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चरणदास को जो पीने की आदत न होती...सामाजिक जिम्मेदारियों को भी निभाते थे "गोल्डन इरा" के गीतकार

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 96 आ सी. रामचन्द्र और किशोर कुमार के संगम से बने दो "गोल्ड" गीत अब तक हमने इस शृंखला में शामिल किया हैं, एक फ़िल्म 'आशा' से और दूसरी फ़िल्म 'पायल की झंकार' से। इन दोनो गीतों का रंग एक दूसरे से बिलकुल अलग था। आज भी हम इन दो महान फ़नकारों की एक रचना पेश कर रहे हैं लेकिन यह गीत ना तो फ़िल्म 'आशा' के " ईना मीना डीका " से मिलता जुलता है और ना ही 'पायल की झंकार' के " मुखड़े पे गेसू आ ही गये आधे इधर आधे उधर " का इस पर कोई प्रभाव है। आज का यह गीत है १९५४ की फ़िल्म 'पहली झलक' का - "चरणदास को पीने की जो आदत ना होती, तो आज मिया बाहर बीवी अंदर ना सोती"। 'पहली झलक' के निर्देशक थे एम. वी. रमण और इसमें मुख्य भूमिकायें निभायी किशोर कुमार और वैजयंतीमाला ने। यह बताना ज़रूरी है कि रमण साहब ने १९५७ में जब 'ईना मीना डीका" वाली 'आशा' बनायी, तो उसमें भी किशोर कुमार और वैजयंतीमाला को ही कास्ट किया था। 'पहली झलक' में किशोर कुमार जैसे गायक अभिनेता के होने के बावजूद फ़िल्म मे

सुनो कहानी: शिखर-पुरुष

ज्ञानप्रकाश विवेक की "शिखर-पुरुष" 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने "किस से कहें" वाले अमिताभ मीत की आवाज़ में सआदत हसन मंटो की "कसौटी" का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं चर्चित कहानीकार ज्ञानप्रकाश विवेक की शिखर-पुरुष , जिसको स्वर दिया है कनाडा निवासी स्वप्न मंजूषा ने। कहानी का कुल प्रसारण समय ३६ मिनट ४० सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। ज्ञानप्रकाश विवेक की सबसे चर्चित कहानी ' शिखर-पुरुष ' का टेक्स्ट हिंद युग्म पर कहानी कलश में उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। ञानप्रकाश विवेक की कहानियों में सामाजिक विडम्बनाओं के विभिन्न मंजर उपस्थित रहते हैं। हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी चाय का कप है कोई परशुराम का धनुष नहीं। कहा नहीं था मैने, क्योंकि तुम्हें यह फब्

ना ना ना रे ना ना ...हाथ ना लगाना... दो अलग अंदाज़ ओ आवाज़ की गायिकाओं का सुंदर मेल

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 95 आ म तौर पर फ़िल्मी युगल गीत में एक गायक और एक गायिका की आवाज़ें हुआ करती हैं। लेकिन समय समय पर कुछ ऐसे युगल गीत भी बने हैं जिन्हे या तो दो गायकों ने गाये हैं या फिर दो गायिकाओं ने, और इनमें से बहुत सारे गानें बेहद कामयाब भी हुए हैं। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में एक ऐसा ही 'फ़िमेल डुएट' प्रस्तुत है। फ़िल्म संगीत के इतिहास मे अगर झाँका जाए तो हम पाते हैं कि ऐसी बहुत सारी फ़िल्में हैं जिनमें लता मंगेशकर ने नायिका का पार्श्वगायन किया है जब कि कुछ थोड़े से कमचर्चित गायिकाओं ने दूसरी चरित्र अभिनेत्रियों या फिर नायिका की सहेलियों, या फिर किसी जलसे या मुजरे के लिए अपनी आवाज़ें दी हैं। यह भी एक ऐसा ही गीत है जिसे दो बड़े ही अनोखी गायिकाओं ने गाया है। यह गीत है १९६३ की फ़िल्म ताजमहल का जिसे गाया है सुमन कल्याणपुर और मीनू पुरुषोत्तम ने। यूँ तो इस मशहूर फ़िल्म के बहुत से गीत बहुत ही कामयाब हुए, ख़ास कर लता-रफ़ी के गाए "जो वादा किया" और "पाँव छू लेने दो", और दूसरे कुछ गीत भी प्रसिद्ध हुए। उस दृष्टि से सुमन और मीनू का गाया यह गीत ज़रा कम सुना

मुझे फिर वही याद आने लगे हैं.... महफ़िल-ए-बेकरार और "हरि" का "खुमार"

