Skip to main content

Posts

मेघा छाए आधी रात बैरन बन गयी निंदिया....गीतकार नीरज का रचा एक बेहतरीन गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 225 सं गीत चाहे कोई भी हो, यह बना है सात स्वरों से। जी हाँ, सा रे गा मा पा धा नि। ये तो केवल अब्रीवियशन्स हैं जिनके पूरे नाम हैं शदज, रिशभ, गंधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निशाद। एक साथ मिलकर इन्हे कहा जाता है सप्तक। सप्तक तीन प्रकार के होते हैं - मंद्र (धीमी ध्वनि), मध्यम (साधारण ध्वनि), और तार (उच्च ध्वनि)। जब हम राग की बात करते हैं तो किसी भी राग के तीन dimensions होते हैं। पहला यह कि सात स्वरों में से कितने स्वरों का इस्तेमाल किया जाना है। जो राग पाँच स्वरों पर आधारित है उसे ओडव राग कहते हैं, छह स्वरों के साथ उसे शडव कहते हैं, और अगर सभी सात स्वर उसमें शामिल हैं तो उसे सम्पूर्ण राग कहते हैं। किसी राग में जिस स्वर पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाता है उसे वादी कहते हैं और उसके अगले ज़ोरदार स्वर को कहते हैं सम्वादी। जिस स्वर का इस्तेमाल नहीं हो सकता, उसे विवादी कहते हैं। तो दोस्तों, ये तो थीं रागदारी की कुछ मौलिक बातें, आइए अब आपको बताएँ कि आज हम किस राग पर आधारित गीत आपको सुनवाने के लिए लाए हैं। आज का राग है पटदीप। कुछ राग ऐसे हैं जिनका बहुत ज़्यादा इस्तेमाल संगीतकारों न

ओ दुनिया के रखवाले....रफी साहब के गले से निकली ऐसी सदा जिसे खुदा भी अनसुनी न कर पाए

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 224 सु नहरे दौर में बहुत सारी ऐसी फ़िल्में बनी हैं जिनका हर एक गीत कामयाब रहा है। ५० के दशक की ऐसी ही एक फ़िल्म रही है 'बैजु बावरा'। अब तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हमने आप को इस फ़िल्म के दो गीत सुनवा चुके हैं, " तू गंगा की मौज " और " मोहे भूल गए साँवरिया "। फ़िल्म के सभी गानें राग प्रधान हैं और नौशाद साहब ने शास्त्रीय संगीत की ऐसी छटा बिखेरी है कि ये गानें आज अमर हो गए हैं। नौशाद साहब की काबिलियत तो है ही, साथ ही यह असर है हमारे शास्त्रीय संगीत का। हमने पहले भी यह कहा है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत में कुछ ऐसी ख़ास बात है कि यह हमारे कानों को ही नहीं बल्कि आत्मा पर भी असर करती है। और शायद यही वजह है कि रागों पर आधारित गानें कालजयी बन जाते हैं। 'बैजु बावरा' के उपर्युक्त गानें क्रम से राग भैरवी और भैरव पर आधारित हैं। इस फ़िल्म के लगभग सभी गीत किसी ना किसी शास्त्रीय राग पर आधारित है। और क्यों ना हो, फ़िल्म की कहानी ही है तानसेन और बैजु बावरा की, जो शास्त्रीय संगीत के दो स्तंभ माने जाते हैं। इसलिए 'दस राग दस रंग' शृंखल

