझ रहे हैं। उनके