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महादेवी वर्मा की विरह-कविता गायें और स्वरबद्ध करें

हिन्द-युग्म ने मई 2009 से गीतकास्ट प्रतियोगिता के माध्यम से महाकवियों की कविताओं को संगीतबद्ध करने की परम्परा शुरू की है। इस क्रम में सबसे पहले हमने हिन्दी कविता के स्वर्णिम काल छायावादी युग के चार स्तम्भ कवियों की एक-एक कविता को संगीतबद्ध करवाने का संकल्प लिया है। उल्लेखनीय है कि हमने चार में से तीन कवियों ( जयशंकर प्रसाद , सुमित्रा नंदन पंत , सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ) की एक-एक कविता को संगीतबद्ध करने की प्रतियोगिता का सफल आयोजन कर भी लिया है। आज हम महीयसी महादेवी वर्मा की कविता के लिए संगीतबद्ध प्रविष्टियाँ भेजने की उद्‍घोषणा लेकर उपस्थित हैं। महादेवी वर्मा को विरह की कवयित्री भी कहा जाता है। हमने इनकी एक विरह और मिलन की कल्पना से उपजने वाले भावों से पिरोई कविता 'जो तुम आ जाते एक बार' को संगीतबद्ध करवाने का निर्णय लिया है। इस कड़ी के प्रायोजक है डैलास, अमेरिका के अशोक कुमार हैं जो पिछले 30 सालों से अमेरिका में हैं, आई आई टी, दिल्ली के प्रोडक्ट हैं। डैलास, अमेरिका में भौतिकी के प्रोफेसर हैं, अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति के आजीवन सदस्य हैं। और हिन्दी-सेवा के लिए डैलास में

हम मतवाले नौजवान मंजिलों के उजाले...युवा दिलों की धड़कन बनी किशोर कुमार की आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 168 ज न्म से लेकर मृत्यु तक आदमी की ज़िंदगी उसे कई पड़ावों से पार करवाता हुआ अंजाम की ओर ले जाती है। इन पड़ावों में एक बड़ा ही सुहाना, बड़ा ही आशिक़ाना, और बड़ा ही मस्ती भरा पड़ाव होता है, जिसे हम जवानी कहते हैं। ज़िंदगी में कुछ बड़ा बनने का ख़्वाब, दुनिया को कुछ कर दिखाने का इरादा, अपने परिवार के लिए बेहतर से बेहतर ज़िंदगी की चाहत हर जवाँ दिल की धड़कनों में बसी होती है। साथ ही होता है हला-गुल्ला, ढ़ेर सारी मस्ती, और बिन पीये ही चढ़ता हुआ नशा। नशा आशिक़ी का, प्यार मोहब्बत का। जी हाँ, जवानी के जस्बों की दास्तान आज सुनिए किशोर दा की सदा-जवाँ आवाज़ में। यह है फ़िल्म 'शरारत' का गीत "हम मतवाले नौजवाँ मंज़िलों के उजाले, लोग करे बदनामी कैसे ये दुनियावाले". सन् १९५९ में बनी फ़िल्म 'शरारत' के निर्देशक थे हरनाम सिंह रावल और मुख्य कलाकार थे किशोर कुमार, मीना कुमारी, राजकुमार और कुमकुम। आप को याद होगा 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में इससे पहले हमने आप को किशोर कुमार और मीना कुमारी पर फ़िल्माया हुआ फ़िल्म 'नया अंदाज़' का "मेरी नींदों में त

खुदाया तूने कैसे ये जहां सारा बना डाला.....गुलाम अली की मार्फ़त पूछ रहे हैं आनंद बख्शी

