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ऐ दिल मुझे बता दे...तू किस पे आ गया है...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 12 आ ज 'ओल्ड इस गोल्ड' में हम सलाम कर रहे हैं फिल्म जगत के दो महान सुर साधकों को. एक हैं गायिका गीता दत्त और दूसरे संगीतकार मदन मोहन. यूँ तो मदन मोहन के साथ लता मंगेशकर का ही नाम सबसे पहले जेहन में आता है, लेकिन गीता दत्त ने भी कुछ बडे ही खूबसूरत नगमें गाये हैं मदन मोहन के लिए. इनमें से एक है फिल्म "भाई भाई" का, "ऐ दिल मुझे बता दे तू किसपे आ गया है, वो कौन है जो आकर ख्वाबों पे छा गया है". दोस्तों, अगर आप ने कल का 'ओल्ड इस गोल्ड' सुना होगा तो आपको पता होगा कि हमने उसमें आशा भोसले का गाया "आँखों में जो उतरी है दिल में" गाना सुनवाया था. वो गाना ज़िंदगी में किसी के आ जाने की खुशी को उजागर करता है. वैसे ही "भाई भाई" फिल्म का यह गाना भी कुछ उसी अंदाज़ का है. किसी का अचानक दिल में आ जाना, ख्वाबों पर भी उसी का राज होना, पहले पहले प्यार की वो मीठी मीठी अनुभूतियाँ, यही तो है इस गीत में. "भाई भाई" 1956 की फिल्म थी जिसका निर्माण दक्षिण के नामचीं 'बॅनर' ऐ वी एम् ने किया था. अशोक कुमार, किशोर कुमार, नि

महानायक के लिए महागायक से बेहतर कौन

आवाज के दो बडे जादूगर--अमिताभ बच्चन और किशोर कुमार वे दोनों ही अपनी आवाज से अनोखा जादू जगाते हैं। उनकी सधी हुई आवाज हमें असीम गहराई की ओर ले जाती है। इन दोनों में से एक महागायक है तो दूसरा महानायक। कभी इस महानायक की बुलंद आवाज को ऑल इंडिया रेडियो ने नकार दिया था और दूसरी दमदार आवाज उस इंसान की है जिनकी आवाज बिमारी के कारण प्रभावित हो गई थी। कालंतर में इन दोनों की आवाज एक दूसरे की सफलता की "वौइस्" बनी. जैसे एक सच्चे तपस्वी ने कठिन तपस्या से अपनी कामनाओं को साध लिया हो उसी तरह इन दोनों महान कलाकारों ने अपनी आवाज को रियाज से साध लिया था। यदि अब तक आप इन दो विभूतियों को ना जान पाये हो तो हम बता देते हैं कि यहाँ बात हो रही है, महान नायक अमिताभ बच्चन और महान गायक स्वर्गीय किशोर कुमार की। किस्मत देर सवेर अपना रंग दिखा ही देती हैं, कभी रेडियो द्वारा अस्वीकृत कर देने वाली अमिताभ बच्चन की आवाज को बाद में महान निदेशक सत्यजीत राय ने अपनी फिल्म शतरंज के खिलाडी में कमेंट्री के लिये चुना था, इससे बेहतर उनकी आवाज की प्रशंसा क्या हो सकती है। उधर किशोर कुमार को भी पहले पहल केवल कुछ हल्के फु

खुद ढूंढ रही है शम्मा जिसे क्या बात है उस परवाने की...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 11 'ओ ल्ड इस गोल्ड' की एक और सुरीली शाम ख़ास आपके नाम! हमें यकीन है आज का गीत आपके कानो में से होकर सीधे दिल में उतर जायेगा. आशा भोसले और ओ पी नय्यर के सुरीले संगम से निकला एक और अनमोल मोती है यह गीत. यह गीत है 1963 की फिल्म "फिर वोही दिल लाया हूँ" का. जॉय मुखेर्जी और आशा पारेख अभिनीत नसीर हुसैन की इस फिल्म ने 'बॉक्स ऑफिस' पर कामयाबी के झन्डे गाडे. और इस फिल्म के संगीत के तो क्या कहने! 50 के दशक के बाद 60 के दशक में भी ओ पी नय्यर के संगीत का जादू वैसे ही बरकरार रहा. नय्यर साहब ने इससे पहले नसीर हुसैन के लिए "तुमसा नहीं देखा" फिल्म में संगीत निर्देशन किया था सन 1957 में. मजरूह सुल्तानपुरी ने बडे ही शायराना अंदाज़ में "फिर वोही दिल लाया हूँ" फिल्म के इस गाने को लिखा है. हर किसी के ज़िंदगी में ऐसा एक पल आता है जब दिल को लगता है कि जिसका बरसों से दिल को इंतज़ार था उसकी झलक शायद दिल को अब मिल गयी है. और दिल उसी की तरफ मानो खींचता चला जाता है, दुनिया जैसे एकदम से बदल जाती है. "खुद ढूँढ रही है शम्मा जिसे क्या बात है उ