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #१६ आ ज हम जिन दो शख्सियतों की बात करने जा रहे हैं,उनमें से एक को अपना नाम साबित करने में पूरे १८ साल लगे तो दूसरे नामचीन होने के बावजूद मुशाअरों तक हीं सिमटकर रह गए। जहाँ पहला नाम अब सबकी जुबान पर काबिज रहता है, वहीं दूसरा नाम मुमकिन है कि किसी को भी मालूम न हो(आश्चर्य की बात है ना कि एक नामचीन इंसान भी गुमनाम हो सकता है) । यूँ तो मैं चाहता तो आज का पूरा अंक पहले फ़नकार को हीं नज़र कर देता,लेकिन दूसरे फ़नकार में ऐसी कुछ बात है कि जब से मैने उन्हें पढा,सुना और देखा है(युट्युब पर)है, तब से उनका क़ायल हो गया हूँ और इसीलिए चाहता हूँ कि आज की गज़ल के "गज़लगो" भी दुनिया के सामने उसी ओहदे के साथ आएँ जिस ओहदे और जिस कद के साथ आज की गज़ल के "संगीतकार" और "गायक" को पेश किया जाना है। तो चलिए पहले फ़नकार से हीं बात की शुरूआत करते हैं। आपको शायद याद हो कि जब हम "छाया गांगुली" और उनकी एक प्यारी गज़ल की बात कर रहे थे तो इसी दरम्यान "गमन" की बात उभर आई थी। "गमन"- वही मुज़फ़्फ़र अली की एक संजीदा फिल्म, जिसके गानों को संगीत से स

जिसे तू कबूल कर ले वो अदा कहाँ से लाऊं....पूछा था चंद्रमुखी से देव बाबू से लता के स्वर में.

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 94 न्यू थियटर्स के प्रमथेश चंद्र बरुवा ने सन् १९३५ में शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के मशहूर उपन्यास 'देवदास' को पहली बार रुपहले परदे पर साकार किया था। यह फ़िल्म बंगला में बनायी गयी थी और बेहद कामयाब रही। देवदास की भूमिका में कुंदन लाल सहगल ने हर एक के दिल को छू लिया। बंगाल में इस फ़िल्म की अपार सफलता से प्रेरित होकर बरुवा साहब ने इस फ़िल्म को हिंदी में बना डाली उसी साल और पूरे देश भर में सहगल दर्द का पर्याय बन गए। जमुना, राजकुमारी (कलकत्ता) और पहाड़ी सान्याल ने कमश: पारो, चंद्रमुखी और चुन्नी बाबू की भूमिकायें निभायी। इसके बाद सन् १९५५ में लोगों ने देवदास को तीसरी बार के लिये परदे पर तब देखा (हिंदी में दूसरी बार) जब बिमल राय ने 'ट्रेजेडी किंग' दिलीप कुमार को देवदास की भूमिका में प्रस्तुत करने का बीड़ा उठाया। उस समय दिलीप कुमार के अलावा इस चरित्र के लिये किसी और का नाम सुझाना नामुमकिन था। दिलीप साहब हर एक की उम्मीदों पर खरे उतरे और उन्हे इस फ़िल्म के लिए उस साल का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार भी मिला। पारो और चंद्रमुखी की भूमिकायों में

लोकगीतों में वतन वाले सुनें नाम मेरा

पिछले हफ़्ते हमने आपको अब्बास रज़ा अल्वी द्वारा संगीतबद्ध गोपालदास नीरज का एक गीत सुनवाया था। आज एक बार फिर से हम इन्हीं की एक संगीतबद्ध प्रस्तुति लेकर आये हैं। इस गीत को लिखा है स्वर्गीय सागर खयामी ने। गाया है सिडनी की गायिक शानाज़ हैदर ने। अब्बास के दोनों गीत इनके 'दूरियाँ' एल्बम के हिस्सा हैं। अब्बास ने यह एल्बम भारत के गरीब बच्चों की मदद के लिए कम्पोज किया था।

न ये चाँद होगा न तारे रहेंगें...एस एच बिहारी का लिखा ये अनमोल नग्मा गीता दत्त की आवाज़ में.

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 93 आ ज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में प्यार के इज़हार का एक बड़ा ही ख़ूबसूरत अंदाज़ पेश-ए-ख़िदमत है गीता दत्त की आवाज़ में। दोस्तों, आपने ऐसा कई कई गीतों में सुना होगा कि प्रेमी अपनी प्रेमिका से कहता है कि जब तक यह दुनिया रहेगी, तब तक मेरा प्यार रहेगा; और जब तक चाँद सितारे चमकते रहेंगे, तब तक हमारे प्यार के दीये जलते रहेंगे, वगैरह वगैरह । लेकिन आज का जो यह गीत है वह एक क़दम आगे निकल जाता है और कहता है कि भले ही चाँद तारे चमकना छोड़ दें, लेकिन उनका प्यार हमेशा एक दूसरे के साथ बना रहेगा। आप समझ गये होंगे कि हमारा इशारा किस गीत की तरफ़ है। जी हाँ, फ़िल्म 'शर्त' का सदाबहार गीत "न ये चाँद होगा न तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे"। इस गीत को हेमंत कुमार ने भी गाया था लेकिन आज हम गीताजी का गाया गीत आपको सुनवा रहे हैं। गीत का एक एक शब्द दिल को छू लेनेवाला है, जिनसे सच्चे प्यार की कोमलता झलकती है। 'चाँद' से याद आया कि इसी फ़िल्म में 'चाँद' से जुड़े कुछ और गानें भी थे, जैसे कि लता और हेमन्तदा का गाया "देखो वो चाँद छुपके कर