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #३७ दि शा जी की पसंद की दूसरी गज़ल लेकर आज हाज़िर हैं हम। आज के अंक में जो गज़ल हम आप सबको सुनवाने जा रहे हैं वह वास्तव में तो एक फिल्म से ली हुई है लेकिन हमारे आज के फ़नकार ने इस गज़ल को मंच से इतनी बार पेश किया है कि लोग अब इसे गैर-फ़िल्मी गज़ल मानने लगे हैं। इस गज़ल की गुत्थी इतनी उलझी हुई है कि एकबारगी तो हमें भरोसा हीं नहीं हुआ कि इसे माननीय अनु मलिक साहब ने संगीतबद्ध किया होगा। फिर हमने अंतर्जाल की खाक छान दी ताकि हमें वास्तविक संगीतकार की जानकारी मिल जाए। ज्यादातर जगहों पर अनु मलिक का हीं नाम था ,लेकिन कुछ लोग अब भी यह दावा करते हैं कि इसे गुलाम अली(हमारे आज के फ़नकार) ने खुद हीं संगीतबद्ध किया है। वैसे हमारी खोज को तब विराम मिला जब गुलाम अली साहब का एक साक्षात्कार हमारे हाथ लगा। उन्होंने उस साक्षात्कार में स्वीकार किया है कि इस गज़ल में संगीत अनु मलिक का हीं है। स्क्रीन इंडिया के एक इंटरव्यू में उनसे जब यह पूछा गया कि अनु मलिक का कहना है कि महेश भट्ट की फ़िल्म "आवारगी" की एक गज़ल "चमकते चाँद को टूटा हुआ तारा बना बैठा" को उन्होंने हीं कम्पोज़

बड़ी मुश्किल से मगर दुनिया में दोस्त मिलते है...कितना सही कहा था शायर ने किशोर में स्वरों में बसकर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 167 "फू लों से ख़ूबसूरत कोई नहीं, सागर से गहरा कोई नहीं, अब आप की क्या तारीफ़ करूँ, दोस्ती में आप जैसा प्यारा कोई नहीं"। जी हाँ, आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में दोस्त और दोस्ती की बातें। एक अच्छा दोस्त जहाँ एक ओर आप की ज़िंदगी को सफलता में बदल सकता है, वहीं बुरी संगती आदमी को बरबादी की तरफ़ धकेल देती है। इसलिए हर आदमी को अपने दोस्त बहुत सावधानी से चुनने चाहिए। वो बड़े क़िस्मत वाले होते हैं जिन्हे ज़िंदगी में सच्चे दोस्त नसीब होते हैं। कुछ इसी तरह का फ़लसफ़ा आज किशोर दा हमें सुना रहे हैं 'दस रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़' के अंतर्गत। "दीये जलते हैं, फूल खिलते हैं, बड़ी मुश्किल से मगर दुनिया में दोस्त मिलते हैं". यूँ तो दोस्ती पर किशोर दा ने कई हिट गीत गाये हैं जैसे कि फ़िल्म 'शोले' में "ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे", फ़िल्म 'दोस्ताना' में "बने चाहे दुश्मन ज़माना हमारा, सलामत रहे दोस्ताना हमारा", फ़िल्म 'याराना' मे "तेरे जैसा यार कहाँ", आदि। लेकिन इन सभी गीतों को पीछे छोड़ देता है फ़िल्म

स्नेह निर्झर बह गया है कुछ यूँ संगीतबद्ध हुआ

गीतकास्ट प्रतियोगिता- परिणाम-3: स्नेह-निर्झर बह गया है देखते-देखते आज वह समय भी आ गया, जब हम गीतकास्ट प्रतियोगिता के तीसरे अंक के परिणाम प्रकाशीत व प्रसारित कर रहे हैं। मई महीने में शुरू हुई इस प्रतियोगिता का एक मात्र उद्देश्य यही था कि हिन्दी कविता के प्रतिमानों या यूँ कह लें आधार-स्तम्भों को संगीत से जोड़ा जाये ताकि नई पीड़ी भी उन्हें गुनगुना सके और अपने मन के आँगन में एक स्थान दे सके। इस प्रतियोगिता की शुरूआती दो कड़ियाँ 'अरुण यह मधुमय देश हमारा' और 'प्रथम रश्मि ' बहुत सफल रहीं। श्रोताओं ने बहुत पसंद किया। प्रतिभागिता बढ़ी। उसी का फल है कि तीसरे अंक में जब हमने निराला की एक मुश्किल कविता ' स्नेह-निर्झर बह गया है' चुना तो भी इसमें 18 प्रविष्टियाँ प्राप्त हुईं। हमने तीसरे अंक के लिए प्रविष्टि जमा करने की आखिरी तिथि रखी थी 31 जुलाई 2009। 30 जुलाई तक हमें मात्र 1 प्रविष्टि मिली थी, लेकिन 31 तारीख को यह बढ़कर 18 हो गईं। कविता मुश्किल तो थी ही, लेकिन हम पिछले 3 अंकों से एक और परेशानी का सामना कर रहे हैं, वह यह कि अलग-अलग प्रकाशन की पुस्तक में कविता की पंक्तियों

