Skip to main content

Posts

कलम, आज उनकी जय बोल कविता की संगीतमयी प्रस्तुति

गीतकास्ट प्रतियोगिता- परिणाम-5: कलम, आज उनकी जय बोल मई 2009 में जब गीतकास्ट प्रतियोगिता की शुरूआत हुई थी, तब हमने आदित्य प्रकाश के साथ मिलकर इतना ही तय किया था कि हम छायावादी युगीन कवियों की कविताओं को संगीतबद्ध करने की प्रतियोगिता रखेंगे। आरम्भ की दो कड़ियों की सफलता के बाद हमने यह तय किया कि गीतकास्ट प्रतियोगिता में प्रमुख राष्ट्रकवियों की कविताओं को भी शामिल किया जाय। कमल किशोर सिंह जैसे सहयोगियों की मदद से हमने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता 'कलम, आज उनकी जय बोल' से गीतकास्ट प्रतियोगिता की 'राष्ट्रकवि शृंखला' की शुरूआत भी कर दी। आज हम पाँचवीं गीतकास्ट प्रतियोगिता के परिणाम लेकर उपस्थित हैं। पिछले महीने राष्ट्रकवि दिनकर की जयंती थी, इसलिए हमने उनके सम्मान में उनकी कविता को स्वरबद्ध करने की प्रतियोगिता रखी। इस प्रतियोगिता में कुल सात प्रतिभागियों ने भाग लिया। संख्या के हिसाब से यह प्रतिभागिता तो कम है, लेकिन गुणवत्ता के हिसाब से यह बहुत बढ़िया है। सजीव सारथी, अनुराग पाण्डेय, शैलेश भारतवासी और आदित्य प्रकाश ने निर्णायक की भूमिका निभाई और तीसरी बार श्रीनिवा

तू चंदा मैं चांदनी.....शब्द संगीत और आवाज़ का अद्भुत संगम

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 228 "ज ब मेरे देश की जनता युद्ध में जाते थे लड़ने के लिए अपने उस राजा की ख़ातिर जिसे शायद उन लोगों ने कभी देखा भी नहीं होगा, तब मैने उनके कुशलता की कामना की और युद्ध जीत कर जब वे वापस आए तो मैने ही उनका स्वागत किया। जब सावन की पहली बौछार इस सूखी धरती पर पड़ी और गन्ने की कोमल कोपलें मिट्टी से बाहर झाँकने लगीं सूरज को ढ़ूढते हुए, उस समय भी मैं ही वहाँ मौजूद था। मेरा नाम है मांड।" जी हाँ दोस्तों, मांड ही वह राग है जो शास्त्रीय होते हुए भी लोक धुनों में अपना परिचय खोजता है। यह मिट्टी से जुड़ा हुआ राग है, ख़ास कर के राजस्थान की मिट्टी से जुड़ा हुआ है मांड। तभी तो जब भी कभी राजस्थान के पार्श्व पर किसी फ़िल्म का निर्माण हुआ है, उन फ़िल्मों के संगीतकारों ने इस राग का भरपूर फ़ायदा उठाया है। मांड का सब से सुपरिचित उदाहरण है "केसरिया बालमा ओ जी", जिसे अलग अलग अंदाज़ में कई संगीतकारों ने अपने फ़िल्मों में जगह दी है। हृदयनाथ मंगेशकर ने फ़िल्म 'लेकिन' में लता जी से इसे गवाया था "केसरिया बालमा ओ जी, के तुमसे लागे नैन", और हाल ही में '

चौथी का जोड़ा - इस्मत चुगताई

सुनो कहानी: इस्मत चुगताई की "चौथी का जोड़ा" 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शरद तैलंग की आवाज़ में हिंदी साहित्यकार पद्मश्री फणीश्वर नाथ "रेणु" की प्रसिद्ध आंचलिक कहानी "पंचलाइट" का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं इस्मत चुगताई की मार्मिक कहानी " चौथी का जोड़ा ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 32 मिनट 14 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। चौथी के जोडे क़ा शगुन बडा नाजुक़ होता है। ~ इस्मत चुगताई (1911-1991) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी अब्बा एक दिन चौखट पर औंधे मुंह गिरे और उन्हें उठाने के लिये किसी हकीम या डाक्टर का नुस्खा न आ सका। ( इस्मत चुगताई की "चौथी का जोड़ा" से एक अंश ) नीचे के प्

बोले रे पपिहरा, नित मन तरसे....वाणी जयराम की मधुर तान

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 227 हा लाँकि शास्त्रीय राग संख्या में अजस्र हैं, लेकिन फिर भी शास्त्रीय संगीत के दक्ष कलाकार समय समय पर नए नए रागों का इजाद करते रहे हैं। संगीत सम्राट तानसेन ने कई रागों की रचना की है जो उनके नाम से जाने जाते हैं। उदाहरण के तौर पर मिया की सारंग, मिया की तोड़ी और मिया की मल्हार। यानी कि सारंग, तोड़ी और मल्हार रागों में कुछ नई चीज़ें डाल कर उन्होने बनाए ये तीन राग। तानसेन के प्रतिद्वंदी बैजु बावरा ने भी कुछ रागों का विकास किया था, जैसे कि सारंग से उन्होने बनाया गौर सारंग, और इसी तरह से गौर मल्हार। आधुनिक काल में पंडित रविशंकर ने कई रागों का आविश्कार किया है, इसी शृंखला में आगे चलकर उन पर भी चर्चा करेंगे। दोस्तों, आज 'दस राग दस रंग' में बारी है राग मिया की मल्हार की। इस राग पर बने फ़िल्मी गीतों की जहाँ तक बात है, मेरे ज़हन में बस दो ही गीत आ रहे हैं, एक तो १९५६ की फ़िल्म 'बसंत बहार' में शंकर जयकिशन के संगीत में मन्ना डे का गाया हुआ "भय भंजना वंदना सुन हमारी, दरस तेरे माँगे ये तेरा पुजारी", और दूसरा गीत है आज का प्रस्तुत गीत, वाणी जयराम का