रौशन दिल, बेदार नज़र दे या अल्लाह...इसी दुआ के साथ लता दीदी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #५१ पाँ च हफ़्तों और दस कड़ियों की माथापच्ची के बाद हम हाज़िर हैं प्रश्न-पहेली के अंकों का हिसाब लेकर। इन प्रश्न-पहेलियों में मुख्यत: ३ लोगों ने हीं भाग लिया(पिछली कड़ी में मंजु जी ने बस एक सवाल का जवाब दिया..इसलिए उन्हें हम मुख्य प्रतिभागियों में नहीं गिनते)। तो ये तीन लोग थे- सीमा जी, शरद जी और शामिख जी। अगर हम ५०वीं कड़ी के अंकों को छोड़ दें तो अंकों का गणित कुछ यूँ बनता था: सीमा जी: २९.५, शरद जी: १८, शामिख जी: १० अंक। तब तक यह ज़ाहिर हो चुका था कि सीमा जी हार नहीं सकतीं और पहली विजेता वहीं हैं। शरद जी और शामिख जी के बीच ८ अंकों का फ़र्क था। और इतनी दूरी को पाटने के लिए कोई चमत्कार की हीं जरूरत थी। ५०वीं कड़ी में हमने जब बोनस प्रश्न और बोनस अंक(५ अंक) जोड़ा तब भी हमें यह ख्याल नहीं था कि इसके सहारे कोई कमाल हो सकता है। लेकिन शामिख जी छुपे रूस्तम साबित हुए। उन्होंने अपना तुरूप का इक्का तभी इस्तेमाल किया जब उसकी जरूरत थी। हर बारे दूसरे या तीसरे स्थान पर आने वाले शामिख साहब इस बार महफ़िल में सबसे पहले हाज़िर हुए। उन्होंने न सिर्फ़ नियमित प्रश्नों के सही जवाब दिये बल्कि ब

आवाज़ देकर हमें तुम बुलालो...लता रफी से स्वरों में एक बेमिसाल युगल गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 223 'द स राग दस रंग' शृंखला के अंतर्गत आज हम ने जिस राग को चुना है वह है शिवरंजनी। बहुत ही सुरीला राग है दोस्तों जिसे संध्या और रात्री के बीच गाया जाता है (लेट ईवनिंग)। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है यह राग भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए गाया जाता है। जहाँ एक तरफ़ यह राग रुमानीयत की अभिव्यक्ति कर सकता है, वहीं दूसरी तरफ़ दर्द में डूबे हुए किसी दिल की सदा बन कर भी बाहर आ सकती है। मूल रूप से शिवरंजनी का जन्म दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत में हुआ था, जो बाद में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत मे भी घुल मिल गया। दोस्तों, आप मे से कई लोगों को यह सवाल सताता होगा कि जब एक ही राग पर कई गीत बनते हैं तो फिर वो सब गानें अलग अलग क्यों सुनाई देते हैं? वो एक जैसे क्यों नहीं लगते? दोस्तों, इसका कारण यह है कि किसी एक राग पर कोई गीत तीन सप्तक (ऒक्टेव्ज़) के किसी भी एक सप्तक पर कॊम्पोज़ किया जा सकता है। और यही कारण भी है कि जिन्हे संगीत की तकनीक़ी जानकारी नहीं है, वो सिर्फ़ गीत को सुन कर यह नहीं आसानी से बता पाते कि गीत किस राग पर आधारित है। कुछ गीतों में राग को आसानी से

आ ज़माने आ, आजमाले आ...गायक मोहन की आवाज़ में है सपनों को सच करने का हौंसला

ताजा सुर ताल TST (27) दोस्तों, आज से ताजा सुर ताल यानी TST पर आपके लिए है एक ख़ास मौका और एक नयी चुनौती भी. आज से TST के हर एपिसोड में आपके लिए होंगें १ की जगह तीन नए गीत. और हर गीत के बाद हम आपको देंगें एक ट्रिविया यानी हर एपिसोड में होंगें ३ ट्रिविया, हर ट्रिविया के सही जवाब देने वाले हर पहले श्रोता की मिलेंगें २ अंक. ये प्रतियोगिता दिसम्बर माह के दूसरे सप्ताह तक चलेगी, यानी आज से अगले २० एपिसोडस तक, जिसके समापन पर जिस श्रोता के होंगें सबसे अधिक अंक, वो चुनेगा आवाज़ की वार्षिक गीतमाला के ६० गीतों में से पहली १० पायदानों पर बजने वाले गीत. इसके अलावा आवाज़ पर उस विजेता का एक ख़ास इंटरव्यू भी होगा जिसमें उनके संगीत और उनकी पसंद आदि पर विस्तार से चर्चा होगी. तो दोस्तों कमर कस लीजिये खेलने के लिए ये नया खेल- "कौन बनेगा TST ट्रिविया का सिकंदर" तो चलिए आज के इस नए एपिसोड की शुरुआत करें, दोस्तों सुजॉय अभी भी छुट्टियों से नहीं लौटे हैं, तो उनकी अनुपस्तिथि में मैं सजीव सारथी एक बार फिर आपका स्वागत करता हूँ. इस वर्ष लगभग ४ महीनों तक सिनेमा घरों के मालिकों और फिल्म निर्माताओं के ब

