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चक्के पे चक्का, चक्के पे गाडी....बच्चों के संग एक मस्ती भरी यात्रा पे चलिए

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 266 'ब्र ह्मचारी' गीतकार शैलेन्द्र की अंतिम फ़िल्म थी। इस फ़िल्म के गीत "मैं गाऊँ तुम सो जाओ" के लिये उन्हे मरणोपरांत सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। बच्चों पर केन्द्रित फ़िल्मों की फ़हरिस्त में १९६८ की इस फ़िल्म का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इस फ़िल्म में कई कालजयी गीत हैं, और कुछ तो लोकप्रियता की कसौटी पर ऐसे खरे उतरे हैं कि आज भी अक्सर कहीं ना कहीं से "आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे" या "दिल के झरोखे में तुझको बिठा के" सुनाई दे जाता है। अनाथ बच्चों पर आधारित इस फ़िल्म में दो बच्चों वाले गीत थे, एक जिसका उल्लेख हमने शुरु में ही किया ("मैं गाऊँ तुम सो जाओ"), और दूसरा गीत था बड़ा ही मस्ती भरा "चक्के पे चक्का, चक्के पे गाड़ी, गाड़ी में निकली अपनी सवारी", जिसे रफ़ी साहब और बच्चों ने बड़े ही बच्चों वाले अंदाज़ में गाया था। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर है इसी गीत की बारी। इस गीत के बोल साफ़ साफ़ इसी बात की तरफ़ इशारा करते हैं कि यह गीत किसी ख़ास मक़सद या सिचुएशन के लिए न

हाय हम क्या से क्या हो गए....लज्जत-ए-इश्क़ महसूस करें जावेद अख़्तर और अल्का याज्ञनिक के साथ

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #६० आ ज की महफ़िल में हम हाज़िर हैं शरद जी की पसंद की तीसरी और अंतिम नज़्म लेकर। गायकी के दो पुराने उस्तादों(मन्ना डे और मुकेश) को सुनने-सुनाने के बाद आज हमने रूख किया है १९९० और २००० के दशक की ओर और इस सफ़र में हमारा साथ वह दे रही हैं जो आज भी उसी शिद्दत से सुनी जाती हैं जिस शिद्दत से ३० साल पहले सुनी जाती थीं। नए दौर में कई सारी नई गायिकाएँ आईं, लेकिन इनके जादू को दुहरा न सकीं। इन्होंने अपना पहला गाना १९७९ की फिल्म "पायल की झनकार" में गाया था, वह गाना ज्यादा मशहूर तो नहीं हुआ, लेकिन हाँ उस गाने ने यह घोषणा तो कर दी कि एक लम्बे दौर का घोड़ा मैदान में उतर चुका है। फिर १९८१ में आई "लावारिस" जिसमें अमिताभ बच्चन का गाया "मेरे अंगने में" बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ गया। लेकिन हाँ अमित जी के गाए इस गाने का एक रूप और था, जिसे परदे पर "राखी" गाती हैं और परदे के पीछे हमारी आज की फ़नकारा। यह गाना भी खूब चला, लेकिन अगर कोई यह पूछे कि इन्हें सही मायने में सफ़लता कब मिली, तो निर्विरोध एक हीं जवाब होगा और वह जवाब है १९८८ में रीलिज हुई फिल्म &quo

