Skip to main content

Posts

जीवन से भरी तेरी आँखें....काव्यात्मक शैली में लिखा था इन्दीवर ने इस गीत को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 204 ल ता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, और आशा भोंसले के बाद, अदा जी की अगली फ़रमाइश में है किशोर कुमार की आवाज़। वैसे तो इन चारों गायकों ने इतने सारे मशहूर गानें गाए हैं कि किसी एक गीत को चुनना नामुमकिन सी बात हो जाती है। फिर भी अदा जी ने इनके एक एक गीत ऐसे चुन कर हमें भेजे हैं कि भई वाह! आप के पसंद की दाद देनी पड़ेगी। हर एक गीत लाजवाब है अपने अपने अंदाज़ का। तो आज जैसा कि हम ने कहा, किशोर दा की आवाज़ की बारी है, जो आवाज़ ज़िंदगी से हारे हुए लोगों को वापस जीने के लिए मजबूर कर देती है। जी हाँ, आज का गीत है फ़िल्म 'सफ़र' का, "जीवन से भरी तेरी आँखें मजबूर करे जीने के लिए, सागर भी तरसते रहते हैं तेरे रूप का रस पीने के लिए"। आँखों की ख़ूबसूरती पर असंख्य गीत बने हैं और आज भी बन रहे हैं। लेकिन इस गीत में जो काव्य है, जो जीवन दर्शन है, शॄंगार रस और जीवन दर्शन का ऐसा समावेश हर गीत में सुनाई नहीं देता। गीतकार इंदीवर का शुमार उन गीतकारों में होता है जिनके अनमोल गीत निराशा भरे मन में आशा का संचार करते हैं, उदास ज़िंदगी को जीवंत कर देते है, और इस दुनिया को समझने

बज उठेंगीं हरे कांच की चूडियाँ....आशा की आवाज़ में एक चहकता नग्मा...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 203 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप सुन रहे हैं स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा' जी के फ़रमाइशी नग़में। आज बारी है उनके पसंद का तीसरा गीत सुनने की। आशा भोंसले की आवाज़ में यह गीत है फ़िल्म 'हरे कांच की चूड़ियाँ' का शीर्षक गीत "बज उठेंगी हरे कांच की चूड़ियाँ"। यह गीत बहुत ज़्यादा प्रचलित गीतों में नहीं गिना जाता है, और शायद हम में से बहुत लोगों को यह गीत कभी कभार ही याद आता होगा। ऐसे में इस सुंदर गीत का ध्यान हम सब की ओर आकृष्ट करने के लिए हम अदा जी का शुक्रिया अदा किए बग़ैर नहीं रह सकते। 'हरे कांच की चूड़ियाँ' १९६७ की फ़िल्म थी। नायिका प्रधान इस फ़िल्म में नैना साहू ने मुख्य भूमिका निभायी और उनके साथ में थे विश्वजीत, नासिर हुसैन, सप्रू, और राजेन्द्र नाथ प्रमुख। फ़िल्म की मूल कहानी कुछ इस तरह की थी कि मोहिनी (नैना साहू) प्रोफ़ेसर किशनलाल (नासिर हुसैन) की बेटी है। मोहिनी मेडिकल की छात्रा है जो सभी के साथ खुले दिल से मिलती जुलती है। एक बार वो बेहोश हो जाने के बाद जब डाक्टरी जाँच करायी जाती है तो डाक्टर उसे गर्भवती करार देता है। कि

एक कोने में गज़ल की महफ़िल, एक कोने में मैखाना हो..."गोरखपुर" के हर्फ़ों में जाम उठाई "पंकज" ने

