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कविता और संगीत का अनूठा मेल है "काव्यनाद"

ताज़ा सुर ताल ०८/२०१० सुजॉय - सजीव आज आपके चेहरे पर एक अजीब सी खुशी है, इसकी वजह... सजीव - हाँ सुजॉय मैं हिंद युग्म के अपने प्रोडक्ट "काव्यनाद" को विश्व पुस्तक मेले में मिली आपार सफलता और वाह वाही से बहुत खुश हूँ. सुजॉय - हाँ सजीव मैंने भी यह अल्बम सुनी, और सच कहूँ तो ये मेरी अपेक्षाओं से कहीं बेहतर निकली, इतनी पुरानी कविताओं पर इतनी मधुर धुनें बन सकती है, यकीं नहीं होता. सजीव - बिलकुल सुजॉय, ये इतना आसान हरगिज़ नहीं था, पर जैसा कि मैंने हमेश विश्वास जताया है युग्म के सभी संगीतकार बेहद प्रतिभाशाली हैं, ये सब कुछ संभव कर सकते हैं. सुजॉय - तो इसका अर्थ है सजीव कि आज हम इसी अनूठी अल्बम को ताज़ा सुर ताल में पेश करने जा रहे हैं ? सजीव - जी सुजॉय, काव्यनाद प्रसाद, निराला, दिनकर, महादेवी, पन्त, और गुप्त जैसे हिंदी के प्रतीक कवियों की ६ कविताओं का संगीतबद्ध संकलन है, ६ कविताओं को संगीत के अलग अलग अंदाज़ में प्रस्तुत किया गया है, कुल १४ गीत हैं, और सबसे अच्छी बात ये हैं कि सभी एक दूसरे से बेहद अलग ध्वनि देते हैं. सुजॉय - सबसे पहले मैं इसमें से उस गीत को सुनवाना चाहूँगा जो मुझे व्यक्ति

आंसू तो नहीं है आँखों में....तलत के स्वरों में एक और ग़मज़दा नगमा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 352/2010/52 आ 'दस महकती ग़ज़लें और एक मख़मली आवाज़'। तलत महमूद साहब के गाए १० बेमिसाल ग़ज़लों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस ख़ास पेशकश की दूसरी महफ़िल में आप सभी का स्वागत है। इससे पहले कि आज की ग़ज़ल का ज़िक्र करें, आइए आज तलत महमूद साहब के शुरुआती दिनों का हाल ज़रा आपको बताया जाए। २४ फ़रवरी १९२४ को लखनऊ में मंज़ूर महमूद के घर जन्मे तलत कुंदन लाल सहगल के ज़बरदस्त फ़ैन बने। बदक़िस्मती से उनके घर में संगीत का कोई वातावरण नहीं था, बल्कि उनके पिताजी तो संगीत के पूरी तरह से ख़िलाफ़ थे। उनकी मौसी के अनुरोध पर तलत के पिता ने उन्हे लखनऊ के मॊरिस कॊलेज से एक छोटा सा म्युज़िक का कोर्स करने की अनुमती दे दी। वहीं पर तलत महमूद ने ग़ज़लें गानी शुरु की। १६ वर्ष की आयु में तलत ऑल इंडिया रेडियो के लखनऊ केन्द्र में ग़ालिब, दाग़ और जिगर की ग़ज़लें गाया करते थे। एच. एम. वी ने उनकी आवाज़ सुनी और सन् १९४१ में उनका पहला ग्रामोफ़ोन रिकार्ड जारी किया। उसमे एक गीत था "सब दिन एक समान नहीं था, बन जाउँगा क्या से क्या मैं, इसका तो कुछ ध्यान नहीं था"। दोस्तों, इ

भरम तेरी वफाओं का मिटा देते तो क्या होता...तलत की आवाज़ पर साहिर के बोल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 351/2010/51 आ ज है २० फ़रवरी। याद है ना आपको पिछले साल आज ही के दिन से शुरु हुई थी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह शृंखला। आज से इस शृंखला का दूसरा साल शुरु हो रहा है। आपको याद है इस शॄंखला की पहली कड़ी में कौन सा गीत बजा था? चलिए हम ही याद दिलाए देते हैं। वह पहला पहला गीत था फ़िल्म 'नीला आकाश' का, "आपको प्यार छुपाने की बुरी आदत है"। ख़ैर, उसके बाद तो एक के बाद एक कुल ३५० गीत इस शृंखला में बज चुके हैं, और इन सभी कड़ियों में हमने जितना हो सका है संबम्धित जानकारियाँ भी देते आए हैं। आज से हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के अंतर्गत एक नया स्तंभ जोड़ रहे हैं और यह स्तंभ है 'क्या आप जानते हैं?' मुख्य आलेख, ऒडियो, और पहेली प्रतियोगिता के साथ साथ अब आप इस स्तंभ का भी आनंद ले पाएँगे जिसके तहत हम आपको रोज़ फ़िल्म संगीत से जुड़ी एक अनोखे तथ्य से रु-ब-रु करवाएँगे। ये तो थीं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के स्वरूप से संबम्धित बातें, आइए अब आज का अंक शुरु किया जाए। दोस्तों, २४ फ़रवरी को मख़मली आवाज़ के जादूगर तलत महमूद साहब का जन्मतिथि है। अत: आज से लेकर १ मा