इचक दाना बिचक दाना....पहेलियों में गुंथा एक अनूठा गाना

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 265 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर आप लगातार सुन रहे हैं बच्चों वाले गानें एक के बाद एक। दोस्तों, हर रोज़ गीत के आख़िर में हम आप से एक पहेली पूछते हैं, आज भी पूछेंगे, लेकिन आज का जो गीत है ना वो भरा हुआ है पहेलियों से। पहेली बूझना बच्चों का एक मनपसंद खेल रहा है हर युग में। हिंदी फ़िल्मों में कई गीत ऐसे हैं जो पहेलियों पर आधारित हैं, जैसे कि उदाहरण के तौर पर फ़िल्म 'ससुराल' का गीत "एक सवाल मैं करूँ एक सवाल तुम करो", 'मिलन' फ़िल्म का गीत "बोल गोरी बोल तेरा कौन पिया"। और भी कई गीत हैं इस तरह के, लेकिन इन सब में जो सब से ज़्यादा प्रोमिनेंट है वह है राज कपूर की फ़िल्म 'श्री ४२०' का "ईचक दाना बीचक दाना दाने उपर दाना"। इस गीत का मुखड़ा और सारे के सारे अंतरे पहेलियों पर आधारित है। लता मंगेशकर, मुकेश और बच्चों के गाए इस गीत का फ़िल्मांकन कुछ इस तरह से हुआ है कि नरगिस एक स्कूल टीचर बच्चों को पहेलियों के माध्यम से पाठ पढ़ा रही हैं, और छत पर खड़े दूर दूर से राज कपूर ख़ुद भी उन पहेलियों को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। हर प

मास्टरजी की आ गयी चिट्टी, चिट्टी में से निकली बिल्ली....गुलज़ार और आर डी बर्मन का "मास्टर" पीस

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 264 ब च्चों पर जब फ़िल्म बनाने या गीत लिखने की बात आती है तो गुलज़ार साहब का नाम बहुत उपर आता है। बच्चों के किरदारों या गीतों को वो इस तरह का ट्रीटमेंट देते हैं कि वो फ़िल्में और वो गानें कालजयी बन कर रह जाते हैं। फिर चाहे वह 'परिचय' हो या 'किताब', या फिर १९८३ की फ़िल्म 'मासूम'। हर फ़िल्म में उन्होने बच्चों के किरदारों को बहुत ही समझकर, बहुत ही नैचरल तरीके से प्रस्तुत किया है। बड़े फ़िल्मकार की यही तो निशानी है कि किस तरह से छोटे से छोटे बच्चो से उनका बेस्ट निकाल लिया जाए! आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर हम ज़िक्र करेंगे एक ऐसी ही फ़िल्म का जिसका निर्माण किया था प्राणलाल मेहता और गुलज़ार ने। पटकथा, निर्देशन और गीत गुलज़ार साहब के थे और संगीत था राहुल देव बर्मन का। जी हाँ, यह फ़िल्म थी 'किताब'। मुख्य भुमिकाओं में थे उत्तम कुमार, विद्या सिंहा, श्रीराम लागू, केष्टो मुखर्जी, असीत सेन, और दो नन्हे किरदार - मास्टर राजू और मास्टर टीटो। 'किताब' की कहानी एक बच्चे के मनोभाव पर केन्द्रित थी। बाबला (मास्टर राजू) अपनी माँ (दीना पाठक) क

"ऑल इज वेल" है शांतनु-स्वानंद की जोड़ी के रचे "३ इडियट्स" के संगीत में

ताजा सुर ताल TST (35) दोस्तो, ताजा सुर ताल यानी TST पर आपके लिए है एक ख़ास मौका और एक नयी चुनौती भी. TST के हर एपिसोड में आपके लिए होंगें तीन नए गीत. और हर गीत के बाद हम आपको देंगें एक ट्रिविया यानी हर एपिसोड में होंगें ३ ट्रिविया, हर ट्रिविया के सही जवाब देने वाले हर पहले श्रोता की मिलेंगें २ अंक. ये प्रतियोगिता दिसम्बर माह के दूसरे सप्ताह तक चलेगी, यानी 5 अक्टूबर से १४ दिसम्बर तक, यानी TST के ४० वें एपिसोड तक. जिसके समापन पर जिस श्रोता के होंगें सबसे अधिक अंक, वो चुनेगा आवाज़ की वार्षिक गीतमाला के 60 गीतों में से पहली 10 पायदानों पर बजने वाले गीत. इसके अलावा आवाज़ पर उस विजेता का एक ख़ास इंटरव्यू भी होगा जिसमें उनके संगीत और उनकी पसंद आदि पर विस्तार से चर्चा होगी. तो दोस्तों कमर कस लीजिये खेलने के लिए ये नया खेल- "कौन बनेगा TST ट्रिविया का सिकंदर" TST ट्रिविया प्रतियोगिता में अब तक- पिछले एपिसोड में, अब तो लगता है सीमा जी अकेली रनर रह गयी हैं, अब उन्हें चुनौती देना तो असंभव सा ही लग रहा है... सजीव - सुजॉय, 'ताज़ा सुर ताल' में इस हफ़्ते हम चर्चा करेंगे विधु विनोद