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #४५ पू री दो कड़ियों के बाद "सीमा" जी ने अपने पहले हीं प्रयास में सही जवाब दिया है। इसलिए पहली मर्तबा वो ४ अंकों की हक़दार हो गई हैं। "सीमा" जी के बाद हमारी "प्रश्न-पहेली" में भागेदारी की शामिख फ़राज़ ने। हुज़ूर, इस बार आपने सही किया. पिछली बार की तरह ज़ेरोक्स मशीन का सहारा नहीं लिया, इसलिए हम भी आपके अंकों में किसी भी तरह की कटौती नहीं करेंगे। लीजिए, २ अंकों के साथ आपका भी खाता खुल गया। आपके लिए अच्छा अवसर है क्योंकि हमारे नियमित पहेली-बूझक शरद जी तो अब धीरे-धीरे लेट-लतीफ़ होते जा रहे हैं, इसलिए आप उनके अंकों की बराबरी आराम से कर सकते हैं। बस नियमितता बनाए रखिए। "शरद" जी, यह क्या हो गया आपको। एक तो देर से आए और ऊपर से दूसरे जवाब में कड़ी संख्या लिखा हीं नहीं। इसलिए आपका दूसरा जवाब सही नहीं माना जाएगा। इस लिहाज़ से आपको बस .५ अंक मिलते हैं। कुलदीप जी, हमने पिछली महफ़िल में हीं कहा था कि सही जवाब देने वाले को कम से कम १ अंक मिलना तो तय है, इसलिए जवाब न देने का यह कारण तो गलत है। लगता है आपने नियमों को सही से नहीं पढा है। अभी भी देर

बा होशो-हवास में दीवाना ये आज वसीयत करता है...फ़िल्मी गीतों में नए प्रयोगों के सूत्रधार रहे आनंद बख्शी साहब

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 202 स्व प्न मंजूषा शैल 'अदा' जी की पसंद का दूसरा गीत आज पेश-ए-ख़िदमत है फ़िल्म 'नाइट इन लंदन' से, "बा होश-ओ-हवास मैं दीवाना, ये आज वसीयत करता हूँ, ये दिल ये जान मिले तुम को, मैं तुम से मोहब्बत करता हूँ". ६० के दशक में शैलेन्द्र, हसरत जयपुरी, शंकर जयकिशन और मोहम्मद रफ़ी साहब की टीम ने एक से एक कामयाब गीत हमें दिए हैं। इस टीम के गीतों का एक अलग ही अंदाज़ हुआ करता था। ऐसे में जब अगली पीढ़ी के संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने फ़िल्म जगत में क़दम रखा, तो वे शंकर जयकिशन से मुतासिर होने की वजह से कई गानें ऐसे बनाए जिनमें शंकर जयकिशन का स्टाइल साफ़ झलकता है। रफ़ी साहब से गवाया गया और आनंद बक्शी साहब से लिखवाया गया फ़िल्म 'नाइट इन लंदन' का प्रस्तुत गीत उन्ही गीतों में से एक है। इस फ़िल्म का एक दूसरा गीत "नज़र न लग जाए किसी की राहों में" भी इसी कतार में शामिल है। किस तरह से एक पीढ़ी अपनी कला को अगली पीढ़ी को सौंप देती है, इस फ़िल्म के गानें उसी के मिसाल हैं। फ़िल्म 'नाइट इन लंदन' का निर्माण हुआ था सन् १९६७ में कप

रामधारी सिंह दिनकर की कविता गाइए और संगीतबद्ध कीजिए और जीतिए रु 7000 के नग़द इनाम

गीतकास्ट प्रतियोगिता की 'राष्ट्रकवि-शृंखला' सर्वप्रथम सभी पाठकों/श्रोताओं को हिन्दी-दिवस की बधाइयाँ। आज इस विशेष मौके पर हम गीतकास्ट प्रतियोगिता में एक नई शृंखला की शरूआत कर रहे हैं। हिन्द-युग्म ने पिछले चार महीनों में छायावादी युगीन 4 कवियों की एक-एक कविताओं को संगीतबद्ध करवाया। कल ही हमने महादेवी वर्मा की कविता 'तुम जो आ जाते एक बार' का संगीतबद्ध रूप ज़ारी किया था। दूसरी शृंखला में हमने राष्ट्रकवियों की एक-एक कविता को संगीतबद्ध/स्वरबद्ध करवाने का निश्चय किया है। सितम्बर महीने में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती मानई जाती है, तो हमने सोचा कि क्यों न उन्हीं से शुरूआत की जाय। हमारे एक प्रतिभागी रफ़ीक़ शेख़ की शिकायत थी कि हम इनाम स्वरूप बहुत कम धनराशि देते हैं। इसलिए इस बार से हम उसे भी बढ़ा रहे हैं। आज हिन्दी दिवस पर यह बताते हुए हमें बहुत खुशी हो रही है कि इनाम की राशि इस माह से रु 7000 होगी , पहले यह राशि रु 4000 हुआ करती थी। इस कड़ी के प्रायोजक हैं कमल किशोर सिंह जो कि रिवरहेड, न्यूयार्क में रहते हैं। पेशे से डॉक्टर हैं। हिन्दी तथा भोजपुरी में कविताएँ लिखते

