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कोई ये कैसे बताये कि वो तन्हा क्यों है....कैफी साहब और जगजीत सिंह जैसे चीर देते है दिल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 379/2010/79 क ल हमने १९८२ की फ़िल्म 'बाज़ार' का ज़िक्र किया था। आज भी हम १९८२ पर ही कायम हैं और आज की फ़िल्म है 'अर्थ'। 'अर्थ' महेश भट्ट निर्देशित फ़िल्म थी जिसमें मुख्य कलाकार थे शबाना आज़्मी, कुलभूषण खरबंदा, स्मिता पाटिल, राज किरण, रोहिणी हत्तंगड़ी। यानी कि फिर एक बार समानांतर सिनेमा के चोटी के कलाकारों का संगम। अपनी आत्मकथा पर आधारित इस फ़िल्म की कहानी लिखी थी ख़ुद महेश भट्ट ने (उनके परवीन बाबी के साथ अविवाहिक संबंध को लेकर)। इस फ़िल्म को बहुत सारे पुरस्कार मिले। फ़िल्मफ़ेयर के अंतर्गत सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (शबाना आज़्मी), सर्बश्रेष्ठ स्कीनप्ले (महेश भट्ट) और सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री (रोहिणी हत्तंगड़ी)। शबाना आज़्मी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार (सिल्वर लोटस) भी मिला था इसी फ़िल्म के लिए। इस फ़िल्म का साउंडट्रैक भी कमाल का है जिसमें आवाज़ें हैं ग़ज़ल गायकी के दो सिद्धहस्थ फ़नकारों के - जगजीत सिंह और चित्रा सिंह। "झुकी झुकी सी नज़र", "तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो", "तेरे ख़ुशबू में बसे", &q

सुनो कहानी: बुद्धिजीवियों का दायित्व - शरद जोशी

सुनो कहानी: बुद्धिजीवियों का दायित्व - शरद जोशी 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई लिखित रचना " डिप्टी कलेक्टर " का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा की आवाज़ में सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं शरद जोशी लिखित व्यंग्य " बुद्धिजीवियों का दायित्व ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। "बुद्धिजीवियों का दायित्व" का कुल प्रसारण समय मात्र 1 मिनट 50 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। लेखन मेरा निजी उद्देश्य है ... मैं इससे बचकर जा भी नहीं सकता। ~ पद्मश्री शरद जोशी (जन्म २१ मई १९३१; उज्जैन) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी मार्क्सवाद पर तुम्हारी पकड़ भी गहरी है। ( शरद जोशी के व्यंग्य "बुद्धिजीवि

चले आओ सैयां रंगीले मैं वारी रे....क्या खूब समां बाँधा था इस विवाह गीत ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 378/2010/78 जि स तरह से ५० से लेकर ७० के दशक तक के समय को फ़िल्म संगीत का सुनहरा दौर माना जाता है, वैसे ही अगर समानांतर सिनेमा की बात करें तो इस जौनर का सुनहरा दौर ८० के दशक को माना जाना चाहिए। इस दौर में नसीरुद्दिन शाह, ओम पुरी, शबाना आज़्मी, स्मिता पाटिल, सुप्रिया पाठक, फ़ारुख़ शेख़ जैसे अभिनेताओं ने अपने जानदार अभिनय से इस जौनर को चार चांद लगाए। दोस्तों, मैं तो आज एक बात क़बूल करना चाहूँगा, हो सकता है कि यही बात आप के लिए भी लागू हो! मुझे याद है कि ८० के दशक में, जो मेरे स्कूल के दिन थे, उन दिनों दूरदर्शन पर रविवार (बाद में शनिवार) शाम को एक हिंदी फ़ीचर फ़िल्म आया करती थी, और हम पूरा हफ़्ता उसी की प्रतीक्षा किया करते थे। साप्ताहिकी कार्यक्रम में अगले दिन दिखाई जाने वाली फ़िल्म का नाम सुनने के लिए बेचैनी से टीवी के सामने बैठे रहते थे। और ऐसे में अगर फ़िल्म इस समानांतर सिनेमा के या फिर कलात्मक फ़िल्मों के जौनर से आ जाए, तो हम सब उदास हो जाया करते थे। हमें तो कमर्शियल फ़िल्मों में ही दिलचस्पी रहती थी। लेकिन जैसे जैसे हम बड़े होते गए, वैसे वैसे इन समानांतर फ़िल्