बच्चे मन के सच्चे....साहिर साहब के बोलों में झलकता निष्पाप बचपन का प्रतिबिम्ब

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 263 इ न दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर आप सुन रहे हैं बच्चों वाले गीतों की एक ख़ास लघु शृंखला 'बचपन के दिन भुला ना देना'। आज एक गीत लता मंगेशकर की आवाज़ में हो जाए? इसमें इन्होने प्लेबैक दिया है बाल कलाकार बेबी सोनिया का। बेबी सोनिया का नाम शायद आपने कभी नहीं सुना होगा लेकिन अगर हम यह कहें कि यही बेबी सोनिया आगे चलकर नीतू सिंह के नाम से जानी गई तो फिर कोई और तारुफ़ की मोहताज नही रह जाएँगी बेबी सोनिया। जी हाँ, १९६८ की फ़िल्म 'दो कलियाँ' में बेबी सोनिया के नाम से नीतू सिंह नज़र आईँ थीं एक नहीं बल्कि दो किरदारों में - गंगा और जमुना। यानी कि दो जुड़वा बहनों के लिए उनका डबल रोल था। इस फ़िल्म में युं तो बिस्वजीत और माला सिंहा नायक-नायिका के रोल में थे, लेकिन कहानी में नीतू सिंह की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही। अजी साहब, फ़िल्म का शीर्षक ही तो बता रही है कि दोनों जुड़वा बहनों को दो कलियाँ कहा गया है। नीतू पर फ़िल्म में कम से कम दो गानें फ़िल्माए गए जिन्हे लता जी ने ही गाए। युं तो फ़िल्म का सब से लोकप्रिय गीत एक लता-रफ़ी डुएट है "तुम्हारी नज़र क्य

रविवार सुबह की कॉफी और अमिताभ की पसंद के गीत (२१)

अभी हाल ही ही में अमिताभ बच्चन की नयी फिल्म "पा" का ट्रेलर जारी हुआ, और जिसने भी देखा वो दंग रह गया...जानते हैं इस फिल्म में उनका जो मेक अप है उसे पहनने में अमिताभ को चार घंटे का समय लगता था और उतारने में दो घंटे, और प्रतिदिन ४ घंटे का शूट होता था क्योंकि इससे अधिक समय तक उस मेक अप को पहना नहीं जा सकता था. इस उम्र में भी अपने काम के प्रति इतनी तन्मयता अद्भुत ही है. आज से ठीक ४० साल पहले प्रर्दशित "सात हिन्दुस्तानी" जिसमें अमिताभ सबसे पहले परदे पर नज़र आये थे, उसका जिक्र हमने पिछले रविवार को किया था....चलिए अब इसी सफ़र को आगे बढाते हैं एक बार फिर दीपाली जी के साथ, सदी के सबसे बड़े महानायक की पसंद के ३ और गीत और उनके बनने से जुडी उनकी यादों को लेकर.... दोस्तों हमने आपसे वादा किया था कि अगले अंक में भी हम अपना सफर जारी रखेंगे. तो लीजिये हम हाजिर हैं फिर से अपना यादों का काफिला लेकर जिसके मुखिया अमिताभ बच्चन सफर को यादगार बनाने के लिये कुछ अनोखे पल बयाँ कर रहे हैं. आइये इन यादों में से हम भी अपने लिये कुछ पल चुरा लें. नदिया किनारे....(अभिमान)बेलगाम यह फ़िल्म मेरे और जय