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क्या टूटा है अन्दर अन्दर....इरशाद के बाद महफ़िल में गज़ल कही "शहज़ाद" ने...साथ हैं "खां साहब"

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #४८ पि छली कड़ी में पूछे गए दो सवालों में से एक सवाल था "गुलज़ार" साहब के उस मित्र का नाम बताएँ जिसने गुलज़ार साहब के बारे में कहा था कि "कहीं पहले मिले हैं हम"। जहाँ तक हमें याद है हमने महफ़िल-ए-गज़ल की ३६वीं कड़ी में उन महाशय का परिचय "मंसूरा अहमद" के रूप में दिया था। जवाब के तौर पर सीमा जी, शरद जी और शामिख जी में बस सीमा जी ने हीं "मंसूरा अहमद" लिखा, बाकियों ने "मंसूरा" को शायद टंकण में त्रुटि समझकर "मंसूर" कर दिया। चाहते तो हम "मंसूर" को गलत उत्तर मानकर अंकों में कटौती कर देते, लेकिन हम इतने भी बुरे नहीं। इसलिए आप दोनों को भी पूरे अंक मिल रहे हैं। लेकिन आपसे दरख्वास्त है कि आगे से ऐसी गलती न करें। वैसे अगर आपने कहीं "मंसूर अहमद" पढ रखा है तो कृप्या हमें भी अवगत कराएँ ताकि हमें उनके बारे में और भी जानकारी मिले। अभी तो हमारे पास उन कविताओं के अलावा कुछ नहीं है। हाँ तो इस बात को मद्देनज़र रखते हुए पिछली कड़ी के अंकों का हिसाब कुछ यूँ बनता है: सीमा जी: ४ अंक, शरद जी: २ अंक, शामिख जी: १ अंक। अ

अब कोई जी के क्या करे जब कोई आसरा नहीं...दर्द में डूबी लता की आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 212 "कु छ लोगों के बारे में कहा जाता है कि फ़लाना व्यक्ति इतनी भाग्यशाली है कि मिट्टी को भी हाथ लगाए तो वह सोना बन जाती है। कुमारी लता मंगेशकर के लिए यह बात शत प्रतिशत सही बैठती है। कितनी ही नगण्य संगीत रचना क्यों न हो, लता जी की आवाज़ उसे ऊँचा कर देती है।" दोस्तों, ये अल्फ़ाज़ थे गुज़रे दौर के बहुत ही प्रतिभाशाली और सुरीले संगीतकार एस. एन त्रिपाठी साहब के। 'मेरी आवाज़ ही पहचान है' शृंखला की दूसरी कड़ी में आप सभी का हम हार्दिक स्वागत करते हैं। दोस्तों, अगर मदन मोहन और लता जी के साथ की बात करें तो आम धारणा यही है कि मदन साहब ने लता जी को पहली बार सन् १९५० की फ़िल्म 'अदा' में गवाया था और तभी से उनकी जोड़ी जमी। जी हाँ यह बात सच ज़रूर है, लेकिन क्या आपको पता है कि सन् १९४८ में लता जी और मदन मोहन ने साथ साथ एक युगल गीत रिकार्ड करवाया था? चलिए आप को ज़रा तफ़सील से आज बताया जाए। हुआ युं कि मास्टर विनायक ने लता को काम दिलाने के लिए संगीतकार ग़ुलाम हैदर साहब के पास ले गए। हैदर साहब लता की आवाज़ और गायकी के अंदाज़ से इतने प्रभावित हुए कि वो उसे

ऑस्कर जीत के बाद लौटे हैं रहमान मगर इस बार रंग है "ब्लू"

ताजा सुर ताल (24) ताजा सुर ताल में आज में आज सुनिए हिंदुस्तान की अब तक की सबसे महंगी फिल्म "ब्लू" का एक गुस्ताख गीत सुजॉय - सजीव, लगता है कि अब वह वक़्त आ गया है कि हमारे यहाँ भी पारंपरिक फ़िल्मी कहानियों से आगे निकलकर हॉलीवुड की तरह नए नए विषयों पर फ़िल्में बनने लगी हैं। सजीव - किस फ़िल्म की तरफ़ तुम्हारा इशारा है सुजॉय? सुजॉय - अक्षय कुमार की नई फ़िल्म 'ब्लू'। इस ऐक्शन फ़िल्म की कहानी केन्द्रित है समुंदर के नीचे छुपे हुए ख़ज़ाने की जिसकी रखवाली कर रहे हैं शार्क मछलियाँ। अमेरिकी लेखक जोशुआ लुरी और ब्रायान सुलिवन ने इस कहानी को लिखा है और गायिका कायली मिनोग ने भी अतिथी कलाकार के रूप में इस फ़िल्म में एक गीत गाया है जो उन्ही पर फ़िल्माया गया है। सजीव - हाँ, मैने भी सुना है इस फ़िल्म के बारे में। क्यों ना थोड़ी सी जानकारी और दी जाए इस फ़िल्म से संबंधित! कहानी ऐसी है कि सागर और सैम दो भाई हैं, जिन्हे गुप्तधन ढ़ूंढने का ज़बरदस्त शौक है। सागर की पत्नी मोना के साथ वे बहामा के लिए निकल पड़ते हैं समुंदर के २०० फ़ीट नीचे छुपे किसी ख़ज़ाने को ढ़ूंढने के लिए। लेकिन उनकी मुलाक