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आज पिया तोहे प्यार दूं....पॉडकास्टर गिरीश बिल्लोरे की यादों को सहला जाता है ये गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 407/2010/107 प संदीदा गीतों की इस शृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज हमने एक ऐसे शख़्स का फ़रमाइशी गीत चुना है जो ख़ुद एक कवि हैं, एक मशहूर ब्लॊगर हैं, पॊडकास्ट के क्षेत्र में इनका एक मशहूर ब्लॊग है। इस शख़्स को उभरते गायक आभास जोशी के मार्गदर्शक और गुरु कहा जा सकता है, जिन्होने आभास की पहली ऐल्बम के लिए गीत लिखे हैं। जी हाँ, इस शख़्स का नाम है गिरिश बिल्लोरे। गिरिश जी की पसंद के गीत के बारे में उन्हे के शब्द प्रस्तुत है - " आजा पिया तोहे प्यार दूँ", जो मेरी उस मित्र ने गाया था जिसे पहला प्यार कहा जा सकता है। उस दौर मे सामाजिक अनुशासन के चलते बस मैं खुद प्यार का इज़हार न कर सका। जानते हैं उसने मुझे दिल की बात बेबाक कह देने की नसीहत दी थी। आज वो अपने परिवार मे खुश है। अब बस वो रोमान्टिक एहसास है मेरे पास और अपना प्रतिबंधों के सामने घुटने टेक देने का अहसास। " गिरिश जी, आपके जीवन इन बातों को जानकर हमें अफ़सोस हुआ। हम आपको बस यही मानने की सलाह देंगे कि "तेरा हिज्र ही मेरा नसीब है, तेरा ग़म ही मेरी हयात है, मुझे तेरी दूरी का ग़म हो क्यों, तू कहीं भी हो म

सुनो कहानी: कमलेश्वर की "कामरेड"

सुनो कहानी: कमलेश्वर की "कामरेड" 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने नीलम मिश्रा की आवाज़ में रबीन्द्र नाथ ठाकुर की कहानी "काबुलीवाला" का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार कमलेश्वर की पहली कहानी " कामरेड ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "कामरेड" का कुल प्रसारण समय 22 मिनट है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट सृजनगाथा पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। यह सत्य भी है कि कामरेड की 'रेड' से सरकार तक चौंक जाती है। ~ कमलेश्वर (1932-2007) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी इन जालिमों के अत्याचार मिटाने को तुम्हें संगठित होना पड़ेगा, अपने हक के लिए तुम्हें लड़ना पड़ेगा। ( कमलेश्वर की "कामरेड" से एक अं

तुमसे मिला था प्यार....गुलज़ार का लिखा ये गीत है योगेश पाटिल को पसंद

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 406/2010/106 'प संद अपनी अपनी' में फ़रमाइशी गीतों का सिलसिला जारी है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर। आज बारी है योगेश पाटिल के पसंद के गाने की। आप ने सुनना चाहा है फ़िल्म 'खट्टा मीठा' से "तुमसे मिला था प्यार, कुछ अच्छे नसीब थे, हम उन दिनों अमीर थे जब तुम करीब थे"। बड़ा ही ख़ूबसूरत गीत है और आम गीतों से अलग भी है। यह उन गीतों की श्रेणी में आता है जिन गीतों में गायक गायिका के आवाज़ों के साथ साथ नायक नायिका की आवाज़ें भी शामिल होती हैं। इस गीत में मुख्य आवाज़ लता मंगेशकर की है, अंत में किशोर कुमार दो पंक्तियाँ गाते हैं, गीत की शुरुआत में राकेश रोशन और बिंदिया गोस्वामी के संवाद हैं और इंटरल्युड में भी राकेश रोशन के संवाद हैं। इस गीत को लिखा है गुलज़ार ने और संगीतकार हैं राजेश रोशन। भले ही राजेश रोशन समय समय पर विवादों से घिरे रहे, लेकिन हक़ीक़त यह भी है कि उन्होने कुछ बेहद अच्छे गानें भी हमें दिए हैं। और उनके द्वारा रचे लता-किशोर के गाए सभी युगलगीत बेहद लोकप्रिय हुए हैं। आज के प्रस्तुत गीत में गुलज़ार साहब ने संवादों के साथ गीत को इस ख़ूबसूरती

प्रभु जी से मन की गुहार कुहू से स्वर में, श्रीनी के संगीत में और सजीव के शब्दों में

Season 3 of new Music, Song # 03 फि र एक नया शुक्रवार आया और लाया हिंद युग्म के तीसरे संगीत सत्र का तीसरा गीत. दोस्तों कुहू गुप्ता से आप हमारी पिछली पेशकश में रूबरू हो चुके हैं, कुहू की तरह ही काव्यानद के माध्यम से आवाज़ से जुड़े एक बेहद प्रतिभाशाली संगीतकार जिन्होंने लगातार ३ बार काव्यनाद प्रतियोगिता में विजय पताका फहराई, और उनका गीत " जो तुम आ जाते एक बार " तो जैसे सबकी जुबाँ पर चढ गया, प्रदीप सोमसुन्दरन और निखिल आनंद के साथ उन्होंने " कलम आज उनकी जय बोल " से भी खूब वाह वाही लूटी. जी हाँ हम बात कर रहे हैं श्रीनिवास पंडा की. संगीत महोत्सव के इस तीसरे संस्करण में आज पहली बार श्रीनिवास पंडा एक बार फिर एक नए अंदाज़ में आपके सामने आ रहे हैं, साथ हैं युग्म के वरिष्ठ गीतकारों में से एक सजीव सारथी. इन दोनों के संगम से बना एक आत्मीय भजन जिसे दो संस्करणों में प्रस्तुत किया गया है. एक में आवाज़ है कुहू की तो दूसरा संस्करण खुद श्रीनिवास ने गाया है. तो दोस्तों आज आम प्रेम गीतों से कुछ अलग, भक्ति रस में डूब कर सुना जाए ये भजन, अपने व्यस्त और उलझे बिगड़े इस जीवन में जब दो पल फु