मुझको भी तरकीब सिखा दे यार जुलाहे...कबीर से बुनकरी सिखना चाहते हैं गुलज़ार और भुपि

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #५२ आ की महफ़िल कुछ खास है। सबब तो समझ हीं गए होंगे। नहीं समझे?... अरे भाई, भुपि(भुपिन्दर सिंह) और गुलज़ार साहब की जोड़ी पहली बार आज महफ़िल में नज़र आने जा रही है। अब जहाँ गुलज़ार का नाम हो, वहाँ सारे बने बनाए ढर्रे नेस्तनाबूत हो जाते हैं। और इसी कारण से हम भी आज अपने ढर्रे से बाहर आकर महफ़िल-ए-गज़ल को गुलज़ार साहब की कविताओं के सुपूर्द करने जा रहे हैं। उम्मीद करते हैं कि हमारा यह बदलाव आपको अटपटा नहीं लगेगा। तो शुरू करते हैं कविताओं का दौर... उससे पहले एक विशेष सूचना: हमें सीमा जी की पसंद की गज़लों की फ़ेहरिश्त मिल गई है और हम इस सोमवार को उन्हीं की पसंद की एक गज़ल सुनवाने जा रहे हैं। शामिख साहब ने २-३ दिनों की मोहलत माँगी है, हमें कोई ऐतराज नहीं है...लेकिन जितना जल्द आप यह काम करेंगे, हमें उतनी हीं ज्यादा सुहूलियत हासिल होगी। शरद जी, कृपया फूर्त्ति दिखाएँ, आप तो पहले भी इस प्रक्रिया से गुजर चुकें हैं। भारतीय ज्ञानपीठ की मासिक साहित्यिक पत्रिका नया ज्ञानोदय के पिछले अंक(जून २००८) में गुलज़ार साहब की कलम ने पांच शहरों की तस्वीरें उकेरी हैं, कविताओं के माध्यम से शहरों क

आ लौट के आजा मेरे मीत तुझे मेरे गीत बुलाते हैं....एस एन त्रिपाठी का अमर संगीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 226 'द स राग दस रंग' शृंखला इन दिनों आप सुन रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के तहत, जिसमें हम आप को शास्त्रीय रागों पर आधारित फ़िल्मी गानें सुनवा रहे हैं। युं तो रागों पर आधारित बहुत सारे गानें हैं, उनमें से हमने कुछ ऐसे गीतों को शामिल किया है जिनमें संबंधित राग की झलक बहुत ही साफ़ साफ़ मिले। आज का राग है सारंग। ऐसी मान्यता है कि राग सारंग का नाम १४-वीं शताब्दी के संगीतज्ञ सारंगदेव के नाम से पड़ा था। राग सारंग के भी कई रूप हैं। अगर हम सिर्फ़ सारंग कहें तो उसका अर्थ होता है वृंदावनी सारंग, जो काफ़ी ठाट का एक सदस्य है। दिन के मध्य भाग में गाया जानेवाला यह राग बहुत ही शांत और कर्णप्रिय है। रागमाला में सारंग को सिरि राग का पुत्र माना जाता है। सारंग राग गुरु ग्रंथ साहिब में बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसका उपयोग गुरु अर्जन में विस्तृत होता है। गुरु नानक, गुरु अमरदास, गुरु रामदास और गुरु तेग बहादुर ने इस राग के साथ शब्दों का भी प्रयोग किया और गुरु अंगद ने श्लोकों के पाठ के लिए इस राग का इस्तेमाल किया। जैसा कि हमने कहा यह राग दोपहर के समय गाया जाने वाला

मन को अति भावे सैयां....ताजा सुर ताल पर शंकर, हरिहरण, अलीशा और मर्दानी सुनिधि का धमाल

ताजा सुर ताल TST (28) दोस्तों, ताजा सुर ताल यानी TST पर आपके लिए है एक ख़ास मौका और एक नयी चुनौती भी. TST के हर एपिसोड में आपके लिए होंगें तीन नए गीत. और हर गीत के बाद हम आपको देंगें एक ट्रिविया यानी हर एपिसोड में होंगें ३ ट्रिविया, हर ट्रिविया के सही जवाब देने वाले हर पहले श्रोता की मिलेंगें २ अंक. ये प्रतियोगिता दिसम्बर माह के दूसरे सप्ताह तक चलेगी, यानी 5 ओक्टुबर के एपिसोडस से लगभग अगले 20 एपिसोडस तक, जिसके समापन पर जिस श्रोता के होंगें सबसे अधिक अंक, वो चुनेगा आवाज़ की वार्षिक गीतमाला के ६० गीतों में से पहली १० पायदानों पर बजने वाले गीत. इसके अलावा आवाज़ पर उस विजेता का एक ख़ास इंटरव्यू भी होगा जिसमें उनके संगीत और उनकी पसंद आदि पर विस्तार से चर्चा होगी. तो दोस्तों कमर कस लीजिये खेलने के लिए ये नया खेल- "कौन बनेगा TST ट्रिविया का सिकंदर" TST ट्रिविया प्रतियोगिता में अब तक - पिछले एपिसोड में सबसे पहले पहुंची सीमा जी, तीनों जवाब उन्होंने दिए पर दो सही एक गलत, दो सही जवाबों के लिए सीमा जी ने जीते ४ अंक, और अंतिम जवाब का सही जवाब देकर दिशा जी ने कमाए २ अंक, तो अभी तक है द