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आजा रे प्यार पुकारे, नैना तो रो रो हारे...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 38 "दि ल ने फिर याद किया", 1966 की एक बेहद कामयाब फिल्म. इसी फिल्म से रातों रात मशहूर हुई थी संगीतकार जोडी सोनिक ओमी. सोनिक और ओमी रिश्ते में चाचा भतीजा हैं. सोनिक सन् 1952 में ममता, 1952 में ही ईश्वर भक्ति, और 1959 में एक पंजाबी फिल्म में संगीत दे चुके थे. सोनिक, जो ढाई साल की उम्र में अपनी ऑंखें खो चुके थे, उन्होने लाहौर और लखनऊ से पढाई पूरी की और फिर दिल्ली के आकाशवाणी से जुड गये और इस तरह से एक सुरीले सिलसिले की भूमिका बनती चली गयी. सोनिक और ओमी कई बार मुंबई आए लेकिन कोई ख़ास बात नहीं बन पाई. लेकिन वो अपने अपने तरीके से कोशिश करते रहे. इसी बीच सोनिक बने संगीतकार मदन मोहन के सहायक और ओमी रोशन के. इस तरह से फिल्म संगीत जगत में इन दोनो की पहचान बनी, नतीजा यह हुआ कि उन्हे "दिल ने फिर याद किया" जैसी फिल्म मिल गयी और दोनो ने पहली बार अपनी जोडी बनाई. और कहने की ज़रूरत नहीं, पहली फिल्म में ही इन दोनो ने कमाल कर दिया. दिल ने फिर याद किया के सभी गीत बेहद मक़बूल हुए, उन्हे बहुत बहुत सहारना मिली. इस फिल्म को बनाया था सी एल रावल ने, वही फिल्म के निर्

कहाँ हाथ से कुछ छूट गया याद नहीं - मीना कुमारी की याद में

मीना कुमारी ने 'हिन्दी सिनेमा' जगत में जिस मुकाम को हासिल किया वो आज भी अस्पर्शनीय है ।वे जितनी उच्चकोटि की अदाकारा थीं उतनी ही उच्चकोटि की शायरा भी । अपने दिली जज्बात को उन्होंने जिस तरह कलमबंद किया उन्हें पढ़ कर ऐसा लगता है कि मानो कोई नसों में चुपके -चुपके हजारों सुईयाँ चुभो रहा हो. गम के रिश्तों को उन्होंने जो जज्बाती शक्ल अपनी शायरी में दी, वह बहुत कम कलमकारों के बूते की बात होती है. गम का ये दामन शायद 'अल्लाह ताला' की वदीयत थी जैसे। तभी तो कहा उन्होंने - कहाँ अब मैं इस गम से घबरा के जाऊँ कि यह ग़म तुम्हारी वदीयत है मुझको पैदा होते ही अब्बा अली बख्श ने रुपये के तंगी और पहले से दो बेटियों के बोझ से घबरा कर इन्हे एक मुस्लिम अनाथ आश्रम में छोड़ आए. अम्मी के काफी रोने -धोने पर वे इन्हे वापस ले आए ।परिवार हो या वैवाहिक जीवन मीना जो को तन्हाईयाँ हीं मिली चाँद तन्हा है,आस्मां तन्हा दिल मिला है कहाँ -कहाँ तन्हां बुझ गई आस, छुप गया तारा थात्थारता रहा धुआं तन्हां जिंदगी क्या इसी को कहते हैं जिस्म तन्हां है और जां तन्हां हमसफ़र कोई गर मिले भी कहीं दोनों चलते रहे यहाँ तन्हां जल

आंसू समझ के क्यों मुझे आँख से तुमने गिरा दिया...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 37 कु छ गीत ऐसे होते हैं कि जिनके लिए संगीतकार के दिमाग़ में बस एक ही गायक होता है. जैसे कि वो गीत उसी गायक के लिए बनाया गया हो. या फिर हम ऐसे भी कह सकते हैं कि हर गायक की अपनी एक खूबी होती है, कुछ विशेष तरह के गीत उनकी आवाज़ में खूब खिलते हैं. ऐसे ही एक गायक थे तलत महमूद जिनकी मखमली आवाज़ में दर्द भरी, ठहराव वाली गज़लें ऐसे पुरस्सर होते थे कि जिनका कोई सानी नहीं. आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में तलत साहब की मखमली आवाज़ का जादू छा रहा है दोस्तों. सलिल चौधरी की धुन पर राजेंदर कृष्ण के बोल, फिल्म "छाया" से. 1961 में बनी हृषिकेश मुखर्जी की इस फिल्म में सुनील दत्त और आशा पारेख ने मुख्य भूमिकाएँ निभायी. यूँ तो इस फिल्म में एक से एक 'हिट' गीत मौजूद हैं जैसे कि "मुझसे तू इतना ना प्यार बढा", और "आँखों में मस्ती शराब की". लेकिन तलत साहब का गाया जो गीत हम आज शामिल कर रहे हैं वो थोडा सा कमचर्चित है. "आँसू समझ के क्यूँ मुझे आँख से तुमने गिरा दिया, मोती किसी के प्यार का मिट्टी में क्यूँ मिला दिया" तलत महमूद के गाए फिल्मी गज़लों