हम हैं मता-ए-कूचा ओ बाज़ार की तरह....फ़िल्मी ग़ज़लों में अग्रणी कही जा सकती है ये रचना

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 201 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' पर आज से छा रहा है फ़रमाइशी रंग एक बार फिर से। शरद तैलंद जी के बाद अब 'ओल्ड इज़ गोल्ड पहेली प्रतियोगिता' के दूसरे विजेयता स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा' जी के पसंद के ५ गीतों को सुनने की बारी आ गई है। आज से अगले ५ दिनों तक आप सुनेंगे अदा जी के चुने हुए वो नग़में जो उनके दिल के बहुत करीब हैं, और हमें पूरा यकीन है कि ये गानें आप सभी को उतने ही पसंद आएँगे जितने कि हमें आए हैं। सच पूछिए तो इन गीतों के बारे में लिखते हुए भी मुझे उतनी ही ख़ुशी का अनुभव हो रहा है। तो अदा जी की पसंद का पहला गाना जो हमने चुना है वह है फ़िल्म 'दस्तक' का। जी हाँ, १९७० की वही फ़िल्म 'दस्तक' जिसके लिए संगीतकार मदन मोहन को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। मदन मोहन के साथ अक्सर ऐसा हुआ है कि उनकी फ़िल्में वाणिज्यिक दृष्टि से ज़्यादा चली नहीं, लेकिन उनके गीत संगीत ने इतिहास रच दिया। यह फ़िल्म भी उन्ही में से एक है। दोस्तों, इस फ़िल्म का एक गीत "माई री मैं का से कहूँ पीर अपने जिया की" हमने आप को 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की चौथी कड़

महादेवी वर्मा की कविता 'जो तुम आ जाते एक बार' का संगीतबद्ध रूप

गीतकास्ट प्रतियोगिता- परिणाम-4: जो तुम आ जाते एक बार हर वर्ष 14 सितम्बर का दिन हिन्दी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। हिन्दी सेवी संस्थाएँ तरह-तरह के सांस्कृतिक और साहित्यिक आयोजन करती हैं। सरकारी उपक्रम तो हिन्दी सप्ताह, हिन्दी पखवाड़ा व हिन्दी मास अभियान चलाने जैसी बातें करते हैं। लेकिन हम ऐसा कुछ नहीं कर रहे हैं। बल्कि इससे एक दिन पहले महीयसी महादेवी वर्मा की कविता 'जो तुम आ जाते एक बार' का संगीतबद्ध संस्करण जारी कर रहे हैं। हिन्द-युग्म डॉट कॉम अपने आवाज़ मंच पर गीतकास्ट प्रतियोगिता के माध्यम से हिन्दी के स्तम्भ कवियों की एक-एक कविताओं को संगीतबद्ध/स्वरबद्ध करने की प्रतियोगिता आयोजित करता है। इसमें हमने शुरूआती शृंखला के तौर पर छायवादी युगीन कवियों की कविताओं को स्वरबद्ध करने की प्रतियोगिता रखी। जिसके अंतर्गत अब तक जयशंकर प्रसाद की कविता ' अरुण यह मधुमय देश हमारा' , सुमित्रानंदन पंत की कविता 'प्रथम रश्मि' और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता 'स्नेह निर्झर बह गया है' को संगीतबद्ध किया जा चुका है। आज हम छायावादी युग की अंतिम कड़ी यानी महादेवी वर