तस्वीर-ए-मोहब्बत थी जिसमें...ओल्ड इस गोल्ड में आज पेश है मंदार नारायण की पसंद

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 405/2010/105 ओ ल्ड इज़ गोल्ड' में हम हमारी पसंद के गीतों को तो सुनवाते ही रहते हैं। इन दिनों हम ख़ास आपकी पसंदीदा गीतों को समेट कर प्रस्तुत कर रहे हैं लघु शृंखला 'पसंद अपनी अपनी'। आज इस महफ़िल को सजाने के लिए हम लेकर आए हैं एक मुजरा गीत। युं तो बहुत सारी गायिकाओं ने मुजरे गाए गाए हैं, और अक्सर ऐसा हुआ है कि क्योंकि फ़िल्म में मुजरा हीरोइन पर नहीं बल्कि किसी चरित्र अभिनेत्री पर फ़िल्माया जाता रहा है, इसलिए कई बार फ़िल्म की मुख्य गायिका (जो ज़्यादातर लता जी हुआ करती थीं) से ये मुजरे नहीं गवाए जाते थे बल्कि आशा जी या उषा जी या फिर कोई और कमचर्चित गायिका की आवाज़ में ये मुजरे होते थे। वैसे लता जी ने भी बहुत से मुजरे गाए हैं, लेकिन मेरे हिसाब से मुजरों में जान डालने में आशा जी का कोई सानी नहीं है। ५० के दशक से लेकर ८० के दशक तक आशा जी ने बेहिसाब मुजरे गाये हैं। किसी मुजरे की खासियत होती है कि उसमें नुकीली आवाज़ के साथ साथ थोड़ी सी शोख़ी, थोड़ी सी शरारत, थोड़ी सी बेवफ़ाई, थोड़ा सा दर्द, और अपनी तरफ़ आकृष्ट करने की क्षमता होनी चाहिए। और ये सब गुण आशा जी की

तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूँ...कि इस मीठी नोंक झोंक में भी मज़ा बहुत आता है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 404/2010/104 दो स्तों, पिछले तीन दिनों से हम आप ही के पसंद के गानें सुन रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर। ये तीनों ही गीत कुछ संजीदे या फिर थोड़े दर्द भरे रहे। तो आज मूड को बिल्कुल ही बदलते हुए हम जिस गीत को सुनेंगे उसका ताल्लुख़ है खट्टे मीठे नोंक झोंक से, प्यार भरे तकरारों से, प्यार में रूठने मनाने से। यह गीत है रोहित राजपूत की पसंद का गीत है, रोहित जी ने पहेली प्रतियोगिता के पहले सीज़न में मंज़िल के बहुत करीब तक पहुँच गए थे, लेकिन शायद व्यस्तता की वजह से बाद में वो कुछ ग़ायब से हो गए। लेकिन हमारा अनुमान है कि जब भी उन्हे समय मिल पाता है, वह आवाज़ के मंच को दस्तक ज़रूर देते हैं। तभी तो उन्होने अपनी फ़रमाइश लिख भेजी है हमें। तो उनकी फ़रमाइश है फ़िल्म 'आस का पंछी' से, "तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूँ कि इन अदाओं पे और प्यार आता है"। लता मंगेशकर और मुकेश का गाया यह गीत है जिसे लिखा है हसरत जयपुरी ने और स्वरबद्ध किया है शंकर जयकिशन ने। १९६१ की इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे वैजयंतीमाला, राजेन्द्र कुमार और राज मेहरा। राजेन्द्र सिंह बेदी लिखित इस फ़िल

उस पे बन जाये कुछ ऐसी कि बिन आये न बने.. जसविंदर सिंह की जोरदार आवाज़ में ग़ालिब ने माँगी ये दुआ

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #७९ पि छली किसी कड़ी में इस बात का ज़िक्र आया था कि "ग़ालिब" के उस्ताद "ग़ालिब" हीं थे। उस वक्त तो हमने इस बात पे ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब आज का आलेख लिखने की बारी आई तो हमने सोचा कि क्यों न एक नया मुद्दा,एक नया विषय ढूँढा जाए, अंतर्जाल पर ग़ालिब से जु़ड़ी सारी कहानियों को हमने खंगाल डाला और फिर ढूँढते-ढूँढते बात चचा ग़ालिब के उस्ताद पे आके अटक गई। श्री रामनाथ सुमन की पुस्तक "ग़ालिब" में इस सुखनपरवर के उस्ताद का लेखा-जोखा कुछ इस तरह दर्ज़ है: फ़ारसी की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने आगराके उस समय के प्रतिष्ठित विद्वान मौलवी मुहम्मद मोवज्ज़म से प्राप्त की। इनकी ग्रहण शक्ति इतनी तीव्र थी कि बहुत जल्द वह ज़हूरी जैसे फ़ारसी कवियों का अध्ययन अपने आप करने लगे बल्कि फ़ारसी में गज़लें भी लिखने लगे। इसी ज़माने (१८१०-१८११ ई.) में मुल्ला अब्दुस्समद ईरान से घूमते-फिरते आगरा आये और इन्हींके यहाँ दो साल तक रहे। यह ईरान के एक प्रतिष्ठत एवं वैभवसम्पन्न व्यक्ति थे और यज़्द के रहनेवाले थे। पहिले ज़रथुस्त्र के अनुयायी थे पर बाद में इस्लाम को स्वीकार कर लिया था। इ