किसका रस्ता देखे ऐ दिल ऐ सौदायी...दर्द ऐसा था किशोर की आवाज़ में कि सुनते ही आंख भर आये

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 167 'द स रूप ज़िंदगी के और एक आवाज़'। दोस्तों, इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल सज रही है किशोर कुमार के गाये ज़िंदगी के अलग अलग रंगों के गीतों से। आज की कड़ी का जो रंग है, वह ज़रा दर्दीला है। हमेशा मुस्कुराने वाले किशोर दा के इस चेहरे के पीछे एक तन्हा दिल भी था जो उनके दर्द भरे गीतों से छलक पड़ता और सुननेवालों को रुलाये बिना नहीं छोड़ता। गुदगुदाने वाले किशोर ने जब कुछ संजीदे फ़िल्मों का निर्माण किया तो उनमें उनका उदासीन चेहरा लोग पचा नहीं पाये, लिहाज़ा उनकी सब संजीदा फ़िल्में असफल रहीं। लेकिन उनका वह दर्द जब उनके गीतों से बाहर फूट पड़ा तो लोगों ने उन्हे पलकों पर बिठा लिया। उनके गाये दर्द भरे गीत कुछ इस क़दर मशहूर हैं कि म्युज़िक कंपनियाँ समय समय उनके दर्दीले गीतों के कैसेट्स व सीडीज़ जारी करते रहते हैं। ख़ैर, आज इस रंग के जिस गीत को हमने चुना है वह है 'जोशीला' फ़िल्म का, "किसका रस्ता देखे ऐ दिल ऐ सौदाई, मीलों है ख़ामोशी, बरसों हैं तन्हाई". १९७३ की इस फ़िल्म में देव आनंद नायक थे और अभिनेत्रियाँ थीं हेमा मालिनी व राखी। ५० के

रविवार सुबह की कॉफी और आपकी पसंद के गीत (12)

जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं वह हृदय नहीं है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं साहित्य, कला और संगीत ऐसे तीन स्तम्भ हैं जो हमारे देश की आन, बान और शान का प्रतीक हैं. इन तीनों ही के योगदान ने देश को सफलता के उच्च शिखर पर पहुँचाया है. इतिहास गवाह है कि साहित्य और संगीत के द्वारा हमारे साहित्यकारों ने देश के लोगों को जागरूक करने का काम किया है. चाहें गुलामी की जंजीरों से आजाद होने की प्रेरणा हो या फिर टुकडों में बँटे देश को जोड़ने का प्रयास, इन साहित्यकारों ने अपना योगदान बखूबी दिया है. इनकी कलम से निकले शब्दों ने पत्थर हृदयों में भी स्वाभिमान और देशप्रेम का जज़्बा पैदा कर दिया. कहते है कि "जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुचे कवि". अर्थात कवियों की कल्पना से कोइ भी अछूता नहीं है. जो काम अन्य लोगों को असंभव दिखा वो कार्य इन कवियों ने अपनी कलम की ताकत के द्वारा कर दिखाया. भारतीय रचनाकार बंकिमचंद्र चटर्जी को कौन नहीं जानता. उनके द्वारा लिखे "वन्दे मातरम" गीत ने करोड़ों भारतीयों के सीने में अपनी जन्मभूमि के प्रति कर्तव्य और प्रेम के भाव को जागृत कर दिया. यही