छुपालो यूं दिल में प्यार मेरे कि जैसे मंदिर में लौ दिए की...हर सुर पवित्र हर शब्द पाक

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 222 रा ग यमन एक ऐसा राग है जिसकी उंगली थाम हर संगीत विद्यार्थी शास्त्रीय संगीत सीखने के मैदान में उतरता है। इसके पीछे भी कारण है। राग यमन के असंख्य रूप हैं, कई नज़रिए हैं। यमन के मूल रूप को आधार बना कर बहुत से राग रागिनियाँ बनाई जा सकती है। यह राग मौका देती है संगीतज्ञों को नए नए प्रयोग करने के लिए, संगीत के नए नए आविष्कार करने के लिए। आज भी शास्त्रीय संगीत के गुरु अपने छात्रों को सब से पहले राग यमन पर दक्षता हासिल करने की सलाह दिया करते हैं क्योंकि एक बार यमन सिद्धहस्थ हो जाए तो बाक़ी के राग बड़ी आसानी से रप्त हो जाएँगे। वो कहते हैं ना कि "एक साधे सब साधे", बस वही बात है, एक बार यमन को मुट्ठी में कर लिया तो आप इस सुर संसार पर राज कर सकते हैं। जैसा कि अभी हमने आपको बताया कि राग यमन के बहुत सारे रूप हैं, तो उनमें एक महत्वपूर्ण है राग यमन कल्याण। आज 'दस राग दस रंग' में इसी राग की बारी। इस राग पर फ़िल्मों में असंख्य गीत बने हैं, जिनमें से एक बेहद सुरीला और उत्कृष्ट गीत हम चुन कर लाए हैं। यह गीत फ़िल्म 'ममता' का है, जिसे रोशन के संगीत में

रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (17)

दोस्तों कुछ चीजें ऐसी होती है जो हमारी जिन्दगी में धीरे-धीरे कब शामिल हो जाती है हमें पता ही नहीं चलता. एक तरह से इन चीजों का न होना हमें बेचैन कर देता है. जैसे सुबह एक प्याली चाय हो पर इन चाय की चुसकियों के साथ अखबार न मिले, फिर देखिए हम कितना असहज महसूस करते है. देखिए ना, आपका और हमारा रिश्ता भी तो रविवार सुबह की काँफी के साथ ऐसा ही बन गया है. अगर रविवार की सुबह हो लेकिन हमें हिन्दयुग्म पर काँफी के साथ गीत-संगीत सुनने को न मिले तो पूरा दिन अधूरा सा रहता है पता ही नहीं लगता कि आज रविवार है. यही नहीं काँफी का जिक्र भर ही हमारे दिल के तार हिन्दयुग्म से जोड़ देता है. इसीलिये हम भी अपने पाठकों और श्रोताओं के प्यार में बँधकर खिंचे चले आते हैं कुछ ना कुछ नया लेकर. आज मै आपके साथ अपनी कुछ यादें बाँटती हूँ. मेरी इन यादों में गीत-संगीत के प्रति मेरा लगाव भी छिपा है और गीतों को गुनगुनाने का एक अनोखा तरीका भी. अक्सर मै और मेरी बहनें रात के खाने के बाद छ्त पर टहलते थे. हम कभी पुराने गीतों की टोकरी उड़ेलते तो कभी एक ही शब्द को पकड़कर उससे शुरु होने वाले गानों की झड़ी लगा देते थे. बहुत दिनों बाद आज