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"लारा लप्पा लारा लप्पा...." - याद है क्या लता की आवाज़ में ये सदाबहार गीत आपको ?

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 66 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' में आज तक हमने आपको ज़्यादातर मशहूर संगीतकारों के नग्में ही सुनवाये हैं। इसमें कोई शक़ नहीं कि इन मशहूर संगीतकारों का फ़िल्म संगीत के विकास में, इसकी उन्नती में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, लेकिन इन बड़े संगीतकारों के साथ साथ बहुत सारे कमचर्चित संगीतकार भी इस 'इंडस्ट्री' मे हुए हैं जिन्होने बहुत ज़्यादा काम तो नहीं किया लेकिन जितना भी किया बहुत उत्कृष्ट किया। कुछ ऐसे संगीतकार तो अपने केवल एक मशहूर गीत की वजह से ही अमर हो गये हैं। आज हम एक ऐसे ही कमचर्चित संगीतकर का ज़िक्र इस मजलिस में कर रहे हैं और वो संगीतकार हैं विनोद। विनोद का नाम लेते ही जो गीत झट से हमारे जेहन में आता है वह है फ़िल्म 'एक थी लड़की' का "लारा लप्पा लारा लप्पा लाई रखदा". संगीतकार विनोद की पहचान बननेवाला यह गीत आज प्रस्तुत है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में। यह गीत न केवल विनोद के संगीत सफ़र का एक ज़रूरी मुक़ाम था बल्कि लताजी के कैरियर के शुरुआती लोकप्रिय गीतों में से भी एक था। इससे पहले कि आप यह गीत सुनें, संगीतकार विनोद के बारे में कुछ कहना चाह

तुम बोलो कुछ तो बात बने....जगजीत-चित्रा की दिली ख़्वाहिश और महफ़िल-ए-बंदिश

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #०९ मि ट्टी दा बावा नईयो बोलदा वे नईयो चालदा....इस नज़्म ने न जाने कितनों को रूलाया है,कितनों को हीं किसी खोए अपने की याद में डूबो दिया है। अपने जिगर के टुकड़े को खोने का क्या दर्द होता है, वह इस नज़्म में बखूबी झलकता है। तभी तो "गायिका" मिट्टी का एक खिलौना बनाती है ताकि उसमें अपने खोए बेटे को देख सके, लेकिन मिट्टी तो मिट्टी ठहरी, उसमें कोई जान फूँके तभी तो इंसान बने। यह गाना बस ख़्यालों में हीं नहीं है, बल्कि यथार्थ में उस गायिका की निजी ज़िंदगी से जु्ड़ा है। ८ जुलाई १९९० को अपने बेटे "विवेक" को एक दु्र्घटना में खोने के बाद वह गायिका कभी भी वापस गा नहीं सकी। संगीत से उसने हमेशा के लिए तौबा कर लिया और खुद में हीं सिमट कर रह गई। उस गायिका या कहिए उस फ़नकारा ने अब अध्यात्म की ओर रूख कर लिया है,ताकि ईश्वर से अपने बेटे की गलतियों का ब्योरा ले सके। भले हीं आज वह नहीं गातीं, लेकिन फ़िज़ाओं में अभी भी उनकी आवाज़ की खनक मौजूद है और हम सबको यह अफ़सोस है कि उनके बाद "जगजीत सिंह" जी की गायकी का कोई मुकम्मल जोड़ीदार नहीं रहा। जी आप सब सही समझ रहे हैं, ह

जवानियाँ ये मस्त मस्त बिन पिए....रफी साहब की नशीली आवाज़ में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 65 फ़ि ल्म जगत और ख़ास कर फ़िल्म संगीत जगत के लिए १९५५ का साल बहुत महत्वपूर्ण साल रहा है क्योंकि इसी साल एक ऐसी तिकड़ी बनी थी तीन कलाकारों की जिन्होने मिल कर फ़िल्म संगीत को एक नयापन दिया, और फ़िल्मी गीतों को एक नये लिबास, एक नये अंदाज़ में पेश किया। ये तिकड़ी थी अभिनेता शम्मी कपूर, संगीतकार ओ. पी. नय्यर और गायक मोहम्मद. रफ़ी की। ये तीनों पहले से ही फ़िल्म जगत में सक्रीय थे लेकिन अब तक तीनों कभी एक साथ में नहीं आए थे। १९५५ की वह पहली फ़िल्म थी 'मिस कोका कोला' जिसमें शम्मी कपूर के साथ नायिका बनी थीं गीता बाली। और आपको यह भी बता दें कि इसी साल शम्मी कपूर और गीता बाली की शादी भी हुई थी। 'मिस कोका कोला' 'हिट' तो हुई लेकिन बहुत ज़्यादा भी नहीं। जिस फ़िल्म से इस तिकड़ी ने फ़िल्म जगत में हंगामा मचा दिया वह फ़िल्म थी १९५७ की 'तुमसा नहीं देखा'. फ़िल्मिस्तान के बैनर तले बनी इस फ़िल्म का निर्देशन किया था नासिर हुसैन ने और शम्मी कपूर की नायिका इस फ़िल्म में बनीं अमीता। इसी फ़िल्म से शम्मी कपूर की उन जानी-पहचानी ख़ास अदाओं, और उन अनोखे 'म