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रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत (8)

केतन मेहता एक सुलझे हुए निर्देशक हैं. मिर्च मसाला जैसी संवेदनशील फिल्म बनाकर उच्च कोटि के निर्देशकों में अपना नाम दर्ज कराने के बाद १९९३ में केतन लेकर आये -"माया मेमसाब". एक अनूठी फिल्म जो बेहद बोल्ड अंदाज़ में एक औरत के दिल की गहराइयों में उतरने की कोशिश करती है. फिल्म बहुत जटिल है और सही तरीके से समझने के लिए कम से कम दो बार देखने की जरुरत पड़ सकती है एक आम दर्शक को पर यदि फिल्म क्राफ्ट की नज़र से देखें तो इसे एक दुर्लभ रचना कहा जा सकता है. हर किरदार नापा तुला, सच के करीब यहाँ तक कि एक फ़कीर के किरदार, जो कि रघुवीर यादव ने निभाया है के माध्यम से भी सांकेतिक भाषा में बहुत कुछ कहा गया है फिल्म में. माया हिंदी फिल्मों की सामान्य नायिकाओं जैसी नहीं है. वह अपने तन और मन की जरूरतों को खुल कर व्यक्त करती है. वो मन को "बंजारा' कहती है और शरीर की इच्छाओं का दमन भी नहीं करती. वह अपने ही दिल के शहर में रहती है, थोडी सी मासूम है तो थोडा सा स्वार्थ भी है रिश्तों में. माया के इस जटिल किरदार पर परदे पर साकार किया दीपा साही ने जो "तमस" धारावाहिक से पहले ही अपने अभिनय का

बचना ज़रा ज़माना है बुरा...रफी और गीता दत्त में खट्टी मीठी नोंक झोंक

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 117 ज हाँ तक मोहम्मद रफ़ी और गीता दत्त के गाये युगल गीतों की बात है, हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में कई बार ऐसे गीत बजाये हैं। और वो सभी के सभी नय्यर साहब के संगीत निर्देशन में थे। आज भी एक रफ़ी-गीता डुएट लेकर हम ज़रूर आये हैं लेकिन ओ. पी. नय्यर के संगीत में नहीं, बल्कि एन. दत्ता के संगीत निर्देशन में। जी हाँ, यह गीत है फ़िल्म 'मिलाप' का। वही देव आनंद - गीता बाली वाली 'मिलाप' जो बनी थी सन् १९५५ में और जिसमें एन. दत्ता ने पहली बार बतौर स्वतंत्र संगीतकार संगीत दिया था। केवल एन. दत्ता का ही नहीं, बल्कि फ़िल्म के निर्देशक राज खोंसला का भी यह पहला निर्देशन था। इससे पहले उन्होने गुरु दत्त के सहायक निर्देशक के रूप में फ़िल्म 'बाज़ी' ('५१), 'जाल' ('५२), 'बाज़' ('५३) और 'आर पार' (१९५४) काम कर चुके थे। इसलिए एक अच्छे फ़िल्म निर्देशक बनने के सारे गुण उनमे समा चुके थे। जिस तरह से इस फ़िल्म में उन्होने नायिका गीता बाली की 'एन्ट्री' करवाई है "हमसे भी कर लो कभी कभी तो" गीत में, यह हमें याद दिलाती

सुनो कहानी: इस्तीफा

मुंशी प्रेमचन्द की "इस्तीफा" 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में विष्णु प्रभाकर की कहानी फ़र्क का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं मुंशी प्रेमचंद की कहानी "इस्तीफा" , जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 21 मिनट 00 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी बेचारे दफ्तर के बाबू को आप चाहे ऑंखे दिखायें, डॉँट बतायें, दुत्कारें या ठोकरें मारों, उसक माथे पर बल न आयेगा। उसे अपने विकारों पर जो अधिपत्य होता हे, वह शायद किसी संयमी साधु में भी न हो। संतोष का पुतला, सब्र की