हाल ही में हमने आपको एस. एच. बिहारी के बारे में विस्तार से बताया था कि किस तरह से उन्हे एस. मुखर्जी ने १९५४ की फ़िल्म 'शर्त' में पहला बड़ा ब्रेक दिया था। आगे चलकर उनकी कई और फ़िल्मों में बिहारी साहब ने गीत लिखे, और सिर्फ़ लिखे ही नहीं, उन्हे कामयाबी की बुलंदी तक भी पहुँचाया। ऐसी ही एक फ़िल्म थी 'एक मुसाफ़िर एक हसीना'. जॉय मुखर्जी और साधना अभिनीत इस फ़िल्म में ओ. पी. नय्यर का संगीत था। आशा भोंसले और रफ़ी साहब के गाये इस फ़िल्म के तमाम युगल गीतों में तीन गीत जो सबसे ज़्यादा लोकप्रिय हुए, वो थे "मैं प्यार का राही हूँ", "आप युँही अगर हम से मिलती रहीं, देखिये एक दिन प्यार हो जायेगा", और तीसरा गीत था "बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी, मेरी ज़िंदगी में हुज़ूर आप आये". यूँ तो एस. एच. बिहारी ने ही इस फ़िल्म के अधिकतर गानें लिखे, लेकिन "आप युँही अगर" वाला गीत राजा मेहंदी अली ख़ान ने लिखा था। आज इस महफ़िल में सुनिये तीसरा युगल गीत। फ़िल्म की कहानी कुछ इस तरह थी कि शादी की रात साधना के घर आतंकवादियों का हमला होता है, जिससे दुल्हन बनी साधना को शादी से पहले ही अपनी रक्षा के लिए घर से भाग जाना पड़ता है। भटकते हुए उसे मिल जाता है एक नौजवान लड़का (जॉय मुखर्जी) जो पीड़ित है ऐम्नेसिया, यानी कि याद्दाश्त जाने की बीमारी से। साधना उसे कई विपत्तियों से बचाती है जिससे कि वो उस पर पूरी तरह से निर्भर हो जाता है, और तभी फ़िल्म में यह गीत आता है कि "बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी, मेरी ज़िंदगी में हुज़ूर आप आये"। दोनों में प्यार होता है और इस तरह से फ़िल्म की कहानी आगे बढ़ती है। लेकिन क्या होता है जब नायक की याद्दाश्त वापस आ जाती है तो? यह तो आप ख़ुद ही देख लीजिएगा इस फ़िल्म में।
प्रस्तुत गीत का जो भाव है इस भाव पर समय समय पर कई गीत हमारे गीतकारों ने लिखे हैं। फ़िल्म 'हमसाया' में ही नय्यर साहब ने ऐसा ही एक गीत काम्पोज़ किया था शेवन रिज़्वी का लिखा हुआ और आशा-रफ़ी का ही गाया हुआ, "तेरा शुक्रिया के तूने गले फिर लगा लिया है, मैने दिल के टुकड़े चुन कर नया दिल बना लिया है"। इसके बाद भी कई फ़िल्मों में शुक्रिया और मेहरबानी पर गानें शामिल हुए हैं, लेकिन इनमें से जो सबसे ज़्यादा 'हिट' हुआ था, वह था शाहरूख़ ख़ान की फ़िल्म 'डुप्लीकेट' का गीत "मेरे महबूब मेरे सनम, शुक्रिया मेहरबानी करम"। दोस्तों, हम भी आज के इस प्रस्तुत गीत के बहाने आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करते हैं कि आप इतने दिनों से इस शृंखला को पसंद कर रहे हैं, इसमें सक्रीय रूप से भाग ले रहे हैं, और दिन-ब-दिन इसे आगे बढ़ाते जा रहे हैं। अगर इस शृंखला को और भी ज़्यादा बेहतर और लोकप्रिय बनाने के लिए आपके दिल में कोई विचार या सुझाव हो तो बेझिझक हमसे कहिएगा। फिलहाल सुनिये आज का यह 'गोल्डन' गीत।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. एक बहतरीन दर्दीला नगमा.
२. इसी फिल्म के एक अन्य गीत में "बरेली" का जिक्र हुआ है.
३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"शाम".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी ने १८ अंक प्राप्त कर बढ़त बरकरार रखी है, बधाई हो जनाब, पर स्वप्न जी आप भी बिलकुल पीछे नहीं है. जम कर मुकाबला कीजिये. दिशा जी आप शायद पहली बार आई हैं, जवाब तो सही है पर ज़रा इन धुरंधरों से अधिक फुर्ती दिखाईये तो बात बने. राज जी और निर्मला जी आपके लिए बस यही कहेंगें -"रहना तू है जैसा तू...". शरद जी आपने सही कहा, इन गीतों का नशा ही ऐसा है, हम तो यही चाहेंगें कि ये खुमार कभी न उतरे.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी